भौतिकवाद को कैसे निपटें

How deal with materialism

भौतिक वस्‍तुएं केवल भौतिक सुख पहुंचाती हैं, मानसिक सुख नहीं देतीं। किसी भौतिकतावादी दृष्टिकोण रखने वाले व्‍यक्ति का मस्तिष्‍क हमारे जैसा ही होता है। इसलिए दोनों को मानसिक पीड़ा, अकेलापन, भय, संशय और ईर्ष्‍या का बोध एक जैसा ही होता है। ये भाव किसी के भी मन को विचलित कर सकते हैं। धन-सम्‍पत्ति की सहायता से इन्‍हें मन से दूर करना असम्‍भव है। कुछ अशांत चित्‍त वाले लोग तनाव बहुत अधिक बढ़ जाने पर दवाइयों का सहारा लेते हैं। ये दवाएं अस्‍थायी तौर पर तनाव तो कम कर देती हैं, लेकिन उनके कई प्रकार के दुष्‍प्रभाव होते हैं। सम्‍भवत: मन की शांति को खरीदा नहीं जा सकता है। मानसिक शांति कही बिकती नहीं है, लेकिन हर कोई इसकी कामना करता है। बहुत से लोग इसके लिए शामक दवाओं का सेवन करते हैं, लेकिन तनावग्रस्‍त चित्‍त की असली ओषधि तो करुणा है।

वीडियो: त्सेनझाब सरकांग रिंपोशे द्वितीय – आत्म-करुणा का महत्व
सबटाइटल्स को ऑन करने के लिए वीडियो स्क्रीन पर "CC" आइकॉन को क्लिक कीजिए। सबटाइटल्स की भाषा बदलने के लिए "सेटिंग्स" आइकॉन को क्लिक करें और उसके बाद "सबटाइटल्स" पर क्लिक करें और फिर अपनी पसंद की भाषा का चुनाव करें।

मानसिक शांति अच्‍दे स्‍वास्‍थ्‍य के लिए श्रेष्‍ठ ओषधि है। यह हमारे शरीर को और अधिक सन्‍तुलन प्रदान करती है। पर्याप्‍त नींद के बारे में भी यही बात लागू होती है। यदि चित्‍त शांत हो तो किसी प्रकार की व्‍याकुलता नहीं होती और न ही हमें नींद की गोलियों के सेवन की आवश्‍यकता रहती है। कितने सारे लोग हैं जो अपने चेहरे का सौन्‍दर्य बढ़ाने के लिए प्रयास करते रहते हैं। लेकिन यदि आप क्रोधित हों तो फिर चेहरे को कितना भी रंगा जाए, आपका प्रयोजन हल न होगा। आप फिर भी कुरूप ही दिखाई देंगे। लेकिन यदि आपके चेहरे पर क्रोध के बजाए मुस्‍कराहट हो, तो आपका चेहरा आकर्षक हो जाता है, अधिक सजा-संवरा दिखाई देता है।

यदि हम करुणा का व्‍यवहार करने के लिए दृढ़ता से प्रयास करें तो जब हमें क्रोध आएगा तो वह ज्‍़यादा समय तक नहीं रहेगा। यह एक सुदृढ़ प्रतिरक्षी तंत्र के होने के जैसा है। जब वाइरस शरीर पर हमला करते हैं तो ज्‍़यादा समस्‍या नहीं होती। इसलिए हमें व्‍यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए करुणा का व्‍यवहार करना चाहिए। तब दूसरों से परिचित होने के कारणऔर सभी के साथ अंत:सम्‍बंध का विश्‍लेषण करने से हमें और अधिक बल मिलेगा।

हम सभी के अन्‍दर भला करने की क्षमता निहित है। इसलिए आत्‍मावलोकन कीजिए। अपनी सभी सकारात्‍मक क्षमताओं को देखिए। नकारात्‍मक प्रवृत्तियां भी होती हैं, लेकिन उनके साथ-साथ हमारे भीतर सकारात्‍मक क्षमताएं भी हैं। हमारा जीवन करुणा से शुरू होता है। इसलिए करुणा का मूल क्रोध के मूल से अधिक प्रबल होता है। इसलिए अपने प्रति अधिक सकारात्‍मक दृष्टिकोण रखिए। इससे चित्‍त अधिक शांत होगा। फिर जब समस्‍याएं उत्‍पन्‍न होंगी तो आप ज्‍़यादा आसानी से उनका मुकाबला कर सकेंगे।

शांतिदेव नाम के एक महान भारतीय बौद्ध आचार्य ने लिखा है कि जब हम किसी समस्‍या का सामना करने वाले होते हैं तब यदि हम विश्‍लेषण करके उस समस्‍या से बचने का कोई मार्ग सोच पाते हैं तो फिर चिन्‍ता करने की कोई आवश्‍यकता नहीं है। और यदि हम समस्‍या का समाधान नहीं कर पाते हैं तो चिन्‍ता करने से कोई लाभ नहीं है। हमें वास्‍तविकता को स्‍वीकार करना चाहिए।

Top