“चित्त साधना के आठ छंदों” की व्याख्या – गेशे ङ्गावाँग धारग्येय

पृष्ठभूमि

यह ग्रंथ गेशे लांग्री तांगपा (लांगतांगपा) द्वारा आठ छंदों में रचा गया था। इस शिक्षण का श्रेय कदम आचार्यों को दिया जा सकता है। मंजुश्री के अवतार गेशे पोटोवा ने इसे गेशे शरावा को दिया और फिर गेशे लांग्री तांगपा को। इन दोनों को कदम शिष्यों का सूर्य और चंद्रमा कहा जाता है।

शिष्यों में विश्वास बढ़ाने और शिक्षण के प्रामाणिक स्रोत को स्थापित करने के लिए ग्रंथकार की एक संक्षिप्त जीवनी प्रस्तुत करना पारंपरिक है, परन्तु यहाँ पूरी कहानी बताने का समय नहीं है।

जिन्होंने इस शिक्षण की खोज की, वे चित्त साधना के सात बिंदु  के लेखक गेशे चेकावा थे। एक अन्य कदम्पा गेशे से भेंट करते समय उन्होंने एक छोटी पुस्तिका में यह पंक्ति देखी कि, "दूसरों को अपने गुण दो और उनके दोष अपने ऊपर लो।" इस पंक्ति को देखते ही सहसा उन्हें इन पतित परिस्थितियों में इसकी उपयोगिता का एहसास हुआ। उन्होंने जब इसके स्रोत के बारे में जानना चाहा तो इसके जनक गेशे लांगतांगपा से पेनबो ज़िले में जाकर मिलने का परामर्श मिला। जब वे वहाँ पहुँचे तो उन्हें पता चला कि गेशे लांगतांगपा का निधन हो चुका था। अतः उनके मुख से इसे सुनने का सुअवसर गेशे चेकावा को प्राप्त नहीं हुआ। वहाँ के मठ की दशा से असंतुष्ट होकर वे दूसरी जगह चले गए।

फिर वे एक मठ में गए जहाँ गेशे शरावा हीनयान ग्रन्थ श्रावकभूमि - श्रावक (श्रोता) चित्त की अवस्थाएँ - पर प्रवचन दे रहे थे। प्रवचन उन्हें विशेष रुचिकर प्रतीत नहीं हुआ। उन्हें आशा थी कि उन्हें महायान के वचन सुनने को मिलेंगे परन्तु उन्हें निराश होना पड़ा। प्रवचन के बाद, गेशे शरावा मठ की परिक्रमा करने लगे तो चेकावा उनसे मिलने गए। वे अपनी मठीय गद्दी का ख़ोल अपने साथ ले गए थे जिसे उन्होंने एक मंच पर रख दिया, और उन्हें रुककर शिक्षा देने को कहा। शरावा ने कहा, "मैंने प्रवचन में अपने शिष्यों की शंकाओं का समाधान अपने आसन से ही कर दिया था। मुझे ऐसे विचित्र स्थान पर क्यों रोका?" तो चेकावा ने उस शिक्षा के बारे में बताया जिससे वे इतने प्रभावित हुए थे और उसके बारे में और अधिक सुनने की विनती की। शरावा ने अपना मंत्र पढ़ना बंद कर दिया, अपनी जपमाला को अपनी कलाई पर लपेट लिया, और कहा, "आप इस शिक्षा से प्रभावित हों या न हों, ज्ञानोदय प्राप्ति का यही एकमात्र मार्ग है।" चेकावा ने पूछा, "आपने अपने पूर्व प्रवचन में महायान के वचनों का प्रयोग क्यों नहीं किया?" शरावा ने कहा, "जो लोग मेरे वचनों को व्यवहार में नहीं लाएँगे, उनपर अपने शब्दों का अपव्यय करने से क्या लाभ?"

यद्यपि चेकावा उस साक्षात्कार से प्रभावित हुए परन्तु उन्होंने इस शिक्षा के स्रोतों के बारे में और जानकारी माँगी। वे इसकी व्युत्पत्ति जानना चाहते थे। शरावा ने कहा, “महायान के सभी अनुयायी नागार्जुन को उनकी परम्परा के पथ प्रणेता मानते हैं। वे सब उन्हें स्वीकार करते हैं। यह शिक्षण रत्नावली (बहुमूल्य माला) के अंतिम छंद 'पराजय को अपनेआप पर ले लो और दूसरों को विजय दे दो' पर आधारित है। तब चेकावा ने साष्टांग प्रणाम किया और कहा, "कृपया मुझे उसपर शिक्षा दें।" शरावा राज़ी हो गए। जब चेकावा घर पहुँचे तो उन्होंने रत्नावली  को पढ़ा और इस छंद को वैसे ही पाया जैसा कि शरावा ने कहा था। चेकावा ने शरावा के साथ चौदह साल बिताए और एक महान बोधिसत्व बन गए जो सदा श्मशानों में ध्यान लगाते थे - अर्थात वह स्थान जहाँ लोग शवों को, अंतिम  संस्कार के रूप में, काटकर गिद्धों को खिलाते हैं।

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