एशिया में बौद्ध धर्म का प्रसार

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बावजूद इसके कि बुद्ध की शिक्षाएं कभी किसी धर्म-प्रचारक आन्दोलन के रूप में नहीं विकसित हुईं, इन शिक्षाओं का प्रसार सदियों तक दूर-दूर के स्थानों में हुआ: पहले दक्षिण-पूर्व एशिया में, फिर मध्य एशिया से होते हुए चीन तक और बाकी के पूर्वी एशिया में, और अन्त में तिब्बत और मध्य एशिया के दूरतम इलाकों तक हुआ। अक्सर इसका विकास विदेशी व्यापारियों की बौद्ध मान्यताओं में स्थानीय लोगों की दिलचस्पी के कारण सहज रूप से हुआ। कभी-कभी कुछ शासकों ने अपने प्रजाजन में नैतिकता को बढ़ावा देने के लिए बौद्ध धर्म को अपनाया, लेकिन किसी को भी अपना धर्म परिवर्तित करने के लिए बाध्य नहीं किया गया। बुद्ध का संदेश लोगों तक पहुँचाने के बाद उन्हें स्वतंत्रता थी कि वे अपने लिए उतना चुन सकते थे जो उनकी दृष्टि में उपयोगी था।

भारतीय उपमहाद्वीप में बुद्ध की शिक्षाओं का शांतिपूर्ण प्रसार दूर-दूर तक हुआ और फिर वहाँ से ये शिक्षाएं पूरे एशिया भर में फैलीं। जब भी यह धर्म किसी नई संस्कृति में पहुँचा बौद्ध चेतना तथा करुणा  के मूल सिद्धांतों से समझौता किए बिना इसकी पद्धतियों और रीतियों को स्थानीय जनचेतना के अनुसार ढाल लिया गया। बौद्ध धर्म में किसी सर्वोच्च प्रमुख के अधीन किसी धार्मिक सत्ता का पुरोहिताधिपत्य कभी स्थापित नहीं हुआ। बल्कि, जिस किसी भी देश में यह धर्म पहुँचा, वहाँ इसका अपना स्वरूप, इसकी धार्मिक संरचना और अपना आध्यात्मिक नेतृत्व विकसित हो गया। तिब्बत के परम पावन दलाई लामा इस समय इस नेतृत्व समूह के सर्वाधिक सुविख्यात और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित प्राधिकारी हैं।

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