आत्म-करुणा का महत्त्व

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यद्यपि आत्म-करुणा बौद्ध-धर्मी अभ्यास का आधार है, तथापि इसे प्रायः हमारे दैनिक जीवन में या तो भूल समझा जाता है या फिर अनदेखा कर दिया जाता है। हममें से कई लोगों को दूसरों के प्रति उदार और करुणासम्पन्न होना सिखाया जाता है, परन्तु उसी उदारता को अपने प्रति व्यवहार में लाना हमारे लिए एक संघर्ष बन जाता है। बौद्ध-धर्म में आत्म-करुणा केवल उदारता का कृत्य ही नहीं, अपितु आध्यात्मिक विकास और कल्याण के लिए अनिवार्य आधार भी है।

[उद्धरण] यदि कोई व्यक्ति उफनती और तेज़ बहती नदी में उतरे और उसके प्रवाह में बह जाए, तो वह दूसरों की सहायता भला कैसे कर सकता है? - बुद्ध

आत्म-करुणा क्यों?

आत्म-करुणा का मर्म है अपनेआप से भी उसी सेवा-भाव, सहानुभूति, एवं सरोकार के साथ व्यवहार करना जैसे हम अपने किसी प्रिय मित्र के साथ करते हैं। अपने मित्रों और उनकी समस्याओं को हम प्रायः ग़ैर-निर्णायक भाव से सरलतापूर्वक सुन लेते हैं, परन्तु जब अपनी बात आती है तो हमें ऐसा लगता है कि हम उस लायक नहीं हैं। आत्म-करुणा का तात्पर्य है बिना किसी प्रकार के आक्षेप लगाए अपने दोषों, असफलताओं, एवं संघर्षों को स्वीकार कर लेना। अपनी कमियों के लिए अपनी ही आलोचना करने के स्थान पर हमें स्वयं को स्वीकृति और समझ भेंट करनी है। यह करुणासम्पन्न दृष्टिकोण आत्मलिप्तता या बहाने बनाना नहीं है, अपितु उन अनिवार्य चुनौतियों को पहचानना है जिनका सामना सभी – हम स्वयं भी – करते हैं।

बौद्ध धर्म में आत्म-करुणा महत्त्वपूर्ण क्यों है?

करुणा हम से ही शुरू होती है

साधारण तौर पर हम यह कह सकते हैं कि दूसरों के लिए सच्ची करुणा के भाव की शुरुआत अपने लिए करुणासम्पन्नता से होती है। यदि हम अपने प्रति कठोर और आलोचनात्मक होते हैं, तो कल्पना करें कि दूसरों के प्रति सच्ची करुणासम्पन्नता रखना कितना चुनौतीपूर्ण होगा। आत्म-करुणा का अभ्यास करते-करते हम एक उदार और सौम्य मनोदृष्टि विकसित करते हैं जो स्वाभाविक रूप से दूसरों तक पहुँचती है, जिससे हमें दूसरों के साथ और भी अधिक सहानुभूति से युक्त होकर जुड़ने में सहायता मिलती है।

यह भावात्मक प्रशमन वर्द्धन करती है

जीवन उतार-चढ़ाव से भरा है, और हम जिस प्रकार अपने दु:खों  से निपटते हैं, उसका हमारे कल्याण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। मुश्किल समय में आत्म-करुणा एक सुखदायी लेप की तरह काम करती है। हम अपनी पीड़ा से अभिभूत हुए बिना उसके प्रति पूर्वाग्रह-शून्य होकर रह सकते हैं, जिससे हमें असफलताओं से सरलता से उबरने में सहायता मिलती है।

हमारे नकारात्मक स्वगत-संवाद को कम करती है

हममें से अधिकतर लोगों में एक आभ्यंतर आलोचक बैठा रहता है जो हमें आँकता रहता है और हमें नीचा दिखाता रहता है। कुछ लोगों के लिए तो यह अभ्यन्तर आलोचक कभी चुप ही नहीं होता! हो सकता है यह उतना अधिक गंभीर न लगे, परन्तु ये नकारात्मक स्वगत-संवाद अविश्वसनीय रूप से हानिकारक हो सकते हैं, जिससे अपर्याप्तता और हीनता की भावनाएँ पैदा होती हैं। आत्म-करुणा का अभ्यास करने से – उदाहरण के लिए अपनी "बुद्ध-धातु" को पहचानकर, कि हम सभी लोगों में बुद्ध बनने की क्षमता है – हम इस आभ्यंतर आलोचक को शांत कर सकते हैं, तथा कटु विवेचनाओं को समर्थक और उत्साहवर्द्धक विचारों में बदल सकते हैं। यह बदलाव न केवल हमारे मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है अपितु हमारे मन में एक अधिक सकारात्मक आत्म-छवि भी निर्मित करता है।

यह व्यक्तिगत विकास को भी बढ़ाता है

कुछ लोग यह सोचते हैं कि आत्म-करुणा आत्मलिप्तता है, जहाँ हम केवल अपना ही ख्याल रखते हैं, तथा अपनी गलतियों के उत्तरदायित्व से बचते हैं या अपनी कमियों की उपेक्षा करते हैं। वास्तव में, इसके ठीक विपरीत, यह अपने दोषों और कमियों को स्वीकार करने के लिए एक सुरक्षित अवसर प्रदान करती है। तभी हम उनसे वास्तव में सीख सकते हैं और आगे बढ़ सकते हैं। हो सकता है कुछ लोगों को कर्कश आत्म-विवेचना से लाभ हो, परन्तु, हममें से अधिकांश लोगों के लिए उदारता और सहानुभूतिशीलता के मार्ग से ही आत्म-सुधार की संभावना अधिक होती है।

आत्म-करुणा का अभ्यास किस प्रकार किया जाए

अपने दुःख को मान लेना

आत्म-करुणा के अभ्यास में सबसे पहले तो हमें यह मान लेना चाहिए कि हम दुःखी हैं। संभवतः यह सीधा और सरल लगे, परन्तु इस बात को स्वीकार करना बोझिल हो सकता है कि हम संघर्ष कर रहे हैं, विशेष रूप से तब जब हमें ऐसा लगता है कि हमें समर्थ या सुदृढ़ होना चाहिए या फिर हमारा आधिपत्य सदा रहना चाहिए। इसलिए, सबसे पहले, बिना किसी पूर्वधारणा के, अपने मानसिक और शारीरिक दुःख को मान लें।

अपनेआप से उदारतापूर्वक व्यवहार करें

इस बात की कल्पना करें कि किसी मुश्किल समय से गुज़र रहे अपने अंतरंग मित्र के साथ किस प्रकार का व्यवहार करेंगे। आप किन शब्दों का प्रयोग करेंगे? आप किस प्रकार की सहायता प्रदान करेंगे? अब, उसी उदारता और सहानुभूतिशीलता को अपने प्रति भी दिखाने का प्रयास करें। अपनेआप से शांत, समर्थक भाषा में बात करें और स्वयं को वह सांत्वना प्रदान करें जिसकी आपको आवश्यकता है।

मानवीय एकता को पहचानें

इस बात का स्मरण रहे कि सभी लोग दुःख का अनुभव करते हैं; ऐसा कोई नहीं है जिसने कभी गलतियाँ न की हों। यह मनुष्य का सहज स्वभाव है। यह मानकर कि आप अपने संघर्षों में अकेले नहीं हैं, आप अपने अनुभवों में दूसरों से अधिक जुड़ा हुआ और कम विलग महसूस कर सकते हैं। 

सविवेकी सचेतनता (स्मृति) का अभ्यास करना

अपनी भावनाओं से अभिभूत हुए बिना उनके साथ रहें। अपनी भावनाओं और विचारों को जिज्ञासा और ग्रहणशीलता के साथ परखें, उन्हें बदलने या दबाने की चेष्टा न करें, उन्हें वैसे ही रहने दें। यह सविवेकी सचेतनता आपकी वास्तविकता से जुड़े रहने और आंतरिक शांति को विकसित करने में सहायता करती है।

निष्कर्ष

आत्म-करुणा बौद्ध-धर्मी अभ्यास में केवल एक विलासिता या गौण सरोकार नहीं है; यह करुणासम्पन्न जीवन का एक अनिवार्य अंग है। आत्म-करुणा के विकास से हम अपने कल्याण तथा परहित का ठोस आधार निर्मित कर सकते हैं। याद रखें, अपने प्रति उदारचित्त रहना स्वार्थ नहीं है; यह अधिक करुणासम्पन्न, सचेतन, और संतोषजनक जीवन की ओर एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसलिए, अभी तुरंत समय निकालकर ऊपर दिए गए बिंदुओं पर ध्यान दें और अपनेआप को वह करुणा प्रदान करें जिसके आप अधिकारी हैं।

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