गौण बोधिसत्व संवर

परिचय

गौण बोधिसत्व संवरों का उद्देश्य 46 सदोष कृत्यों का निग्रह करना होता है। इन सदोष कृत्यों को सात समूहों में बांटा जाता है जिनमें से प्रत्येक समूह छह पारमिताओं की हमारी साधना के लिए और दूसरों की भलाई करने की दृष्टि से अहितकर होते हैं।

ये छह पारमिताएं हैं:

  • दानशीलता
  • नैतिक आत्मानुशासन
  • धैर्य
  • लगनशीलता
  • मानसिक स्थिरता (एकाग्रता)
  • सविवेक बोध (प्रज्ञा)

हालाँकि सदोष कृत्य हमारी ज्ञानोदय प्राप्ति के प्रतिकूल होते हैं और उसे बाधित करते हैं, किन्तु चार आबद्धकारी कारकों के साथ इन्हें किए जाने पर भी हमारे बोधिसत्व संवर नष्ट नहीं होते हैं। लेकिन, ये कारक जितने अधिक अपूर्ण होते हैं, बोधिसत्व मार्ग पर हमारे आध्यात्मिक विकास को उतनी ही कम क्षति पहुँचती है। यदि हमसे इनमें से कोई सदोष कृत्य हो जाए तो हम अपनी गलती को स्वीकार करते हैं और इनके प्रभाव को खत्म करने वाले प्रतिबलों को लागू करते हैं, जैसाकि मूल बोधिसत्व संवरों के मामले में किया जाता है।

[देखें: मूल बोधिसत्व संवर]

इन 46 कृत्यों के बारे में बहुत सी बातें सीखने की आवश्यकता होती है क्योंकि ऐसे कई अपवाद हैं जब इन कृत्यों को करने से कोई दोष नहीं लगता है। किन्तु व्यापक दृष्टिकोणों को विकसित करने की दृष्टि से हमें होने वाली क्षति और दूसरों की भलाई कर पाने की हमारी क्षमता का ह्रास हमारे सदोष कृत्यों के पीछे की प्रेरणा पर निर्भर करता है। यदि यह प्रेरणा आसक्ति, क्रोध, द्वेष या अहंकार जैसी अशांतकारी चित्तावस्था की हो तो होने वाली क्षति किसी गैर-अशांतकारी किन्तु अहितकारी चित्तावस्था जैसे उदासीनता, आलस्य, या विस्मृति की प्रेरणा से होने वाली क्षति की तुलना में बहुत अधिक होती है। उदासीन होने की स्थिति में हम अपनी साधना में श्रद्धा या सम्मान खो देते हैं जिसके कारण हम साधना को जारी रखने की परवाह नहीं करते। आलस्य होने पर हम इसलिए अपनी साधना की अनदेखी करते हैं क्योंकि हमें कुछ न करना अधिक अच्छा और आसान लगता है। सचेतनता का अभाव होने पर हम दूसरों की सहायता करने की अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरी तरह से भुला देते हैं। इन 46 कृत्यों में से बहुत से कृत्यों के लिए हम दोषी नहीं होते हैं यदि अन्ततः हम उन्हें अपने व्यवहार में से खत्म कर देने का इरादा रखते हों, किन्तु हमारे अशांतकारी मनोभाव और दृष्टिकोण अभी भी इतने दृढ़ होते हैं कि हम आत्मनियंत्रण नहीं रख पाते हैं।

यहाँ दी गई प्रस्तुति 15वीं शताब्दी के गेलुग आचार्य त्सोंग्खापा द्वारा रचित बोधिसत्वों के नैतिक आत्मानुशासन की व्याख्या: ज्ञानोदय प्राप्ति का मुख्य मार्ग पर आधारित है।

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