व्यावहारिक करुणा - एक बौद्ध-धर्मी दृष्टिकोण

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करुणा — वह इच्छा कि अन्य लोग दु:ख और उसके कारणों से मुक्त हो सकें — मानवता के सबसे उत्कृष्ट गुणों में से एक है। यद्यपि, वैचारिक रूप से करुणा प्रेरणाप्रद है, परन्तु उसे व्यवहार में लाने पर वह और अधिक प्रबल हो जाती है। इस प्रकार व्यावहारिक करुणा बौद्ध-धर्मी साधकों के गहनतम मूल्यों का मूर्तिमान स्वरूप ही है। यह सभी जीवों के कल्याण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता की ठोस अभिव्यक्ति है। जब हम अपने करुणासम्पन्न उद्देश्यों को वास्तविक, सार्थक कृत्यों में परिवर्तित कर लेते हैं, तो हम अपने आस-पास के संसार को सुखमय बना सकते हैं। क्या और भी कुछ है जो इससे अधिक सार्थक हो सकता है?

करुणा को व्यावहारिक क्यों बनाना चाहिए

दुःख का राहत में रूपांतरण

चार आर्य सत्यों में पहले सत्य के अनुसार जन्म से लेकर मृत्यु तक का यह जीवन दु:ख और असंतोष से युक्त होता है। ज्ञानयुक्त करुणा इस दु:ख का प्रतिरोधक है। परन्तु करुणा अपनी सम्पूर्णता में केवल प्रज्ञा या संवेदनशीलता तक ही सीमित नहीं है - उसे कार्य रूप में परिणत करने की भी आवश्यकता होती है। करुणा को व्यावहारिक रूप देने से हम दूसरों के दुःख को कम कर सकते हैं। चाहे वह किसी अभावग्रस्त मित्र की सहायता करना हो, या किसी अभियान का समर्थन करना, या फिर किसी संघर्षरत व्यक्ति का साथ देना, हमारे करुणासम्पन्न कर्म दूसरों के जीवन को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं। और यह व्यावहारिक करुणा हमें भी परिवर्तित करती है। जब हम दयाभाव से कार्य करते हैं, तो हमारा हृदय उत्तरोत्तर उदार होता जाता है एवं दूसरों की सहायता के लिए सदा प्रस्तुत रहता है।

पुण्य की संभाव्यता का सृजन

बौद्ध धर्म के अनुसार हमारे कर्मों के उद्देश्य महत्त्वपूर्ण होते हैं। विशुद्ध करुणा से प्रेरित कर्म पुण्य का सृजन करते हैं, जो, बुद्ध के अनुसार, हमें आनंद प्राप्ति की ओर ले जाते हैं। जब हम करुणा-युक्त कर्म करते हैं, तो हम दया के बीज बोते हैं जो हमारे तथा दूसरों के जीवन को सफल बनाते हैं। करुणासम्पन्न कर्म पापों की श्रृंखला को भी नष्ट करते हैं। जब हम क्रोध या स्वार्थ से परिस्थितियों का सामना न करके, बार-बार दयाभाव एवं संवेनदशीलता से युक्त होकर करते हैं, तो हम अपने मन और हृदय में सकारात्मक कार्य करने के अभ्यास को जन्म देते हैं, और धीरे-धीरे वह हमारा मूल स्वभाव बन जाता है। ऐसा करने से हमारा चित्त उत्तरोत्तर शांत होता जाता है एवं ज्ञानोदय-प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त होता जाता है।

अंतर्सम्बन्ध को समझना

करुणासमपन्न कर्म हमें जीवों के अन्तर्सम्बन्धों को पहचानने में सहायता करते हैं। सारे ब्रह्मांड में ऐसा एक भी जीव नहीं होगा जो दु:ख की कामना करता हो; हम सब समान रूप से सुख ही चाहते हैं। जब हम करुणासम्पन्न कर्म करते हैं, तो हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि हम सब इस विशाल समग्रता के अंश हैं और साथ ही यह भी कि दूसरों के सुख-दुःख भी हमारे अपने सुख-दु:ख के साथ करीब से जुड़े हुए हैं। यह प्रज्ञा हमारे भीतर एकत्व की भावना को जगाती है। यह विलगाव और वियोजन की उन पीड़ादायक भावनाओं को नष्ट करती है जो बहुधा दु:ख के कारण बनती हैं। प्रायः बँटे हुए से लगने वाले इस संसार में करुणासम्पन्न कर्म एक ऐसी प्रबल शक्ति है जो हमें इस बात की याद दिलाती है कि इसमें हम सभी एक साथ हैं, तथा एक दूसरे की सहायता एवं समर्थन के द्वारा ही हम संसार को अधिक सामंजस्यमय बना सकते हैं।

करुणा को कार्य रूप में परिणत करने के मार्ग

उदारता

उदारता, जो छह पारमिताओं में से पहली है, करुणा को कार्य रूप में परिणत करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है। यह अभावग्रस्त लोगों को भौतिक पदार्थ देकर सहायता प्रदान करने जैसे कई रूप धारण कर सकती है। इसके अतिरिक्त हम अपने समय और श्रम का भी कई प्रकार से दान कर सकते हैं। बौद्ध धर्म में दान केवल लेने वाले से ही नहीं, अपितु देने वाले से भी सम्बन्ध रखता है। जब हम शुद्ध और प्रसन्न मन से दान करते हैं, विशेष रूप से किसी प्रकार के प्रतिलाभ या लोभ की प्रत्याशा के बिना, तब हम अपनी कामनाओं का त्याग कर पाते हैं, और निस्वार्थता के आनंद में डूब जाते हैं।

भावात्मक समर्थन और सांत्वना प्रदान करना

क्या आपने इस बात का अनुभव किया है कि जब किसी व्यक्ति का कठिन समय चल रहा होता है, तब प्रायः उसे उपदेश की आवश्यकता नहीं होती - उसे केवल किसी के साथ की ज़रूरत होती है? कभी-कभी तो ऐसा होता है कि केवल हमरी उपस्थिति ही हमारा सबसे अधिक करुणासम्पन्न कृत्य होता है। भावात्मक समर्थन देना — जैसे कुछ अच्छे शब्द कहना, आलिंगन करना, या आलोचनात्मक हुए बिना केवल किसी की बातों को सुनना — अत्यधिक आराम और राहत दे सकता है। इस प्रकार के करुणासम्पन्न कृत्यों के लिए किसी विस्तृत भाव प्रदर्शन की भी आवश्यकता नहीं होती; प्रायः छोटे-छोटे सत्कर्मों से ही उस व्यक्ति को असीम लाभ पहुँच जाता है। ज़रूरत के समय दूसरों के लिए उपस्थित रहकर हम उन्हें यह सांत्वना दे सकते हैं कि वे अकेले नहीं हैं और हमें उनकी परवाह है।

समाज में स्वेच्छापूर्ण कार्य करना

करुणासम्पन्न कार्य करने का एक और मार्ग है स्वयंसेवा। अधिकतर जगहों में स्वयंसेवा के कई ऐसे अवसर होते हैं: उदाहरण के लिए, किसी लंगर या खाद्य बैंक में सहायक के रूप में काम करना या सामाजिक स्वच्छता अभियानों में भाग लेना। स्वयंसेवा से हम परहित हेतु काम कर सकते हैं, और साथ ही इससे अपने जीवन को एक दृढ़ उद्देश्य-बोध मिल जाता है। दूसरों की सहायता हेतु अपना समय और प्रयास समर्पित करके हम संयम और करुणा विकसित कर सकते हैं। यह जानकर हमारी विनम्रता भी बढ़ जाती है कि हम ब्रह्माण्ड की धुरी नहीं है, अपितु सभी संघर्षरत हैं, और यह बात हमारी करुणासम्पन्नता को और सुदृढ़ बना देती है।

सामाजिक न्याय की वकालत

करुणासम्पन्न कार्य सामाजिक न्याय की वकालत करने का रूप भी ले सकता है। इसमें सभी जीवों के अधिकारों और सम्मान के लिए आवाज़ उठाना, अन्याय को चुनौती देना, तथा एक न्यायसंगत और अधिक संवेदनशील समाज के लिए काम करना भी सम्मिलित है। हम जागरूकता बढ़ाकर, नीतिगत बदलावों का समर्थन करके, या शांतिपूर्ण सक्रियतावाद में भाग लेकर, अथवा इस प्रकार के कार्य करने वाले संगठनों को दान देकर ऐसा कर सकते हैं। वकालत चुनौतीपूर्ण है, परन्तु यह करुणा को कार्य रूप में परिणत करने का एक प्रबल तरीका है क्योंकि यह प्रायः समाज के अधिकारवंचित लोगों पर केंद्रित होती है। यह इस बात को दर्शाता है कि हम अपनी ऊर्जा पीड़ितों की सेवा में लगाने के लिए तैयार हैं।

करुणा को कार्य रूप में परिणत करने के लाभ

हमारे करुणासम्पन्न कर्म केवल परहित के कृत्य ही नहीं होते, अपितु, वे हमारे सुख एवं जीवन के उद्देश्य का स्रोत भी बन जाते हैं। ज़रा कल्पना करें कि आपको यह जानकर कितना आनंद होता है जब आप किसी के बोझ को, थोड़ा-सा ही सही, कम करते हैं। यह आनंद सांसारिक आनंद की भांति क्षणभंगुर नहीं होता - यह गहन और स्थिर दीर्घकालिक आनंद होता है। और इसके लिए कोई पैसे नहीं लगते; हम सभी इसमें भाग ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त, हमारा प्रत्येक करुणासम्पन्न कार्य हमारे मन में करुणा के अभ्यास को सुदृढ़ करता है। शीघ्र ही यह हमारी मूल प्रवृत्ति का अंग बन जाएगा, चाहे हम किसी भी व्यक्ति या परिस्थिति का सामना क्यों न कर रहे हों।

हममें से जो भी बौद्ध धर्म का पालन करना चाहते हैं, उनके लिए हम यह कह सकते हैं कि उनके लिए करुणा ही संभवतः सबसे अमूल्य साथी होगी। करुणा के द्वारा हम उन अवरोधों को दूर कर सकते हैं जो हमें अन्य जीवों के साथ जुड़ने से रोकते हैं। और, जैसा कि परम पावन दलाई लामा हमें लगातार स्मरण कराते रहते हैं, हम सामाजिक प्राणी हैं, और दूसरों के साथ हमारा संयोग ही हमारे जीवन को वास्तव में सुखद और सार्थक बनाता है।

निष्कर्ष

करुणासम्पन्न कर्म बौद्ध धर्म के अभ्यास का मर्म है; और आज संसार में इसकी अत्यधिक आवश्यकता है। यह दु:ख निवारण तथा श्रेष्ठतर संसार बनाने हेतु हमारे मन में बसी सुखदायी करुणासम्पन्न अभिप्रेत इच्छाओं को वास्तविक, ठोस प्रयासों में रूपांतरित करता है। करुणासम्पन्न कार्यों में संलग्न होकर - ऊपर बताए गए किसी भी मार्ग से, या असंख्य अन्य मार्गों से - हम न केवल अभावग्रस्त लोगों की सहायता करते हैं, अपितु ज्ञानोदय प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर भी होते रहते हैं।

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