बुद्ध ने ज्ञानोदय प्राप्ति के बाद अपने पहले उपदेश में चार आर्य सत्यों के बारे में शिक्षा दी। अपना शेष जीवन उन्होंने यह दर्शाने में लगाया कि इन चार आर्य सत्यों को आध्यात्मिक विकास के लिए प्रयोग में लाने के लिए यथार्थ के बौद्ध परिप्रेक्ष्य (दो सत्यों) के ज्ञान और उसके विश्लेषण करने की आवश्यकता होती है और परम लक्ष्य और वहाँ पहुँचने के साधनों (तीन बहुमूल्य रत्नों) के स्पष्ट बोध की आवश्यकता होती है। एक छोटे से छंद में परम पावन ने इन आवश्यक तत्वों के बीच के प्रगाढं सम्बंध को दर्शाया है। इस छंद का विश्लेषण दर्शाता है कि प्रमुख बौद्ध शिक्षाओं के मेल से किस प्रकार चिन्तन करते हुए सार्थक निष्कर्षों तक पहुँचा जा सकता है।