- प्रत्येक व्यक्ति एक सुखी जीवन जीना चाहता है, लेकिन बहुत कम लोग इस बात के अर्थ को समझते हैं या यह जानते हैं कि सुखी कैसे हुआ जाए।
- हमारे मनोभाव और दृष्टिकोण इस बात को प्रभावित करते हैं कि हम कैसा अनुभव करते हैं। अभ्यास और प्रशिक्षण से हम नकारात्मक मनोभावों र दृष्टिकोणों से मुक्ति पा सकते हैं और ऐसे मनोभावों और दृष्टिकोणों को विकसित कर सकते हैं जो अधिक हितकर और सकारात्मक हों। ऐसा करने से हमारा जीवन अधिक सुखी और संतोषप्रद होगा।
- क्रोध, भय, लोभ और मोह जैसे अशांतकारी मनोभाव हमारे चित्त की शांति को भंग करते हैं और आत्मनियंत्रण को समाप्त करते हैं। अभ्यास करके हम अपने आप को इन अशांतकारी मनोभावों के नियंत्रण से मुक्त कर सकते हैं।
- बाध्यकारी ढंग से क्रोध या लोभ का व्यवहार करने से हमारे लिए समस्याएं उत्पन्न होती हैं और दुख उत्पन्न होता है। अभ्यास करके हम अपने आप को शांत रखना, स्पष्टता से विचार करना और समझदारी से व्यवहार करना सीख सकते हैं।
- प्रेम, करुणा, धैर्य और विवेक जैसे सकारात्मक मनोभाव हमें शांत, साफदिल बनने में मदद करते हैं और हमें अधिक सुखी बनाते हैं। अभ्यास करके हम इन मनोभावों को विकसित करना सीख सकते हैं।
- आत्मकेंद्रित, स्वार्थी व्यवहार और विचार हमें दूसरों से दूर करते हैं और हमारे दुख का कारण बनते हैं। अभ्यास करके हम इन पर नियंत्रण पा सकते हैं।
- जब हमें यह बोध हो जाता है कि हम सभी परस्पर जुड़े हुए हैं और हम सभी का अस्तित्व एक दूसरे पर निर्भर करता है, तो इससे हम दूसरों के लिए फिक्रमंदी का भाव विकसित कर सकते हैं और इससे हमें और अधिक खुशी मिलती है।
- अधिकांश बातें जो हमें अपने आप में और दूसरों में दिखाई देती हैं, वे मिथ्यादृष्टि पर आधारित हमारी कल्पना का हिस्सा होते हैं। जब हम ऐसा मानने लगते हैं कि हमारी कल्पना ही वास्तविकता है तो हम स्वयं अपने लिए और दूसरों के लिए भी समस्याएं खड़ी करने लगते हैं।
- दोषरहित बोध की सहायता से हम भ्रम से मुक्त हो सकते हैं और वास्तविकता को देख पाते हैं। इस बोध की सहायता से हम जीवन में किसी भी प्रकार की परिस्थितियों का सामना शांत चित्त के साथ और समझदारी से कर सकते हैं।
- स्वयं को बेहतर व्यक्ति बनाने के लिए आत्मसुधार करना एक आजीवन चुनौती है, लेकिन यह हमारे जीवन का सबसे सार्थक है।