"सद" और "असद" या "सकारात्मक" और "नकारात्मक" की परिभाषाएं
हम नकारात्मक मनोभावों को कैसे नियंत्रित करें? यह एक महत्वपूर्ण विषय है- जो यह प्रश्न उठाता है कि सकारात्मक क्या है और नकारात्मक क्या है। क्या कुछ ऐसा है जो पूर्णतः नकारात्मक है या पूर्णतः सकारात्मक? वास्तव में मैं नहीं जानता। सब कुछ परस्पर निर्भर है और उसके विभिन्न आयाम हैं। एक द्रष्टा किसी चीज को एक कोण से देखता है और उसे एक पक्ष दिखाई देता है, परन्तु वही प्रेक्षक, जब दूसरी ओर से देखता है तो उसे चीजें भिन्न कोण से दिखाई देती हैं।
तब,ऐसा क्यों है कि प्रत्येक व्यक्ति का विश्व के विषय में भिन्न दृष्टिकोण है ? ऐसा इसलिए क्योंकि हममें से प्रत्येक व्यक्ति विश्व को भिन्न कोण से देखता है। यहां तक कि वही वस्तु उसी व्यक्ति को भी भिन्न-भिन्न प्रतीत होती है। अतः, सद और असद के बीच क्या विभेद और परिभाषा है? - मैं नहीं जानता। एक चींटा भी इसका विश्लेषण नहीं करता। परन्तु, फिर भी, यह समझता है कि जो उसे जीवित रखने में सहायक है वह अच्छा है और वह उसे अच्छा मानता है; और जो उसके जीवन के लिए घातक है वह उसे बुरा मानता है और उससे कतरा कर निकल जाता है।
अतः, संभवतः हम कह सकते हैं कि अच्छे और बुरे की परिभाषा उत्तरजीविता पर निर्भर है। हम आराम और सुख चाहते हैं और इसलिए जो जीवित रहने में सहायक है, उसे हम अच्छा मानते हैं- वह सकारात्मक है। जो चीज हम पर हमला करती है और जिसे हम जीवित रहने के लिए खतरा मानते हैं- हमें लगता है कि वह बुरी है- वह नकारात्मक है।
"नकारात्मक मनोभावों" की परिभाषा
इस रूप में सकारात्मक और नकारात्मक को परिभाषित किया जाए, तो हम नकारात्मक मनोभावों को कैसे नियंत्रित करें, सबसे पहले तो यह कि उन्हें हम कैसे परिभाषित करें? सबसे पहले, ये वो चीजें हैं जो हमारी आंतरिक शांति में विघ्न डालती हैं, यही कारण है कि हम उन्हें "नकारात्मक" कहते हैं। जो मनोभाव हमें आंतरिक शक्ति एवं शांति प्रदान करते हैं, वे "सकारात्मक" कहलायेंगे।
मैंने वैज्ञानिकों से जो चर्चाएं की हैं, विशेषतया महान वैज्ञानिक वरेला से, जो मेरे अभिन्न मित्र हैं, हमनें निष्कर्ष निकाला कि गहन करुणा एक मनोभाव है और अंततः हितकारी है। हम सहमत हुए कि यहां तक कि बुद्ध के चित्त में भी करुणा के रूप में कुछ मनोभाव हैं; अतः मनोभाव अनिवार्य रूप से अच्छे या बुरे नहीं होते। बुद्ध की असीम करुणा, उसे हमें मनोभाव मानना पड़ेगा। अतः बुद्ध असीम रूप से भावुक थे। यदि हम करुणा को मनोभाव मानें, तो यह अत्यंत सकारात्मक है। भय और घृणा, दूसरी ओर हमारी आंतरिक शांति और सुख को नष्ट करते हैं, तो हमें उन्हें नकारात्मक मानना पड़ेगा।
तर्क के आधार पर नकारात्मक मनोभावों को नियंत्रित करना
अब हम भय और घृणा जैसे नकारात्मक मनोभावों को कैसे नियंत्रित करें? हमें यह सोचना होगा कि किस प्रकार इन अहितकारी मनोभावों का कोई पुष्ट आधार नहीं है। यह एक अवास्तविक दृष्टिकोण की देन हैं; जबकि सकारात्मक मनोभाव किसी पुष्ट आधार पर आधारित होते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ मनोभावों को विवेक एवं तर्क से संवर्धित किया जा सकता है; अतः उनका पुष्ट आधार होता है। नकारात्मक मनोभाव अपने आप जन्म लेते हैं, परन्तु जब हम विश्लेषण और तर्क से काम लेते हैं तो वे निर्मूल हो जाते हैं- उनका कोई पुष्ट आधार नहीं होता। अतः सकारात्मक मनोभाव वास्तविकता से संबद्ध होते हैं, और नकारात्मक वास्तविकता की विकृति पर या अज्ञान पर आधारित होते हैं।
उदाहरण के लिए, जब हम किसी शत्रु पर क्रोधित होते हैं, उस पल क्रोधवश हमें लगता है कि उसके कृत्य हमारे लिए घातक हैं। इसलिए, हम सोचते हैं कि यह व्यक्ति बुरा है। परंतु, जब हम विश्लेषण करते हैं, तो हमें यह अनुभव होता कि यह व्यक्ति हमारा जन्मजात शत्रु नहीं। यदि वह हमें हानि पहुंचा रहा है तो उसके भिन्न-भिन्न कारण होंगे, उसका कारण वह व्यक्ति नहीं है। यदि वह व्यक्ति वास्तव में "शत्रु" की श्रेणी का होता तो वह जन्म से हमारा शत्रु होता और कभी भी हमारा मित्र न बन पाता। परन्तु भिन्न परिस्थितियों में ऐसे लोग हमारे प्रिय मित्र बन सकते हैं। अतः किसी व्यक्ति के प्रति क्रोध अथवा घृणा अनुचित है।
अनुचित उसके कृत्य हैं, वह व्यक्ति नहीं। परन्तु मात्र किसी व्यक्ति के अनुचित कृत्यों पर आधारित क्रोध उस व्यक्ति पर केंद्रित हो जाता है। दूसरी ओर, करुणा प्रायः व्यक्ति पर केंद्रित होती है चाहे उसके कृत्य कैसे भी हों। अतः, हम किसी शत्रु के प्रति भी करुणा भाव रख सकते हैं इस आधार पर कि वह शत्रु एक मनुष्य है।
तो इस प्रकार हमें किसी व्यक्ति और उसके कृत्यों में विभेद करना होगा। मानव के रूप में,उस व्यक्ति के प्रति करुणा भाव, परन्तु उसके कृत्यों के प्रति विरोध का भाव होना चाहिए। अतः, नकारात्मक मनोभाव अत्यंत संकीर्ण चित्त की उपज है। वह केवल एक पक्ष पर केंद्रित होता है- किसी के अनुचित कृत्य।
परन्तु करुणा के विषय में हमें विभेद करना होगा। एक प्रकार की करुणा जैविक कारक पर आधारित होती है। इसका झुकाव किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति होता है जो हमें लाभ पहुंचाता है, जैसे हमारी माता। या हम तर्क पर आधारित करुणा की बात करें जो कि पूर्वग्रह रहित होती है? जो करुणा तर्क पर आधारित होती है वह कहीं बेहतर होती है,वह पूर्वग्रह रहित होती है, वह तर्क पर आधारित होती है। यह व्यक्ति केंद्रित होती है, कृत्य केंद्रित नहीं। कोई नकारात्मक मनोभाव जो केवल कृत्य केंद्रित हो वह तर्क संगत नहीं होता और, इससे से भी बढ़कर, यह सुख प्रदान नहीं कर सकता।
क्रोध जैसे नकारात्मक मनोभावों की हानियों का विश्लेषण
तो फिर, नकारात्मक मनोभावों को नियंत्रित करने के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है विश्लेषण। उदाहरण के लिए, मुझे क्रोध से क्या लाभ मिलता है? यह सच है कि क्रोध से हमें प्रबल ऊर्जा मिलती है। अपने रोज़मर्रा के जीवन में भी, अपनी भाव-भंगिमा और वाचिक अभिव्यक्तियों में हम इसे देख सकते हैं। जब हम क्रोधित होते हैं,तो इन दोनों में बहुत कटुता आ जाती है। हम संकल्प करके कटु से कटु शब्दों का व्यवहार करते हैं जो दूसरे को चोट पहुंचा सके। उसके बाद, जब क्रोध शांत हो जाता है, ऊर्जा कम हो जाती है जो अत्यंत प्रबल तथा हिंसक थी और चित्त वास्तव में स्पष्टता से अनुभव कर पाता है। अतः जो ऊर्जा क्रोध को जन्म देती है वह एक प्रकार की अंध ऊर्जा है क्योंकि चित्त स्पष्टता से सोच नहीं पाता। इस प्रकार, वास्तव में क्रोध कभी सहायक नहीं हो पाता- इसके विपरीत यदि हम बुद्धिमत्तापूर्ण, यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाएं तो वह अत्यंत सहायक हो सकता है। यहां तक कि कचहरी में भी यदि कोई वकील क्रोध में चीखता-चिल्लाता है, तो वह बिलकुल सहायक नहीं होगा; जबकि यदि वह वकील बुद्धि का प्रयोग करता है, तो वह दूसरे को हरा सकता है।
इस प्रकार, क्रोध स्पष्ट रूप से सोचने की बुद्धि की क्षमता को नष्ट करता है। क्रोधवश बोले गए शब्द हमारे निर्णय करने की क्षमता को क्षति पहुंचा सकते हैं। अतः बुद्धि के माध्यम से, हम समझ सकते हैं कि क्रोध करने का कोई लाभ नहीं है। यदि, किसी कठिन, घातक स्थिति में, हम अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए समुचित प्रतिकारी कदम उठा सकते हैं तो वह अधिक हितकारी होगा। दूसरे शब्दों में, दूसरे व्यक्ति के प्रति करुणा भाव रखते हुए, हम आगे चलकर मित्र बन जाने की संभावना का द्वार खोल देते हैं। यदि हम क्रोध करते हैं, तो वह आगामी मित्रता के रास्ते बंद कर देता है। यह सोचकर नकारात्मक मनोभाव को क्षीण किया जा सकता है। यदि वह पुनः जाग्रत होगा भी तो दुर्बल होगा।