शून्यता क्या है?

शून्यता का अर्थ “अनस्तित्व” नहीं होता है। इसका यह मतलब नहीं है कि किसी भी चीज़ का अस्तित्व नहीं है और इसलिए हमें अपनी सभी समस्याओं को भुला देना चाहिए क्योंकि उनका अस्तित्व ही नहीं है। शून्यता का अर्थ सर्वथा अभाव होता है, असम्भव ढंग से अस्तित्वमान होने का अभाव होता है। सभी चीज़ें किस तरह से अस्तित्वमान हैं इस सम्बंध में हमारी कल्पनाएं यथार्थ के अनुरूप नहीं होती हैं। हमारी समस्याओं सहित ऐसा कुछ भी नहीं है जो अपनी ही सत्ता से समस्या के रूप में विद्यमान हो। पारम्परिक दृष्टि से ये ऐसी समस्याएं हो सकती हैं जिनका समाधान किए जाने की आवश्यकता है, लेकिन हम उन्हें “समस्या” शब्द और परम्परा द्वारा परिभाषित उसकी अवधारणा की दृष्टि से ही समस्या कह सकते हैं।

शून्यता, जिसके लिए अंग्रेज़ी भाषा में सामान्यतया “एम्प्टीनेस” शब्द का प्रयोग किया जाता है, बुद्ध द्वारा दी गई प्रमुख शिक्षाओं में से एक है। बुद्ध ने इस बात को समझा कि सब लोगों की समस्याओं का सबसे गूढ़ कारण स्वयं अपने, दूसरों के और अन्य सभी चीज़ों के अस्तित्व के आधार के बारे में भ्रम का होना होता है। लोग इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि वे जिन चीज़ों की कल्पना करते हैं वे यथार्थ नहीं हैं, और इस प्रकार वे अपने ही अज्ञान के कारण स्वयं अपने लिए समस्याएं और दुख उत्पन्न कर लेते हैं। उदाहरण के लिए, यदि हम अपने बारे में यह कल्पना कर लें कि हम नाकाम व्यक्ति हैं और हम कुछ भी क्यों न कर लें, हम जीवन में कभी सफल नहीं होंगे, तब न केवल हम आत्म-सम्मान के अभाव के कारण अवसादग्रस्त हो जाते हैं, बल्कि आत्मविश्वास के अभाव के कारण हम अपनी स्थिति को सुधारने के लिए प्रयास करना भी बंद कर सकते हैं। हम एक दीन-हीन जीवन को ही अपनी नियति मान लेते हैं।

शून्यता का मतलब पूर्ण अभाव होता है, एक ऐसे यथार्थ अस्तित्व का अभाव जो हमारी सहज कल्पना के अनुरूप होता है। हम अपनी कल्पनाओं को यथार्थ मानने की अपनी गहराई से समाई हुई आदत के कारण इस प्रकार के अस्तित्वों की बाध्यकारी कल्पना करते हैं। उदाहरण के लिए “नाकाम” व्यक्ति होना सिर्फ एक शब्द है, कोई अवधारणा नहीं है। जब हम अपने आप को “नाकाम व्यक्ति” की अवधारणा से लेबल करते हैं और स्वयं को “नाकाम” कह कर सम्बोधित करने लगते हैं, तब हमें यह समझना चाहिए कि ये सब महज़ रूढ़ियाँ हैं। यह कहना सही हो सकता है कि हम अपने जीवन में अनेक बार विफल हुए हों, या हो सकता है कि हम वास्तव में विफल ही न हुए हों, बल्कि हर काम को किसी भी गलती के बिना करने की अपनी प्रवृत्ति के कारण हमें लगता हो कि हम नाकाम हुए हैं क्योंकि हम ज्यादा काबिल नहीं हैं। दोनों ही स्थितियों को देखें तो, हमारे जीवन में हमारी सफलताओं और विफलताओं के अलावा और भी बहुत कुछ घटित हुआ होता है। लेकिन हम अपने आपको विफल व्यक्ति के रूप में लेबल करके मानसिक तौर पर अपने आप को “नाकाम व्यक्तियों” के बक्से में रख देते हैं और मानने लगते हैं कि हम वास्तव में इस बक्से में बंद किसी व्यक्ति के रूप में अस्तित्वमान हैं। दरअसल, हम कल्पना कर लेते हैं कि हमारे अन्दर ही कुछ ऐसी खराबी या बुराई है जो निश्चित तौर पर इस बक्से के भीतर के हमारे अस्तित्व को सिद्ध करती है। यह खराबी या बुराई अपनी ही सत्ता से, हमारे द्वारा अपने जीवन में किए गए सभी दूसरे कार्यों या बाकी सभी लोगों की राय से स्वतंत्र रहते हुए इस बक्से के भीतर हमारे अस्तित्व को सिद्ध करती है।

नाकाम व्यक्तियों के बक्से में बंद होने और उसमें बंद होने के योग्य होने के रूप में यह अस्तित्व कोरी कल्पना है। इसका यथार्थ से कोई सम्बंध नहीं है। कोई भी किसी बक्से में बंद रहते हुए अस्तित्वमान नहीं है। नाकाम व्यक्ति के रूप में हमारे अस्तित्व की उत्पत्ति एक ऐसी अवधारणा और एक ऐसे नाम पर अवलम्बित रहते हुए हुई है जिसे हमने अपने लिए प्रयोग किया है। “नाकाम व्यक्ति” की अवधारणा और “नाकाम” शब्द केवल रूढ़ियाँ हैं। ये किसी व्यक्ति पर उस स्थिति में सही ढंग से लागू होंगे जब वह व्यक्ति, उदाहरण के लिए, ताश का कोई खेल हार जाए, तब उस स्थिति में रूढ़िगत दृष्टि से वह व्यक्ति एक नाकाम या विफल व्यक्ति होगा। कोई भी व्यक्ति अन्तर्जात रूप में किसी ऐसे नाकाम व्यक्ति के रूप में अस्तित्वमान नहीं होता है जिसके लिए इस कारण से कभी भी जीतना असम्भव हो क्योंकि वह वास्तव में एक विफल व्यक्ति है।

जब हम नाकाम व्यक्ति के रूप में अपने यथार्थ अस्तित्व की शून्यता को समझ लेते हैं तो हमें यह बोध हो जाता है कि इस प्रकार से अस्तित्वमान होने जैसे कोई चीज़ नहीं है। यह यथार्थ नहीं है। हमारी इस भावना को कि हम सचमुच एक पराजित व्यक्ति हैं, हमारे द्वारा अपने लिए प्रयुक्त “नाकाम” शब्द और उसकी उस अवधारणा के आधार पर केवल इस प्रकार ही समझा जा सकता है कि सम्भवतः हम कभी न कभी किसी न किसी चीज़ को करने में विफल हुए होंगे। लेकिन अन्तर्जात रूप में हमारे अन्दर ऐसी कोई खराबी नहीं है जो अपने ही दम पर हमें स्थायी तौर पर नाकाम बना देती हो, और हम कुछ और हो ही न सकते हों। यहाँ शून्यता इस प्रकार के असम्भव अस्तित्व का पूर्ण अभाव है। भूत, वर्तमान और भविष्य में कोई भी व्यक्ति इस प्रकार से अस्तित्वमान नहीं रह सकता है।

हम अपनी कल्पनाओं को विखंडित करके उन पर विश्वास करना बंद कर पाएं, इसके लिए हमें शून्यता को बहुत अच्छे ढंग से समझने की आवश्यकता होती है। लेकिन यदि शून्यता की ध्यानसाधना जारी रखें तो धीरे-धीरे यह स्थिति उत्पन्न होगी कि यदि हम आदतन अपने आपको नाकाम व्यक्ति के रूप में लेबल करेंगे, तो हमें यह बोध हो जाएगा कि यह सब अनर्गल बात है और हम अपनी इस मिथ्या कल्पना को दूर कर सकेंगे। अन्ततोग्त्वा हम इस आदत को भी खत्म कर सकते हैं ताकि फिर कभी हम अपने आपको नाकाम व्यक्ति न समझें।

वीडियो: गेशे ल्हाकदोर — शून्यता क्या है?
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सारांश

चूँकि किसी भी चीज़ का असम्भव ढंग से अस्तित्व सम्भव नहीं है इसका यह मतलब नहीं है कि किसी भी चीज़ का अस्तित्व ही नहीं है। शून्यता केवल आत्म-स्थापित  असम्भव ढंग से अस्तित्व का खंडन करती है। वह शब्दों और अवधारणाओं की रूढ़ियों के अनुसार “यह” या “वह” के रूप में चीज़ों के अस्तित्व का खंडन नहीं करती है।

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