37 बोधिसत्त्व अभ्यास - शाब्दिक अनुवाद

10:15

लोकेश्वर को श्रद्धांजलि

मैं अपने त्रिकाय से सर्वोच्च गुरुओं और संरक्षक अवलोकितेश्वर को सदा सादर प्रणाम करता हूँ, जो दृश्य-प्रपंच को अनादि-अनंत जानते हैं और गामिनों के हितार्थ ही कर्म करते हैं।

पूर्ण ज्ञानोदय प्राप्त बुद्धजन, जो हितलाभ एवं आनंद के स्रोत हैं, ज्योति वलयित धर्म को (स्वयं) साकार करने के बाद ही प्रकट हुए हैं। इसके अतिरिक्त, चूंकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे इसके प्रयोग के बारे में जानते हैं, मैं एक बोधिसत्त्व के अभ्यास की व्याख्या करूँगा।

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