सप्तांग साधना

मैं संघ, धर्म, तथा बुद्धजन से, अपनी बोधि अवस्था तक शरणागति लेता हूँ। अपने दान की सकारात्मक शक्ति इत्यादि से, मैं भटके हुए लोगों की बुद्धत्व प्राप्ति द्वारा सहायता कर पाऊँ।

हर ओर धरती हथेली जैसी सपाट हो, कंकड़ों आदि से मुक्त, सौम्य, और फ़ीरोज़े की बनी हो।

अंतरिक्ष के गोले में दैवी और लौकिक अर्पण सामग्री वास्तव में सजी हो और निस्संग मेघ रूपी समन्तभद्र अर्पण सामग्री के रूप में दृष्ट हो।

  1. मैं धर्म को, संघ को, और उन बुद्धजन को साष्टांग प्रणाम करता हूँ जिन्होंने त्रिकाल दर्शन किया है, संसार में जितने अणु हैं उतनी कायाओं से शीश झुकाता हूँ।  
  2. जिन, जिस प्रकार मंजुश्री और अन्यों ने आपके समक्ष भेंट चढ़ाई है, उसी प्रकार मैं भी, हे तथागत, आपको और आपके आध्यात्मिक बोधिसत्त्वों को भेंट चढ़ाता हूँ। 
  3. मेरे अनादि सांसारिक अस्तित्व में, वर्तमान तथा अन्य जीवनकालों में, मैंने जाने-अनजाने नकारात्मक कृत्य किए हैं, या दूसरों को करने के लिए उकसाया है, और तो और, मूढ़ता की उद्भ्रांत अवस्था से त्रस्त होने के कारण, उन कृत्यों में आनंद पाया है - मैंने जो कुछ भी किया है, मेरे गुरुओं, मैं उन्हें, अपने हृदय की गहराईयों से, अपनी भूलों के रूप में देखता हूँ और आपके सामने स्वीकार करता हूँ।
  4. आपने प्रत्येक जीव को आनंद प्रदान करने के लिए जो बोधिचित्त लक्ष्य विकसित किए हैं, और आपके जिन कृत्यों ने सत्त्वों का मार्गदर्शन किया है, उस सकारात्मक शक्ति के महासागर में मैं, आनंदमग्न होकर, हर्षित होता हूँ।
  5. मैं हाथ जोड़कर, प्रत्येक दिशा के बुद्धजन से विनती करता हूँ: कृपया अन्धकार में भटकते पीड़ित सत्त्वों के लिए धर्म की ज्योति प्रज्ज्वलित करें।
  6. जिन, जो दुःख से परे है, मैं हाथ जोड़कर आपसे विनती करता हूँ: मैं आपसे भीख माँगता हूँ, अनंत युगों तक रहें ताकि अन्धकार में भटकते इन गामिनों का साथ न छूटे।
  7. इन सबसे मैंने जो भी सकारात्मक शक्ति अर्जित की है, उससे मैं सभी  का दुःख दूर कर पाऊँ।

बुद्ध-क्षेत्रों के रूप में इसकी कल्पना करते हुए, सुगन्धित जल से अभिषिक्त, फूलों से लदा, और मेरु पर्वत, चतुर्द्वीपों, सूर्य, चन्द्रमा से सजा यह पत्तर भेंट करके, वे सभी जो भटक रहे हैं पवित्र क्षेत्रों की ओर अग्रसर हों |

ओम् इदम गुरु रत्न मण्डल-काम नीर-यत्यामि| अमूल्य गुरुओं, मैं आपको यह मंडल भेंट करता हूँ |

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