परित्याग, करुणा की नींव के रूप में नैष्काम्य

प्रेम, करुणा, और बोधिचित्त की परिभाषाएँ

आज मुझसे कहा गया है कि मैं आपसे स्वयं तथा दूसरों के प्रति हमारी प्रवृत्ति के विनिमय तथा परिवर्तित करने के अभ्यास और प्रणाली के विषय में चर्चा करूँ | प्रेम और करुणा के विषय, बोधिचित्त के समर्पित हृदय का विकास, वह ह्रदय जो दूसरों और ज्ञानोदय प्राप्ति के प्रति समर्पित हो, ये महायान अथवा शिक्षाओं के बृहत् संवाहक के प्रमुख बिंदु हैं |

बोधिचित्त का यह समर्पित हृदय क्या है? यह वह हृदय है जो पूर्णतः निर्मल चितावस्था एवं सम्पूर्ण क्रमिक विकास की प्राप्ति के प्रति समर्पित है | अन्य शब्दों में, अपनी पूर्ण क्षमता तक पहुँचना और बुद्ध की ज्ञानोदय प्राप्त अवस्था पाना | पर यदि आप पूछें कि क्या आपका हृदय केवल ज्ञानोदय प्राप्ति के प्रति समर्पित है, क्या बोधिचित्त के प्रति समर्पित हृदय होने का केवल यही अर्थ है? नहीं, ऐसा नहीं है, क्योंकि इसके अतिरिक्त आपका हृदय दूसरों के प्रति पूर्णतः समर्पित होना चाहिए, और आपको दूसरों के लाभ एवं सुख के लिए कार्य करना चाहिए | जब आप के भीतर ये दोनों मनोदृष्टियाँ होंगी, तो इसे बोधिचित्त का समर्पित हृदय कहा जाएगा |

इस समर्पित ह्रदय के विकास के लिए, इससे पहले आपको वह मनोदृष्टियाँ विकसित करने की आवश्यकता है जिनसे आप सबके सुख की मनोकामना करते हैं - आप के द्वारा सब का लाभ हो - और यह कामना करते हैं कि सब अपनी समस्याओं, कष्टों और दुःखों से मुक्त हो जाएँ | दूसरे शब्दों में, उस मनोदृष्टि के विकास से पहले जिससे आप दूसरों की सहायता और उनके भले के लिए कर्म करते हैं, आपको प्रेम की मनोदृष्टि की आवश्यकता है, जो सभी के सुख की कामना है, और करुणा, वह कामना कि सभी अपनी समस्याओं से मुक्त हो जाएँ |

अनियंत्रित आवर्ती पुनर्जन्म के कष्ट

करुणा की इस मनोदृष्टि से पहले, अर्थात वह कामना कि सभी अपनी समस्याओं से मुक्त हो जाएँ, यह आवश्यक है कि आप अपनी समस्याओं के विषय में सोचें और उनके प्रति जागरूक हों | यदि आप अपनी समस्याओं के विषय में नहीं सोचेंगे और उनपर विजय पाकर उनका समाधान करने की कामना का विकास नहीं करेंगे, तो फिर इस कामना को विकसित करना बहुत कठिन होगा कि सभी अपनी समस्याओं से मुक्त हो जाएँ | इस से पहले कि आप अपनी सभी समस्याओं से छुटकारा पाने की सच्ची इच्छा करें, यह समझना आवश्यक है कि चाहे आपका पुनर्जन्म किसी भी परिस्थिति में हो, यदि वह अनियंत्रित रूप से आवर्ती सांसारिक स्थिति है, तो इसमें समस्याओं के अतिरिक्त और कुछ नहीं है | यह समझना आवश्यक है कि चाहे आप कितने भी धनवान क्यों न हों, आपके पास कितनी भी संपत्ति हो, फिर भी समस्याओं के अतिरिक्त आपके पास कुछ नहीं है |

हम किसी भी स्थिति में हों, जिस से अभिप्राय है कि हमारे पास कितनी सम्पदा है, हमारी कितनी सम्पत्ति है, फिर भी इसमें समस्याएँ विद्यमान हैं, परन्तु हमारे भीतर इन्हें अनदेखा करने की प्रवृत्ति होती है | हम ऐसा सोचते हैं कि हम सुखी हैं, जबकि वास्तव में इन वस्तुओं से हमें बहुत-सी समस्याएँ होती हैं | क्योंकि जब आप एक अनियंत्रित रूप से आवर्ती परिस्थिति में होते हैं, तो उस प्रकार की परिस्थिति में, चाहे आपका बहुत ऊँचा पद हो, आपको उस से सम्बंधित अनेक समस्याएँ होती हैं | आपको यह चिंता रहती है कि कहीं आपका पद छिन न जाए और कहीं आपकी पद-अवनति न हो जाए | आपको यह  सोचकर चिंतित रहते हैं कि आपकी और अधिक पदोन्नति होगी या नहीं, और वास्तव में आप कभी संतुष्ट नहीं होते, और इस पूरी परिस्थिति को लेकर आपके भीतर अत्यधिक व्यग्रता बनी रहती है |

इसी प्रकार, जिसने भी जन्म लिया है उसकी अवश्य एक दिन मृत्यु होगी,परंतु अपने प्रखर सहज ज्ञान के कारण हम में से अधिकांश इस तथ्य को नकारने का प्रयास करते हैं कि जीवन में हमारी परिस्थिति सदैव बदलती रहेगी, कि कुछ भी सदैव अपरिवर्ती नहीं रहता | वस्तुएँ सदैव अनित्य ही रहेंगी, परंतु हम उन्हें इस प्रकार पाने की चेष्टा हैं कि जैसे वे अमर हों | हम वस्तुओं को ऐसे झपटते हैं जैसे वे अपरिवर्ती व स्थायी हों, जबकि वास्तव में वे सदैव बदलती रहेंगी |

चाहे आप अपनी नश्वरता,मृत्यु के प्रति सजग भी हों, फिर भी ऐसे कई लोग हैं जो अपने अगले जीवनकाल में एक देवता, सबसे शोभायमान देवता, या सबसे समृद्ध मनुष्य आदि बनने का अथक प्रयत्न करते हैं | ऐसी अभिलाषा लिए कई लोग हैं | मान लीजिए कि यदि आपका पुनर्जन्म एक देवता के रूप में होता भी है, तो आप उन तीनों लोकों में से किसी में भी पुनर्जन्म ले सकते हैं जिनमें देवता पाए जाते हैं | इन्द्रियजनित इच्छाओं के लोक में देवता होते हैं, अतीन्द्रिय रूपों के लोक में देवता होते हैं, और निराकार जीवधारियों के लोक में भी देवता होते हैं |

इन देव गतियों में जैसे-जैसे आप क्रमशः उच्चतर बढ़ते जाते हैं ये और अधिक भव्य होती जाती हैं, यथा वे देवता तथा जिन प्रासादों में ये देवता वास करते हैं |उन्नत स्तर में वह सब कुछ निम्न स्तर से श्रेष्ठतर होता चला जाता है, और निम्न स्तरों की हर वस्तु उससे उच्तर स्तरों की तुलना में बहुत अपकृष्ट प्रतीत होती है |इन देव गतियों में देवताओं के जीवन अत्यंत दीर्घ और सुख से भरे होते हैं, और ऐसा लगता है कि उन्हें कोई समस्या नहीं होती | पर अंततः उनका समय समाप्त हो जाता है, और उन्होंने एक देवता के रूप में ऐसा सुखमय जीवन व्यतीत करने के लिए जो सकारात्मक संभाव्यता संचित की थी वह समाप्त हो जाती है, उनका क्षरण होता जाता है |

फिर देवता सजग हो जाते हैं कि अब उनके अतीत से नकारात्मक संभाव्यता के फल उन्हें भुगतने पड़ेंगे, और देव गतियों से उनका पतन होगा, तथा उनका पुनर्जन्म अब बहुत भयंकर रूप में होगा | जब उन्हें उनकी पास आती मृत्यु का आभास होता है, तो उन्हें बहुत कष्ट और दुःख होता है | उनके गले की फूल मालाएँ मुरझाने लगती हैं | उनके शरीर से वितृष्णा उत्पन्न करने वाली दुर्गन्ध आने लगती है, और अब तक जिन मित्रों ने सदा उनका साथ दिया था वे भी साथ छोड़ने लगते हैं | सब उन्हें पीछे और अकेला छोड़ देते हैं | जो मानसिक कष्ट और संताप ये देवता भुगतते हैं, वह अत्यन्त प्रचण्ड होते हैं |

देवताओं के प्रासाद अत्यंत शोभायमान होते हैं | वे सुन्दर रत्नों और चमकीले पत्थरों से बने होते हैं | परन्तु उन्हें यह जानकर अत्यंत कष्ट और दुःख होता है कि उन्हें इतने सुन्दर भवन और इतने अद्भुत मित्र आदि सब छोड़ देने होंगे | उनका कष्ट असहनीय होता है | एक देवता के रूप में जन्म लेना हमारी परिकल्पना के अनुसार सबसे अद्भुत पुनर्जन्म होता है, और यह जानना आवश्यक है कि एक देवता होते हुए भी आपको समस्याओं के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता | आपको बहुत से दुखों का सामना करना पड़ेगा |

नैष्काम्य: स्वतंत्र होने का संकल्प

जब आप ये सब भव्य और शोभायमान परिस्थितियाँ देखते हैं जिनमें आपका पुनर्जन्म हो सकता है, और समझते हैं कि ये सब अनियंत्रित रूप से पुनरावर्ती परिस्थितियों से ग्रस्त हैं और इनमें समस्याओं के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है, तो आप के भीतर यह विचार और मनोदृष्टि विकसित होती है कि, "मुझे इन सभी कठिन परिस्थितियों से निकल जाना चाहिए", और इसी को नैष्काम्य अथवा स्वतंत्र होने का संकल्प कहते हैं | यह सभी समस्याओं से मुक्त होने का संकल्प है |

भावी जन्मों से अभिभूत होने की धुन से विमुख होने की संकल्प को मुक्त होने का संकल्प कहा जाता है | यदि आप वास्तव में ध्यान साधना करें और इन सबको समेटकर अपने चित्त का एक हितकारी स्वभाव बना लें, तब आप अपनी समस्याओं से मुक्त होने का संकल्प वास्तव में विकसित कर सकते हैं | आपको भविष्य में एक देवता या धनवान होकर जन्म लेने से होने वाली समस्याओं से मुक्त होने के लिए, जिस संकल्प से अपने भावी जीवन की सनक से विमुख होने के संकल्प को विकसित करना है, उसके लिए इस जीवनकाल की सनक से विमुख होने के संकल्प को बढ़ाना आवश्यक है, क्योंकि, यदि आप इस जीवनावधि के जुनून से विमुख नहीं होते हैं, तो अपने भावी जन्मों की सनकों से मुँह मोड़ना अत्यंत कष्टप्रद हो सकता है |

यदि हम इस जीवनकाल में निश्चित रूप से आने वाली परिस्थितियों के बारे में सोचें, तो यह ज्ञात  होता है कि हम सबको चार प्रमुख प्रकार की समस्याओं या जटिल परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा | हम सबको इन चारों का सामना करना ही पड़ेगा | ये चार समस्याप्रद परिस्थितियाँ क्या हैं ? वे हैं: जन्म, व्याधि, वृद्धावस्था, एवं मृत्यु – कालिक क्षय एवं मृत्यु |

जन्म, व्याधि, आयुर्वृद्धि, एवं मृत्यु की पीड़ा

अब, जन्म की समस्याप्रद परिस्थिति क्या है ? इसमें अत्यधिक पीड़ा और दुःख होता है, परन्तु, क्योंकि हम बहुत ही छोटे थे, हमें वह याद नहीं रहता | अब जन्म लेने की प्रक्रिया क्या है ? जन्म अस्तित्व के पहले क्षण से वास्तव में अभिप्राय है गर्भाधान का वह क्षण जब आपकी भावी काया के मूल में अभिज्ञता की धारा प्रवेश करती है | जन्म-अस्तित्व से अभिप्राय है वास्तव में गर्भाधान का यह क्षण, और गर्भाधान के दूसरे क्षण से आयुर्वृद्धि आरम्भ हो जाती है, और आपको आयुर्वृद्धि की सभी समस्याएँ और पीड़ाएँ भुगतनी पड़ती हैं |

जहाँ तक व्याधि की पीड़ा का सम्बन्ध है, हम सभी इससे परिचित हैं | विभिन्न व्याधियों को चार सौ चार व्याधियों की प्रणाली में वर्गीकृत किया गया है, और इनके अतिरिक्त, ऐसी कई नई व्याधियाँ हैं जिनके विषय में पूर्वानुमान लगाया गया था की वह कालक्षय के परवर्ती काल में उत्पन्न होंगी, और ऐसा हम वास्तव में देख भी रहे हैं |

यदि आप विचार करें, तो जिसका जन्म हुआ है, उसे मृत्यु की समस्या का सामना भी करना पड़ेगा | विचार करने पर आप पाते हैं की मृत्यु के समय आपको अपने सभी सुन्दर परिधान छोड़ देने होंगे, आपको अपने अति प्रिय खाद्य पदार्थ त्यागने होंगे, और, क्योंकि आपको यह जीवन त्यागना है, तो आप बहुत दारुण अवस्था में होंगे | आयुर्वृद्धि, व्याधि, तथा मृत्यु की समस्याओं का क्रम निश्चित नहीं है क्योंकि संभव है कि कोई अपनी माता के गर्भ में गर्भाधान के कुछ क्षणों पश्चात, अपनी आयु में कुछ क्षणों की वृद्धि होने के बाद ही मर जाए |

आपको यह सोचना चाहिए की यदि आप गर्भावस्था की पूरी अवधि जीवित बच भी जाते हैं, तब भी आप नौ महीनों तक अपनी माता के गर्भ में एक बहुत संकुचित स्थान में बद्ध रहते हैं | आपको यह कल्पना करनी चाहिए कि बिना दरवाज़ों और खिड़कियों की एक छोटी सी कोठरी में बंद रहना कैसा होगा | यदि आपको तीन-चार दिनों के लिए भी वहाँ रहना पड़े, तो उसको सहना आपके लिए बहुत कठिन होगा |

सोचिए की जब हम अपनी माँ के गर्भ से आए तो हम कैसे थे, जब हम नन्हे शिशु थे | न हमारे दाँत थे, न हमारे पास कपड़े थे, हम पूरी तरह असहाय थे | हम अपने लिए कुछ भी नहीं कर सकते थे | हम अपनी माता की स्नेहमयी देखभाल पर पूरी तरह आश्रित थे, और उसी के कारण, उसी देखभाल के कारण, जो हमें एक नन्हे शिशु के रूप में प्राप्त हुई, हम सर्वाधिक कठिन काल में बच पाए, और अब जीवित हैं | जब हम बहुत छोटे शिशु थे, हमें कुछ भी करना नहीं आता था, और इससे हमें बहुत सी समस्याएँ होती थी | आप समझ सकते हैं कि जब आप शिशु और बहुत छोटे बालक थे, तो आपको कितनी कठिनाइयाँ हुई होंगी | वह कोई खेल नहीं था |

पैदा होने की जो वास्तविक प्रक्रिया है, वह अपनेआप में बहुत कष्टप्रद है, और बाहर आने में, असल में, पैदा होने की प्रक्रिया में बहुत पीड़ा होती है | परन्तु, यह सब इतना कस्टप्रद होने पर भी हमें यह याद नहीं रहता |

यदि आपकी जीवनावधि इतनी लम्बी होती है कि आप बूढ़े होते हैं, तो बूढ़े होने की समस्याएँ सबसे लम्बे समय तक रहने वाली समस्याएँ हैं | ये आपके पूरे जीवनकाल तक रह सकती हैं | मान लीजिए कि आप अस्सी वर्ष तक जीवित रहते हैं, तो जैसे जैसे आप बूढ़े होते जाते हैं, आपको भीषण समस्याएँ झेलनी पड़ती हैं | वृद्धावस्था की ये समस्याएँ हमारी जानकारी के बिना ही चुपके से हमें जकड़ लेती हैं | आयुर्वृद्धि एक बहुत लम्बे काल तक निरंतर और धीरे-धीरे होती रहती है और आपको पता भी नहीं चलता | यदि बूढ़े होने की समस्याएँ और कष्ट धीरे-धीरे ना होकर अचानक आपको घेर लेते, तो यह कितना भयावह होता | कल्पना कीजिए कि आप सोलह वर्ष के हैं और अगले दिन आप जागते हैं और आप अस्सी वर्ष के हो जाते हैं | यह ऐसा है जैसे आप ने अचानक एक बूढ़े व्यक्ति का मुखौटा पहन लिया हो | यह मान लीजिए कि आप वास्तव में धीरे-धीरे बड़े हो कर इस प्रकार दिखने लगते हैं |

यदि आप वृद्धावस्था में होने वाली समस्याओं के बारे में सोचें, जैसे आपका शारीरिक बल, कि आप काम करना भी चाहते हैं, और उस काम के लिए आपकी बुद्धि बहुत ही सक्रिय है, फिर भी आपका शरीर साथ नहीं देता, और इससे आपको अत्यधिक हताशा होती है | चाहे युवावस्था में आपकी बुद्धि बहुत तीव्र ही क्यों न रही हो, आप धीरे-धीरे बातें भूलने लगते हैं, और आपकी दृष्टि धुंधली पड़ने लगती है, और यह भयानक होता है | इसी प्रकार, जो आहार आपको बहुत प्रिय थे, अब वह आपको नहीं सुहाते | आप उन्हें खाना भी चाहें तो नहीं खा पाते, उनसे आप बीमार हो जाते हैं | आपको जिन स्थानों पर जाना पसंद था, और जो सब करना अच्छा लगता था, अब आप वहाँ नहीं जा पाते, या वैसा नहीं कर पाते | यह बहुत विकट समस्या और दुःख की बात है |

इसी प्रकार, आपने अपने जीवनकाल में चाहे कितनी भी धन सम्पति क्यों न कमाई हो, अंततः आप ऐसे कगार पर पहुँचेंगे जहाँ आपको सबकुछ पीछे छोड़ देना होगा | यह एक भयानक समस्या है; यह आपको अत्यंत दुखी और क्लांत महसूस कराता है |

जिस सबसे बड़ी समस्या का सामना हमें करना होता है, वह है हमारी मृत्यु, जब कोई भी दवा हमारे काम नहीं आती | कुछ भी काम नहीं करता, कोई भी चिकित्सीय तकनीक हमारी सहायता नहीं कर पाती, और हमें वास्तव में अपनी मृत्यु का सामना करना पड़ता है | हमें अपनी सारी संपत्ति पीछे छोड़नी पड़ती है और केवल हमारा चित्त प्रवाह ही हमारे साथ होता है, और यही हमारे समक्ष सबसे बड़ी विपत्ति और कष्ट होते हैं, जिनका हमें सामना करना पड़ता है |

मृत्यु के समय जो कष्ट हमें भुगतना पड़ता है, वह बहुत गहन होता है, परन्तु बहुत अल्पकालीन क्योंकि वास्तव में हमारी मृत्यु में बहुत कम समय लगता है | यदि उसके बाद सब कुछ समाप्त हो जाता, तो इतना बुरा नहीं होता, क्योंकि मृत्यु का भीषण कष्ट बहुत कम समय के लिए होता है, और यह शीघ्र ही पूर्ण रूप से समाप्त हो जाता है | परन्तु, वास्तव में ऐसा नहीं होता, क्योंकि इसके बाद आपको पुनर्जन्म लेना होता है | फिर आपको पुनः इस पूरे चक्र से होकर निकलना पड़ता है | यह एक अनियंत्रित रूप से आवर्ती स्थिति है जो बिना अंत के निरंतर चलती ही जाती है | 

यह अनियंत्रित रूप से आवर्ती चक्र, यह स्थिति, बार बार होती रहती है | यह वर्ष की ऋतुओं के सामान है | ये वसंत, ग्रीष्म, हेमंत, और शीत ऋतुओं से होकर जाते हैं , तथा यह चक्र दोहराया जाता है | यह कटाई में खेतों में प्रयुक्त होने वाले उन विशाल यंत्रों के समान है, जिनका पहिया गोल-गोल घूमते हुए फसल की कटाई करता जाता है | फिर, बाद में, इसका प्रयोग खेत में जोताई, बोवाई, में किया जाता है, और यह चक्राकार क्रम निरंतर चलता ही जाता है |

आप पूछ सकते हैं, "इन सभी समस्याओं के प्रति सजग और सचेत होने के पीछे उद्देश्य क्या है?" उद्देश्य है क्योंकि इससे प्रेरित होकर आप ऐसी कामना के विकास की ओर अग्रसर होते हैं जो आपको इन सभी समस्याओं से छुटकारा दिलाती है; अपितु, वास्तव में, इन सभी समस्याओं से छुटकारा पाने का रास्ता है, जिनका आप संभवतः सामना करते हैं | यदि ऐसा होता कि इन समस्याओं से पीछा छुटाया ही नहीं जा सकता, तो इनके विषय में न सोचना और इनके प्रति सजग न रहना ही उत्तम होता | पर, वास्तव में, इनसे छुटकारा मिल सकता है, इसलिए इनके बारे में सोचने से आप उस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होंगे |

जब आप उन सभी समस्याओं के विषय में सोचते हैं जो इस जीवन से जुड़ी हैं, जैसे भोजन, वस्त्र, और ख्याति, और आप यह समझते हैं कि अपनी सारी ऊर्जा इन व्यर्थ चीज़ों में व्यय करने से कोई लाभ नहीं है, तब आपकी ऐसी सोच बनती है जिससे आप इस जीवन के साज़-सामान के प्रति अपनी आसक्ति भुलाकर इन समस्याओं से छुटकारा पाने का संकल्प करते हैं | आपको उन सभी समस्याओं के विषय में सोचना चाहिए जिन्हें आप झेलते यदि आपका जन्म उस अनियंत्रित रूप से आवर्ती स्थिति में होता, विशेषतः यदि आपका पुनर्जन्म बहुत बुरी परिस्थितियों में होता, वह कितना कष्टदायक होता, और आप ऐसा संकल्प पैदा करते हैं, "मुझे इन सभी समस्याओं से छुटकारा चाहिए, यह भयंकर है |" 

करुणा

फिर आप वैसी ही सोच आगे बढ़ाते हुए यह सोचते हैं कि जैसे आप में इन समस्याओं से मुक्त होने का प्रबल संकल्प है, वैसे ही आपको यह भी सोचना चाहिए कि अन्य सभी लोग भी इसी स्थिति में हैं | चाहे कोई कहीं भी जन्मा हो, सभी को इन सभी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, और फिर आप इस मनोदृष्टि को बदल लेते हैं, और केवल अपने बारे में सोचने के बजाय - आपका अपनी समस्याओं से मुक्त होने का संकल्प - यही संकल्प दूसरों के लिए विकसित करते हैं कि सभी अपनी समस्याओं से मुक्त हो जाएँ | वह मनोदृष्टि जिससे आप यह कामना करते हैं कि सब अपने दुखों और कष्ट से मुक्त हो जाएँ, उसी को करुणा कहते हैं |

 यह अत्यन्त आवश्यक है कि आप अपनी चित्त-सरणि में करुणा का विकास करें, और इसलिए ऐसा करने की विधि के बारे में आपको कोई संदेह नहीं होना चाहिए | जब आप यह कामना करते हैं कि सबका हर प्रकार से भला हो, सब सुखी हों, उस प्रकार की अनुभूति और विचार को प्रेम कहते हैं | आपको इनका विकास करने का अभ्यास करना होगा, तथा आपको निश्चित रूप से प्रेम और करुणा विकसित करके उन्हें अपना हिस्सा बनाना होगा |

उदाहरणार्थ, जब आप कोई बहुत स्वादिष्ट पदार्थ खा रहे हों, आपको यह विचार विकसित करने का प्रयास करना चाहिए कि, "यदि सभी इस स्वादिष्ट पदार्थ का आनंद ले पाते, तो कितना अच्छा होता |" जब बाहर बहुत ठण्ड हो और आपने एक बहुत अच्छा गर्म कोट या स्वेटर पहन रखा हो, तब इसी प्रकार आपको उन सभी प्राणियों और लोगों के बारे में सोचना चाहिए जिन्हें ठण्ड लग रही है, और यह प्रार्थना और कामना करनी चाहिए कि, "काश, सभी के पास ऐसा बढ़िया गर्म कोट होता" | जब आप एक सुन्दर आरामदायक गर्म घर में रहते हों, तब आपको उन सब प्राणियों के बारे में सोचना चाहिए जिनके पास रहने के लिए कोई घर नहीं है, और पुनः यह प्रबल इच्छा पैदा करनी चाहिए कि, "काश, सभी इतने अच्छे और आरामदायक घर में रह पाते" | यदि आप इसका पालन करते हुए ऐसी प्रार्थनाएँ करेंगे, तो सबसे पहले यह होगा कि आपके साथ वास्तव में यह सब घटित होगा | परन्तु, यदि आप ऐसी प्रार्थना इसलिए करते हैं कि पहले आपको यह सब मिले, तो वह बहुत अनुचित होगा |

कदम परंपरा, कदम्पा परंपरा, के तीन प्रसिद्ध भाइयों में से एक का नाम था गेशे चेन्नगावा, और वे हमेशा प्रार्थना करते थे कि, " मेरा जन्म एक नरक में हो ताकि मैं दूसरों का भला कर सकूँ" | अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने कहा था, " ओह, मेरी प्रार्थना सच नहीं होने वाली" | उनके सेवक ने पूछा, "आपने अपना सारा जीवन आध्यात्मिक साधना में व्यतीत कर दिया, और आपकी इस बात से क्या अभिप्राय है कि आपकी प्रार्थना सच नहीं होने वाली?" उन्होंने कहा, " मैंने अपने सारे जीवन यही प्रार्थना की कि मेरा पुनर्जन्म दूसरों के भले के लिए बहुत ही निकृष्ट अवस्था में हो, और अब जब मेरा अंत निकट है तो मुझे यह दिव्य दर्शन हुआ है कि मेरा पुनर्जन्म एक पवित्र बौद्ध स्थल में होने वाला है, और इसलिए कृपया आहुति का प्रबंध कीजिए" | उसके पश्चात वे ब्रह्माण्ड के एक गोल चिन्ह से मंडल की आहुति देने लगे, और वैसे ही मृत्यु को प्राप्त हो गए |

यह बहुत उत्तम बात है कि आपकी इसमें रूचि है, और अपने और दूसरों से सम्बंधित मनोदृष्टियों को परिवर्तित करने की पूरी प्रक्रिया के विषय पर आपने शिक्षण की मांग की है |  जब आपकी स्वयं और दूसरों से सम्बंधित मनोदृष्टियों को बदलने और एकसार करने में रूचि हो, तो यह बहुत आवश्यक है कि यहाँ बतलाई गई प्रक्रियाओं और विचार-सरणियों का आप अनुसरण करें | यह ऐसा है जैसे, उदाहरण के लिए, आप घर बनाने  के लिए  भूमि को समतल या घर का प्रारूप बनाते हैं | इस प्रारम्भिक तैयारी के बाद, आप पूरी रूपरेखा और प्रणाली तैयार करते हैं, जिसके अनुसार आप घर बनाएँगे |

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