प्रश्न: इस वर्ष [1988] आपने 26 देशों की शिक्षण यात्रा की। बौद्ध धर्म नए स्थानों पर किस प्रकार फैल रहा है इसके विषय में कृपया अपने विचार हमसे साँझा कीजिए।
डॉ बर्ज़िन: बौद्ध धर्म अब संसार में तेज़ी से फैल रहा है। कई यूरोपीय देशों, उत्तर अमरीका, दक्षिण अमरीका, दक्षिण अफ़्रीका, ऑस्ट्रेलॉशिआ इत्यादि में बौद्ध केंद्र हैं। यूरोप में हमें केवल पश्चिमी पूंजीवादी देशों में ही नहीं, बल्कि पूर्वी समाजवादी देशों में भी बौद्ध-धर्मी मिलते हैं। उदाहरणार्थ, पोलैंड में लगभग 5,000 सक्रिय बौद्ध-धर्मी हैं।
बौद्ध धर्म आधुनिक संसार को इसलिए आकर्षित करता है क्योंकि इसका आधार तर्कसंगत और वैज्ञानिक है। बुद्ध ने कहा था, "मेरे प्रति आदर के कारण मेरी किसी भी बात पर विश्वास मत कीजिए, पहले उसे स्वयं परख लीजिए, उसका विश्लेषण कीजिए, जैसे आप सोना खरीद रहे हों।" आधुनिक लोगों को यह ग़ैर-कट्टरपंथी रवैया पसंद है।
परम पावन दलाई लामा जैसे बौद्ध नेताओं और वैज्ञानिकों के बीच अनेक स्तरों पर संवाद चल रहा है। वे साथ मिलकर यथार्थ के विषय में चर्चा व खोज कर रहे हैं। बुद्ध का कहना था कि यथार्थ को न समझने से, उसकी उद्भ्रांत धारणा से सभी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। यदि हम यह समझ लें कि हम कौन हैं तथा संसार और हम किस प्रकार विद्यमान हैं, तो भ्रांति के कारण हम समस्याएँ उत्पन्न नहीं करेंगे। सत्य के शोध के प्रति बौद्ध-धर्म का अत्यंत खुला रवैया है। उदाहरण के लिए, परम पावन दलाई लामा का कहना है कि यदि वैज्ञानिक यह साबित कर दें कि बुद्ध अथवा उनके अनुयायियों द्वारा दी गई कोई भी शिक्षा अनुचित या केवल अंधविश्वास है, तो वे स्वेच्छापूर्वक उसे बौद्ध-धर्म से हटा देंगे। पश्चिमवासियों के लिए यह दृष्टिकोण अत्यंत आकर्षक है।
चूंकि अतीत में जहाँ-जहाँ बौद्ध-धर्म फैला विद्वान शिक्षकों ने उसे प्रत्येक समाज की संस्कृति के अनुरूप ढाला, इसलिए यह स्वाभाविक है कि आज के शिक्षक विभिन्न आधुनिक देशों में बौद्ध-धर्म को तनिक भिन्न रूपों में प्रस्तुत करें। सामान्य रूप से, बौद्ध-धर्म तर्कसंगत व्याख्या पर बल देता है। इस सन्दर्भ में, प्रमुख सांस्कृतिक विशेषताओं के आधार पर विभिन्न बिंदुओं तथा दृष्टिकोणों पर बल देने की आवश्यकता है।
बुद्ध ने इतनी विविध विधियाँ सिखाईं, क्योंकि लोगों में इतनी विविधता है। सबके दृष्टिकोण एक जैसे नहीं हैं। खाद्य-सामग्री को ही ले लीजिए। यदि शहर में एक ही प्रकार का आहार मिले, तो वह सबको पसंद नहीं आएगा। इसकी तुलना में, यदि भिन्न स्वाद के विभिन्न व्यंजन मिलें, तो सभी को अपनी पसंद का कुछ न कुछ मिल जाएगा। इसी प्रकार, व्यापक स्वाद वैविध्य के लोगों के विकास और बढ़त के लिए बुद्ध ने असीम विविधतापूर्ण विधियाँ सिखाईं। अंततः, बौद्ध-धर्म का उद्देश्य है कि हम अपनी सभी परिसीमाओं और समस्याओं पर विजय पाकर अपनी क्षमताओं को सिद्ध करके उस सीमा तक आत्म-विकास कर लें जहाँ पहुँचकर हम अधिकाधिक सभी की सहायता कर पाएँ।
स्विटज़रलैंड एवं संयुक्त राष्ट्र अमरीका जैसे कुछ पश्चिमी देशों में जहाँ मनोविज्ञान पर बल दिया जाता है, वहाँ पर शिक्षक प्रायः बौद्ध-धर्म को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रस्तुत करते हैं। अन्य देशों में, जहाँ लोगों का भक्ति-भावपूर्ण दृष्टिकोण है, जैसे दक्षिण यूरोप तथा लैटिन अमरीका के देश, वहां शिक्षक बौद्ध-धर्म को भक्ति-भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करते हैं। वहाँ के लोगों को मंत्रोच्चार करना बहुत अच्छा लगता है, और बौद्ध साधना में आप ऐसा कर सकते हैं। उत्तरी यूरोप के देशवासियों को मंत्रोच्चार करना अधिक पसंद नहीं है। वहाँ शिक्षक बौद्ध-धर्म पर बौद्धिक दृष्टिकोण से बल देते हैं।
पूर्वी यूरोप में कई लोगों की स्थिति बहुत निराशाजनक है। अपने जीवन के खोखलेपन के कारण वे बौद्ध-शिक्षाओं की ओर बहुत आकर्षित होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अपने व्यवसाय में वे मन लगाकर काम करें या न करें इससे कोई अंतर ही नहीं पड़ता। उन्हें इसका फल मिलता दिखाई नहीं देता। इसकी तुलना में, बौद्ध-धर्म उन्हें आत्म-सुधार की विधियाँ सिखाता है, जिससे परिणाम निकलकर सामने आते हैं और उनके जीवन के स्तर में सुधार होता है। इसके कारण वे बौद्ध-धर्म की भरपूर सराहना करते हैं और पूरी लगन से हज़ारों साष्टांग प्रणाम जैसी प्रथाओं में भाग लेते हैं।
इस प्रकार बौद्ध-धर्म, बुद्ध की प्रमुख शिक्षाओं को सुरक्षित रखते हुए, स्वयं को प्रत्येक समाज की संस्कृति और उसके लोगों की मानसिकता के अनुरूप ढाल लेता है। प्रमुख शिक्षाएँ वही रहती हैं - लक्ष्य है अपनी समस्याओं और सीमाओं से उबरकर अपनी सम्भाव्यताओं को सिद्ध करना। ऐसा करते समय साधक मनोवैज्ञानिक, बौद्धिक, वैज्ञानिक, अथवा धार्मिक दृष्टिकोण पर बल देते हैं यह संस्कृति पर निर्भर करता है।
सामान्यतः बौद्ध-धर्म 20वीं शताब्दी के अनुरूप किस प्रकार ढल रहा है?
बौद्ध-धर्म अपनी शिक्षाओं के प्रति तर्क-सम्मत वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर बल देकर स्वयं को ढाल रहा है। बौद्ध-धर्म जीवन के अनुभवों की स्पष्ट व्याख्या देता है और बताता है कि उनसे सर्वोत्तम रूप से किस प्रकार जूझें। फिर वह कहता है कि आँख मूँदकर किसी बात पर विश्वास मत करो; अपनी बुद्धि का प्रयोग करो, उसे स्वयं जाँचो-परखो और समझो कि उसमें तुक है या नहीं। यह वैसा है जैसे विज्ञान में हमें किसी परीक्षण के परिणाम स्वयं प्रयोग द्वारा सत्यापित करके फिर उन्हें स्वीकार करने के लिए कहा जाता है। आधुनिक लोग बिना जाँचे -परखे कुछ भी खरीदना पसंद नहीं करते; वे बिना जाँचे कार नहीं खरीदते। इसी प्रकार, बिना यह देखे कि नए धर्म में तुक है या नहीं, वे किसी अन्य धर्म अथवा जीवन के दर्शन को नहीं अपनाएँगे। इसलिए 20 वीं शताब्दी के कई लोगों को बौद्ध-धर्म अपनी ओर आकर्षित करता है। इसलिए बौद्ध-धर्म वैज्ञानिक जाँच-पड़ताल को स्वीकार करता है और लोगों को इस प्रकार धर्म का परीक्षण करने के लिए आमंत्रित करता है।