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सरल शब्दों में कहा जाए तो बोधिसत्त्व एक ज्ञानी और करुणासम्पन्न व्यक्ति है जो दूसरों का सम्मान करता है। निस्संदेह इस संसार में कई बुद्धिमान, उदार लोग हैं, परन्तु वह कौन-सी बात है जो किसी बोधिसत्त्व को दूसरों से पृथक बनाती है? एक बात तो यह है कि बोधिसत्त्व केवल दूसरों के कल्याण की कामना ही नहीं रखते, अपितु वे कई कुशल विधियाँ भी जानते हैं जो दूसरों के दुःख को समाप्त कर सकती हैं, और साथ ही वे सभी सत्त्वों की सहायता हेतु अथक प्रयास भी करते रहते हैं। बोधिसत्त्व सभी समस्याओं के गहनतम कारणों को समझते हैं और उन्हें इस बात का भी पूर्ण विश्वास है कि इन कारणों को जड़ से ही समाप्त किया जा सकता है जिससे सभी सत्त्व सारी समस्याओं से सदा के लिए मुक्ति पा सकें। यह ज्ञान और उद्देश्य ही बोधिसत्त्व की करुणा को इतना शक्तिशाली बनाता है।

बोधिसत्त्व शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों से हुई है: "बोधि," जिसका अर्थ है "ज्ञानोदय", और "सत्त्व", जिसका अर्थ है "जीव"। आरंभिक बौद्ध-धर्मी शिक्षाओं में "बोधिसत्त्व" शब्द का प्रयोग बुद्ध शाक्यमुनि के लिए किया गया था जब उन्हें ज्ञानोदयप्राप्ति नहीं हुई थी। उदाहरण के लिए बुद्ध के पिछले जन्मों के चित्रण में उन्हें बोधिसत्त्व के रूप में वर्णित किया गया है। अतः, बुद्ध ने जिस प्रकार ज्ञानोदयप्राप्ति हेतु अनंत जन्मों से अकल्पनीय प्रयास एवं उत्साह के साथ काम किया, उसी प्रकार बोधिसत्त्व भी ज्ञानोदयप्राप्ति के उद्देश्य से इस यात्रा पर निकल पड़े हैं ताकि वे समग्र सत्त्वों को लाभान्वित कर सकें। वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें ज्ञात है कि उनकी कई सीमाएँ हैं। यद्यपि वे परहित की कई विधियाँ जानते हैं, परन्तु वे पूर्ण रूप से यह नहीं जान पा रहे हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए कौन-सी विधि उचित रहेगी। यह बात केवल एक बुद्ध ही जानता है। इसलिए, परहित की यथासंभव चेष्टा करते हुए वे अपने उत्थान के लिए भी कार्यरत रहते हैं ताकि वे बुद्धगति को प्राप्त कर सकें।

बोधिसत्त्व सभी सत्त्वों के मोक्ष हेतु काम करने का संकल्प लेते हैं। अतः ज्ञानोदयप्राप्ति का उनका अंतिम लक्ष्य केवल अपने लिए नहीं है अपितु सभी सत्त्वों को ज्ञानोदय प्राप्त कराने में सहायता करने के लिए भी है। अपनी गहन करुणा के कारण वे परहित हेतु अपनी ज्ञानोदयप्राप्ति को भी टाल देते हैं, जिस कारण वे आध्यात्मिक मार्गदर्शक और संरक्षक के रूप में पूजनीय बन जाते हैं।

बोधिसत्त्व की साधनाएँ और गुण

बोधिसत्त्वों में वे सभी गुण कुछ हद तक होते हैं जो एक बुद्ध में पूर्ण रूप से होते हैं। वे उन गुणों का और अधिक विकास करते रहते हैं ताकि वे ज्ञानोदयप्राप्ति के और निकट पहुँच सकें जिससे वे परहित हेतु और अधिक सहायक हो सकें। यहाँ हम बोधिसत्त्वों के कुछ गुणों पर एक नज़र डालते हैं:

  • करुणा - बोधिसत्त्व अन्य सभी प्राणियों का मोल समझकर उनका सम्मान करते हैं। हम में से अधिकांश लोग स्वयं को प्राथमिकता देते हैं परन्तु बोधिसत्त्व अपने से पहले दूसरों को रखते हैं। वे उस माँ की भाँति होते हैं जो सभी सत्त्वों को अपनी अत्यंत प्रिय और एकमात्र संतान के रूप में देखती है। जब वह बच्चा बीमार हो जाता है तो माँ उसे तड़पते हुए नहीं देख सकती और उसकी सहायता के लिए सबकुछ करती है। उसी तरह बोधिसत्त्व भी हमें पीड़ा में तड़पते हुए नहीं देख सकते। वे न केवल सभी की समान रूप से देखभाल करने की कामना रखते हैं, बल्कि जब भी और जैसे भी संभव हो हमारी सहायता करते हैं।
  • प्रज्ञा बोधिसत्त्व इनमें विभेद करने में सक्षम होते हैं कि क्या उपयोगी है और क्या हानिकारक । वे यथार्थ और कपोल कल्पना के बीच भी विभेद कर सकते हैं। यह प्रभूत बोध दूसरों को मोक्ष प्राप्ति कराने में उनकी सहायता करता है।
  • कुशल उपाय - बोधिसत्त्वों में यह जानने का कौशल होता है कि दूसरों की सहायता किस प्रकार की जाए और ऐसा करने के लिए वे अलग-अलग तरीक़ों का प्रयोग करते हैं।
  • उदारता - बोधिसत्त्व अपनी भौतिक संपत्ति एवं समय तथा ऊर्जा दोनों के मामले में उदार होते हैं। वे परहित हेतु अपना सबकुछ न्यौछावर करने के लिए तैयार होते हैं - वे अपनी संपत्ति या उपलब्धियों के प्रति आसक्त नहीं होते। 
  • क्षान्ति (धैर्य) - बोधिसत्त्व अपने तथा दूसरों के प्रति सहनशील रहते हैं। वे समझते हैं कि ज्ञानोदयप्राप्ति का मार्ग लंबा है और वे परहित हेतु सदा तत्पर रहते हैं, फिर उसके लिए चाहे जितना भी समय क्यों न लग जाए। 
  • नैतिक आचरण - बोधिसत्त्व नैतिक आचरण के लिए प्रतिबद्ध होते हैं, अर्थात् वे ऐसे सभी कृत्यों से दूर रहते हैं जो दूसरों को हानि पहुँचाते हों और ऐसे सभी कृत्यों को करते हैं जो सभी सत्त्वों को लाभान्वित करें। 
  • साहस - बोधिसत्त्व निर्भय और साहसी होते हैं, परहित हेतु बाधाओं और चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहते हैं। वे कठिन परिस्थितियों से या परहित हेतु विपत्ति मोल लेने से नहीं घबराते।

चीन में स्थित चौथी शताब्दी के माईजीशान ग्रोटो के बोधिसत्त्व की प्रतिमाएँ

वर्तमान काल में कार्यरत बोधिसत्त्व 

बोधिसत्त्व का एक महानतम उदाहरण हैं परम पावन चौदहवें दलाई लामा। परम पावन भोर सवेरे से लेकर देर रात तक लगातार, अथक, परिश्रम करते हैं। उनके प्रत्येक दिन की शुरुआत प्रातः 3 बजे होती है जब वे कई घंटों तक ध्यान-साधना करते हैं और तत्पश्चात बाकी का दिन दूसरों से मिलने और उनकी सहायता करने में लगा देते हैं। 

एक बार, परम पावन एक लंबी यात्रा के बाद स्पिति आए। वे कई दिनों से पढ़ा रहे थे और इतना अधिक बोलने के कारण उनका गला बैठ गया था।  मैं उन्हें और अधिक थकाना नहीं चाहता था, इसलिए मैंने उनसे बैठकर दर्शकों को करुणा का मन्त्र ओम मणि पद्मे हुम्  सुनाने की विनती की, जिसे वे तुरन्त मान गए। परन्तु जब शिक्षण आरम्भ हुआ तो उन्होंने कहा कि यद्यपि मैंने उनसे अधिक परिश्रम न करने के लिए कहा था, फिर भी, चूँकि उन्हें अच्छी नींद आ गई थी और चूँकि वे लोगों का समय नष्ट नहीं करना चाहते थे, तो उन्होंने पढ़ाने का कार्य चालू रखा। इसके बाद उन्होंने लगभग 3 घंटे तक लगातार सद्गुणों का मूल  पर प्रवचन दिया, जिसके दौरान उनका गला भी ठीक हो गया।

जब वे पढ़ा चुके तो मैंने उन्हें उनके कमरे तक पहुँचाया जहाँ उन्होंने ऊपर पहनने का अपना चोगा उतारकर सोफ़े पर रख दिया और कहा कि मैं जा सकता हूँ क्योंकि वे बहुत थके हुए थे। परन्तु मुझे उनके चेहरे पर कोई थकान नहीं दिखी; इसके विपरीत, मैं एक अत्यधिक ऊर्जा से भरे हुए चहरे को देख रहा था। मुझे लगा कि कोई साधारण व्यक्ति 80 साल की अवस्था में इस तरह काम नहीं कर सकता। परम पावन दलाई लामा सचमुच अद्भुत हैं!

मैं सोच में पड़ गया कि इसका रहस्य क्या है। यह करुणा के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। वह दूसरों की स्थायी रूप से दुःख निवृत्ति कराने के लिए अथक प्रयास करते हैं। हम 4–5 घंटे तक विडियो गेम खेल लेते हैं और थकते भी नहीं, परन्तु उनकी दृष्टि में परहित ही वह एकमात्र कार्य है जो लाभकारी है, और यही उनके न थकने का कारण है। यदि हम बोधिसत्त्व के गुणों - करुणा, ज्ञान, साहस इत्यादि - को ध्यान में रखते हैं तो निस्संदेह इस सत्य को सुस्पष्ट देख सकते हैं कि परम पावन भी एक बोधिसत्त्व ही हैं।

निष्कर्ष

बोधिसत्त्व वे तेजस्वी और करुणासम्पन्न मार्गदर्शक हैं जो अपने अनुयायियों को ज्ञानोदयप्राप्ति के पथ पर अग्रसर होने में सहायता करते हैं। अपने निस्वार्थ कर्मों और शिक्षाओं के माध्यम से वे बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए एक अनुकरणीय आदर्श बन जाते हैं और साथ ही हमें भी अपने भीतर इन्हीं गुणों को विकसित करने के लिए प्रेरित करते हैं। इस प्रकार, बोधिसत्त्व विश्वभर के लाखों बौद्ध धर्मावलम्बियों के आध्यात्मिक जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और उन लोगों के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत प्रदान करते हैं जो अपने जीवन में अधिक ज्ञान एवं करुणा प्राप्त करने के इच्छुक होते हैं।

बाहर से देखने से यह कहना असंभव है कि कोई व्यक्ति बोधिसत्त्व है या नहीं, और सच बात तो यह है कि हम में से प्रत्येक व्यक्ति स्वयं बोधिसत्त्व बन सकता है। यदि हम सभी सत्त्वों की सहायता करने में सक्षम होने के उद्देश्य से बुद्ध बनने का प्रयास करते हैं तो हम भी बोधिसत्त्व ही हैं। यह कितना अद्भुत होता यदि हमारे पास न केवल इच्छा अपितु परहित की क्षमता भी होती और हम अपना समय और ऊर्जा परहित हेतु लगा सकते। यदि हम वास्तव में दूसरों को लाभान्वित करना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले बोधिसत्त्व बनना होगा और फिर हम बुद्ध बनने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। इसके अतिरिक्त ऐसा कुछ भी नहीं है जो जीवन को अधिक सार्थक बना सकता हो।

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