क्रोध अथवा अहंकार द्वारा हमारी साधना आहत होने का संकट

हमारे प्रति नकारात्मकता रखने वालों के प्रति क्रोधित होना

जब लोग लम्बे समय तक मेरे प्रति नकारात्मकता दिखाते हैं तो ऐसे व्यक्ति के प्रति मुझे दया और प्रेमभाव बनाए रखने में समस्या होती है | कभी-कभी मुझे ऐसे व्यक्ति के प्रति कठोरता दिखाने की आवश्यकता महसूस होती है; ऐसा करते रहना संभव नहीं है | ऐसी परिस्थिति से कैसे निपटा जाए?

आपको बुरा नहीं लगना चाहिए क्योंकि मैंने करुणा के विकास के लिए जिन मनोभावों की चर्चा की है, उनका विकास अचानक एक साथ नहीं किया जा सकता | आपको वास्तव में अपने हृदय और चित्त को निर्मल करके लम्बे और सतत अभ्यास के द्वारा इन मनोभावों को विकसित करते हुए स्वयं को प्रशिक्षित करना होगा | यदि आप ऐसा नहीं कर सकते, तो, जिन विधियों की मैंने चर्चा की है, आपको उनका निरन्तर अभ्यास करना होगा, और जो लोग आपको कष्ट दे रहे हैं, यदि आप उनकी सहायता नहीं कर सकते और उनके प्रति दयाभाव नहीं रख सकते, तो, कम से कम, आपको उन्हें कष्ट पहुँचाने से स्वयं को रोकना होगा |

अभ्यास से आप कोई भी सामर्थ्य और क्षमता अर्जित कर सकते हैं | अभ्यास के बिना क्षमता नहीं पाई जा सकती | आपको अभ्यास करके स्वयं को प्रशिक्षित करना होगा | यदि आप कुछ लोगों को देखें, तो वे काठ और ईंटों पर अपने हाथ से प्रहार करने का अभ्यास करते हैं और अंततः वे, बिना किसी पीड़ा के, अपने हाथ से दीवार तोड़ देते हैं, और यह आप अचानक नहीं कर सकते, कि एक दीवार के पास जाकर उसपर प्रहार करें, परन्तु आपको लम्बे समय तक अभ्यास और प्रशिक्षण लेना पड़ता है |

उदाहरणार्थ, किसी ऐसे व्यक्ति के विषय में सोचिए जो सदैव आपको चोट पहुँचाता हो और जिसके प्रति आपके मन में बहुत द्वेष हो | यदि ऐसा व्यक्ति आपके पास आकर कहे, "मैं अपने कृत्यों पर बहुत दुखी हूँ | मुझे क्षमा कर दीजिए | यह धनराशि आपके लिए एक भेंट है", और वह आपके साथ बहुत अच्छा व्यवहार करे, तो क्या आपका क्रोध शांत होगा या नहीं? क्या आप तब भी क्रोधित रहेंगे? 

कदाचित नहीं |  

यदि आपके साथ कोई ऐसा करे, और फिर क्षमा माँगकर समझौता करने का प्रयास करे, और आपका क्रोध शांत हो जाए | इसी प्रकार ऐसा तब भी होगा यदि आप भी उस व्यक्ति के साथ ऐसा व्यवहार करें जिसके साथ आपके मतभेद थे | यदि वे आपकी क्षमा याचना को स्वीकार नहीं करते, तो आप अपनी धनराशि वापस ले सकते हैं | तब उस व्यक्ति को बहुत बुरा लगेगा कि उसने आपकी क्षमा याचना स्वीकार नहीं की | फिर वह व्यक्ति खिड़की से बाहर झाँककर देखने की चेष्टा करेगा कि आप किस ओर गए हैं | नहीं क्या? वह व्यक्ति धनराशि पाने का अपना मौक़ा गँवा चुका | अब आप क्या पूछना चाहेंगे?

क्रोध की अभिव्यक्ति

पश्चिम में एक धारणा है कि यदि आप अपने क्रोध की अभिव्यक्ति नहीं करते तो आपके पेट में छाले पड़ जाते हैं | क्या आप इस पर टिप्पणी कर सकते हैं?

मैं मानता हूँ कि क्रोध को अंदर दबाना अच्छा नहीं है, इसकी उपयुक्त अभिव्यक्ति होनी चाहिए, परन्तु अपने रोष की अभिव्यक्ति का सही समय आपको बहुत सावधानी और कुशलता से चुनना चाहिए | क्रोध के आवेग में आपको कुछ नहीं कहना चाहिए | सबसे पहले आपको स्वयं को शांत करने की चेष्टा करनी चाहिए | जब आप क्रोध के आवेश में हों, और आपको बहुत बुरा लग रहा हो, तो आपको सैर करने निकल जाना चाहिए, अथवा अपने मित्रों के साथ कुछ सुखद समय बिताना चाहिए, और फिर जब आप शांत हो जाएँ तब आप कुछ कह सकते हैं | इसी प्रकार आपको दूसरे व्यक्ति की स्थिति भी देखनी चाहिए और जब वे इस प्रकार क्रोधित हों तो आपको कुछ नहीं कहना चाहिए, और उनके शान्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए |

आपको ईमानदारी से यह भी देखना चाहिए कि दोष किसका है | यदि दोष आपका था, तो आप में उसे स्वीकार करने का साहस होना चाहिए | यदि दोष दूसरे व्यक्ति का था, तो जब स्थिति सामान्य हो जाए तब आपको बहुत ध्यानपूर्वक और कुशलतापूर्वक समझाना चाहिए कि, "मैंने ऐसा किया और तुमने ऐसा किया, और वह शायद ठीक नहीं था", फिर शांतिपूर्वक इसपर चर्चा करनी चाहिए | यदि कोई इतना क्रोधित और परेशान हो कि वह कुछ खा न पा रहा हो, और आप उससे पूछें, "आप किस समस्या से इतने परेशान हैं कि आप खा भी नहीं पा रहे", तो उस व्यक्ति को अपनी समस्या आपको बतानी होगी | परन्तु आपको इस प्रकार की चर्चा में कभी भी नहीं पड़ना चाहिए जब आप या वह अत्यंत क्रोधित हों |

आपको ऐसे क्रोध या शिकायत का उदाहरण भी देना चाहिए जिसे आपने अपने मन में दबाकर रखा हो, और उससे उत्पन्न पीड़ा से छाले पड़ गए हों |

मैं अपनी बात नहीं कर रहा था | मैं सिद्धांत की बात कर रहा था |

यदि तीन लोग साथ हों, और उनमें से दो अपने लिए एक-एक कप चाय लें, परन्तु, तीसरे को न दें, तो वह तीसरा व्यक्ति बहुत आहत और क्रोधित हो सकता है, क्या यह एक प्रकार का उदाहरण है?

[ कोई उत्तर नहीं | एक अन्य भागी ] जब युवा लोग अपने माता-पिता के बताए रास्ते पर नहीं चलते और उनके माता-पिता उनसे कहते हैं, "तुम्हारा व्यवहार हमारे कहे अनुसार नहीं है जिसके कारण हमें पीड़ा होती है", ऐसी परिस्थिति में युवाओं को क्या करना चाहिए ? क्या उन्हें अपने माता-पिता का घर छोड़ देना चाहिए ? क्या उन्हें अपना रिश्ता तोड़ देना चाहिए? उन्हें क्या करना चाहिए?

तुम्हारी किस बात से तुम्हारे माता-पिता खिन्न होते हैं?

समस्या मेरे काम से है, मेरी सारी कमाई लामाओं को जाती है - यह मेरे पिता को अच्छा नहीं लगता |

तुम लामाओं की शिक्षाओं के लिए जाते हो, क्या यह तुम्हारे पिता को पसंद नहीं?

कभी कभार | मेरे पिता सोचते हैं कि मुझे सांसारिक व्यवहार सीखना चाहिए, ढेरों पैसे कमाने चाहिए, बहुत से लोगों को नौकरी पर रखना चाहिए, एक प्रकार से दूसरे लोगों का अधिक शोषण करना चाहिए | उन्होंने यह नहीं कहा कि मैं लामाओं से मिलूँ, उन्होंने व्यापक रूप से यह बात कही | वे मेरे कार्य को अधिक महत्त्व नहीं देते |

यदि तुम दोनों कार्य करो तो उसमें क्या हानि है? अपने पिता को संतुष्ट करने के लिए कुछ धन भी कमाओ और आध्यात्मिक मार्ग पर भी चलो |

मैं ऐसा करने के लिए अधिक से अधिक एक मध्यम मार्ग खोजने की चेष्टा करता हूँ |

यही सही ढंग है; यह बहुत अच्छी बात है |

परन्तु मुझे दुःख हुआ क्योंकि मेरे पिता ने कहा, "मैं अस्वस्थ हूँ क्योंकि तुम मेरी बात नहीं मानते" |

तुम्हें अपने पिता से कहना चाहिए, "कृपया चिंता न करें | आपको अस्वस्थ या दुखी नहीं होना चाहिए क्योंकि मैं वही कर रहा हूँ जो अपने मुझसे कहा है", और इस प्रकार तुम कुछ कार्य करो | परन्तु जैसे पहले समझाया गया है, आध्यात्मिक साधना में मुख्य बात है अपनी प्रवृत्ति, अपने मन, अपने चित्त का शोधन करना, और अपनी वाणी, अपनी मौखिक ऊर्जा का मन्त्रों के लिए प्रयोग करना, और जो भी कार्य करें उससे इसे हानि न पहुँचे | इसका अर्थ है कि धर्म-सम्बन्धी बातें, आध्यात्मिक बातें, आप स्वयं अपने लिए अंतरंग रूप से करते हैं |

स्थितियों को सुधारने के लिए हिंसा का प्रयोग

रिनपोचे इस विषय में क्या सोचते हैं जबकि लोग अथवा देश अपनी स्वतंत्रता और अपने जीवन की सुख-सुविधा में बहुत मग्न रहते हैं | अपनी परिस्थिति को बदलने के लिए, उसे सुधारने के लिए क्या उनका एकजुट होकर हिंसा का सहारा लेना उपयुक्त है?

यदि आपका उद्देश्य सबकी पीड़ा और समस्याओं को दूर करना है, तो हर संभव उपाय का सहारा लेना स्वीकार्य है |परन्तु, यदि यह केवल आप अपनी आत्म-सिद्धि  के लिए करते हैं, तो वह उचित नहीं हैं | वह उदाहरण ही ले लीजिए जहाँ बुद्ध ने स्वयं किसी की हत्या की थी; उससे अपने प्रश्न को जोड़कर देखिए | एक पूर्वजन्म में बुद्ध ने किसी ऐसे व्यक्ति की हत्या की थी जो नाव में सवार 500 व्यापारियों की हत्या करने वाला था | इस भयानक दुर्घटना से उन सबको बचाने के लिए बुद्ध ने उस व्यक्ति की हत्या करके स्वयं नकारात्मक परिणाम ग्रहण कर लिए | यदि आप में उस प्रकार सबकी सहायता करके उसके परिणाम स्वयं झेलने का साहस है, तब ऐसा करना उचित है |

अपने और दूसरों से सम्बंधित मनोभावों को बदलने के अभ्यास से अहंकार पैदा होने का संकट

क्या स्वयं और दूसरों को बदलने से एक अन्य अशांतकारी मनोभाव, अहंकार, के उत्पन्न होने का संकट हो सकता है जहाँ मुझे दूसरों से बहुत-सा श्रेय केवल इसलिए मिलता हो क्योंकि मैं उनके प्रति बहुत अच्छा और दयालु हूँ?

यह सत्य है, ऐसा संकट उत्पन्न हो सकता है जहाँ आप यह महसूस करें कि आप इतने अद्भुत हैं क्योंकि आप सबकी सहायता कर रहे हैं, परन्तु इसी लिए सदा बल दिया जाता है कि अपने और दूसरों के प्रति अपने मनोभाव बदलने की प्रक्रिया, इस प्रकार का अभ्यास निजी और गुप्त ढंग से किया जाना चाहिए | आपको यह दूसरों को नहीं बताना चाहिए कि आप क्या कर रहे हैं; अपने मनोभावों में बदलाव लाने के लिए आप केवल निजी ढंग से ऐसा करें | आप जो कर रहे हैं, उसका ढिंढोरा नहीं पीटना चाहिए |

उदाहरण के लिए, यदि हमारी माता अथवा पिता की मृत्यु हो जाए तो हम रोएँगे | इसी प्रकार यदि एक पतंगा मोमबत्ती की लौ में जलकर मर जाता है, और ऐसी स्थिति में भी आप रोते हैं, तो यह ठीक है, यह अच्छा है | परन्तु उस पतंगे के लिए यदि आप दूसरों के सामने रोएँ, तो वह ठीक नहीं है | वह हास्यास्पद लगेगा | क्योंकि जब आप बैठकर इस प्रकार के अभ्यास का इतना ढोंग रच रहे हों, तब आप हास्यास्पद और विचित्र प्रतीत होंगे | यह केवल एक उदाहरण है |

चाहे मैं बताऊँ या न बताऊँ, पूरा संसार पड़ा है; तो चाहे मैं गुप्त रूप से ही यह अभ्यास क्यों करूँ, मेरा मनोभाव ऐसा हो सकता है और मैं महसूस करने लगूँ कि मैं कितना अद्भुत हूँ |

एकांत में ऐसा अनुभव करना उतना बुरा नहीं है, परन्तु जब आप लोगों से यह कहते फिरते हैं कि आप कितने अद्भुत हैं, तो यह बहुत बुरी बात है | पर एकांत में अपने भीतर ऐसा अनुभव करने से वह आप तक ही सीमित रहता है | वह नकारात्मक नहीं होगा और, क्योंकि उसकी बढ़ाई करने के लिए आपके आसपास लोग नहीं होंगे तो वह इतना महान नहीं बन पाएगा | इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि इस जीवनकाल की वस्तुओं के प्रति अपने लगाव से छुटकारा पाने के रूप में आप यह आरम्भ करें | सामान्य रूप से अनेक सांसारिक अनुभूतियाँ होती हैं जिनपर विजय पाना कठिन होता है; परन्तु आपको चेष्टा करते रहना चाहिए | 

Top