जीवन के प्रति बौद्धधर्मी दृष्टिकोण

रोजमर्रा के जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण बात है, यथासंभव मनसावाचाकर्मणा विनाशकारी व्यवहार से बचें तथा यथासंभव, रचनात्मक शैली विकसित करें। ऐसा करने के लिए चित्त साधना अपेक्षित है, उसे यथार्थ एवं व्यवहार सम्बन्धी कारण और परिणाम सम्बन्धी भ्रम से मुक्ति दिलाकर। जब हम अपना जीवन इस शैली में व्यतीत करेंगे तो हमारा दृष्टिकोण बौद्ध धर्मी कहलाएगा।

हमारा विषय जीवन के प्रति बौद्धधर्मी दृष्टिकोण मूलत: इस विषय पर केन्द्रित है कि बौद्धधर्मी शिक्षाओं को जीवन में कैसे लागू किया जाए। उनका वास्तव में हमारे लिए क्या अर्थ है। ये किस प्रकार हमारा जीवन बदल देती हैं अथवा हमारे व्यक्तित्व को प्रमाणित करती हैं? क्या बौद्धधर्मी साधना अन्य बातों के साथ-साथ किया जाने वाला कोई गौण अभ्यास अथवा शौक है या फिर जीवन की कठिनाइयों से पलायन करने कि विधि? क्या हम केवल किसी मधुर-मनोरम मानस-दर्शन अथवा कल्पना में खो जाएँ, या हमारी साधना अत्यंत उपयोगी और वास्तव में जीवन में सहायक होती है? आखिरकार बौद्धधर्मी शिक्षाओं का मंतव्य तो यही था कि वे हमारे जीवन में कष्टों एवं समस्याओं से उबरने में हमारी सहायता करें।

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