तिब्बती ज्योतिष शास्त्र और कर्म

ज्योतिष शास्त्र सीखने के लाभ

बौद्ध सन्दर्भ में जब हम किसी व्याख्यान के आरम्भ में अपनी प्रेरणा की पुनः पुष्टि करते हैं, तो हम सदा इस बात पर बल देते हैं कि सुनने के पीछे हमारा उद्देश्य है कुछ नया सीखना जो हमारे जीवन में हमारी सहायता कर सके | विशेष रूप से, हम कुछ ऐसा सीखना चाहते हैं जो न केवल हमारी समस्याएँ सुलझाने में हमारी सहायता कर सके, अपितु हमें दूसरों की सहायता करने के लिए भी सक्षम बनाए | इस सन्दर्भ में जब हम ज्योतिष शास्त्र के बारे में सोचते हैं, तो हमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि उसके अध्ययन से हम क्या पाएँगे |

एक स्तर पर ज्योतिष विद्या का ज्ञान हमें भावी जीवन की घटनाओं के बारे में बताता है | इस ज्ञान से हम समस्याओं से बचने के लिए निवारक उपाय अपना सकते हैं | अंततः धर्म का शाब्दिक अर्थ है निवारक उपाय | परन्तु हमें सतर्क रहना चाहिए  ताकि हम अंधविश्वासी न बन जाएँ और यह न सोचने लगें कि सब कुछ पूर्वनिर्धारित है - कि कुछ समस्याएँ तो अवश्य ही आएँगी - क्योंकि यह जीवन के प्रति बौद्ध दृष्टिकोण नहीं है | विशेषतः फलित ज्योतिष पर विचार करते हुए उसे कर्म सम्बन्धी बौद्ध शिक्षाओं के सन्दर्भ में समझना आवश्यक है |

एक दूसरे स्तर पर ज्योतिष शास्त्र सीखकर हमें स्वयं को समझने के लिए मार्गदर्शन मिलता है ताकि हम अपनी भावात्मक समस्याओं को समझ पाएँ | एक सामान्य स्तर पर उसकी विशेषताएँ जैसे ग्रह, राशि, आदि हमें एक विश्लेषणात्मक ढाँचा देती हैं जिसके भीतर हम अपने जीवन और अपने व्यक्तित्व को समझ सकते हैं |

जब हम किसी की सहायता करना चाहते हैं, तो यह समझना आसान नहीं होता कि उसे किस प्रकार की समस्या है अथवा उससे सम्प्रेषण की सबसे उत्तम विधि क्या है | उसकी कुंडली की कुछ जानकारी, और वह हमारी कुंडली से कितनी मिलती है, इस बात में हमारी सहायता करती है कि आरम्भ में हम उससे कैसे बात करें | हमें इसे फिर से बौद्ध सन्दर्भ में देखने की आवश्यकता है | यह बहुत आवश्यक है कि हम लोगों को ठोस वर्गों में बाँटकर ऐसा न सोचें, "ओह, यह व्यक्ति तो तुला है और मैं सिंह हूँ; मुझे इससे ऐसा व्यवहार करना चाहिए | वह महिला वृष है, तो मुझे वैसा व्यवहार करना चाहिए |"  ऐसी त्रुटिपूर्ण सोच से वैयक्तिकता और नम्यता के लिए कोई स्थान नहीं बचता | जब हमें बिलकुल पता न हो कि किसी व्यक्ति से पहली बार कैसे संपर्क स्थापित करना है, तब ज्योतिष शास्त्र हमारा मार्गदर्शन करता है | हमें इस दृष्टिकोण से ज्योतिष शास्त्र की ओर अग्रसर होना चाहिए और उसे कर्म और शून्य सम्बन्धी बौद्ध शिक्षाओं के सन्दर्भ में समझना चाहिए |

विश्व में पाए जाने वाली शास्त्र की अनेकों परम्पराओं में से तिब्बती - मंगोल प्रणाली अधिक जटिल प्रणालियों में से एक है | यह पश्चिमी ज्योतिष शास्त्र से कहीं अधिक जटिल है | यहाँ हम इस विषय का केवल एक संक्षिप्त सर्वेक्षण करेंगे ताकि हमें इसके अवयवों का कुछ ज्ञान हो | मंगोल ज्योतिष शास्त्र मुख्य तिब्बती ज्योतिष पद्धति का एक किंचित भिन्न रूपभेद है, परन्तु परिचय के लिए हम सामान्यतया तिब्बती - मंगोल प्रणाली की बात करेंगे | फिर हम कर्म और शून्यता से ज्योतिष शास्त्र के सम्बन्ध की ओर देखेंगे | परवर्ती चर्चा तिब्बती - मंगोल ज्योतिष शास्त्र तक विनिर्दिष्ट या सीमित नहीं है; अपितु वह ज्योतिष शास्त्र की सभी पद्धतियों के लिए प्रासंगिक है |

तिब्बती - मंगोल ज्योतिष शास्त्र की विषय व्याप्ति

तिब्बती - मंगोल ज्योतिष शास्त्र विभिन्न विषयों पर ध्यान देता है | अधिकतर लोग सोचते हैं कि ज्योतिष शास्त्र का तात्पर्य है गणना करना और जन्मकुंडलियों की व्याख्या करना, और जब आप तिब्बती-मंगोल ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन करते हैं, आप अवश्य यह करना सीखते हैं | परन्तु तिब्बती और मंगोल जन्मकुण्डलियाँ केवल जातक के व्यक्तित्व के चित्र ही नहीं दिखलातीं | वे यह भी बताती हैं कि आने वाले वर्षों में उस व्यक्ति का जीवन कैसा बीतेगा - प्रगमित जन्मकुंडली - यह पश्चिमी जन्मकुंडलियों की तुलना में एक बहुत अलग ढंग से व्याख्यायित की जाती हैं |

यदि आपके पास किसी की जन्म तिथि और पंचांग के सन्दर्भ में उनके जीवनकाल की प्रगति का विवरण न हो तो आप उसकी जन्मकुंडली नहीं बना सकते | इसलिए, तिब्बती व मंगोल पंचांगों को बनाने के लिए अध्ययन का एक मुख्य अंग है गणित और गणना | ये पश्चिमी पंचांगों से बहुत भिन्न हैं | इसके अतिरिक्त, यदि आपको जन्म के समय और भावी जीवन में ग्रहों की निश्चित अवस्था पता न हो, तो आप जन्मकुंडली नहीं बना सकते |  प्रशिक्षण का एक प्रमुख अंग है गणित, जिससे तिब्बती-मंगोल पंचांग की गणना की जाती है | दूसरे शब्दों में ग्रहों की दैनिक अवस्थिति तय की जाती है | यद्यपि, पश्चिम की भाँति, यहाँ भी, इन अवस्थितियों में त्वरित परामर्श के लिए, कुछ पत्रक उपलब्ध हैं, परन्तु, तिब्बती और मंगोल ज्योतिषी अधिकांशतः स्वयं गणना करते हैं |  

ज्योतिषी, पंचांग के साथ-साथ, जंत्री भी बनाते हैं | जंत्री खेतों में बीज बोने, फसल काटने, तथा समाज के ऐसे अन्य आवश्यक विषयों के लिए सबसे शुभ दिन और समय भी बताती है |

तिब्बती मंगोल ज्योतिष शास्त्र भी, तिब्बती मंगोल चिकित्सा-विज्ञान की तरह, भारतीय, प्राचीन यूनानी, चीनी, मध्य एशियाई, एवं स्थानीय बॉन मूल के पहलुओं का एक अद्वितीय सम्मिश्रण है | यह सामग्री दो प्रमुख भागों में बाँटी जा सकती है: "श्वेत गणना" और "श्याम गणना" | इस संज्ञा का अच्छे या बुरे से कोई सम्बन्ध नहीं है, जैसे "सफ़ेद" या "काला" जादू | तिब्बती भाषा में ये केवल क्रमशः भारत तथा चीन के नामों के संक्षिप्त रूप हैं | तिब्बत में यह माना जाता है कि भारत "एक विशद भूमि है जहाँ लोग सफ़ेद कपड़े पहनते हैं", तथा चीन "एक विशद भूमि है जहाँ लोग काले कपड़े पहनते हैं" |

श्वेत गणना एवं कालचक्र

भारत में अनेक मिलती-जुलती ज्योतिष शास्त्र की प्रणालियों का विकास हुआ, जिनमें कई हिन्दू एवं एक बौद्ध है |  कालचक्र तंत्र की सामग्री में पाई गई भारतीय बौद्ध प्रणाली से श्वेत गणना की उत्पत्ति हुई | कालचक्र का अर्थ है 'समय के चक्र', जिनके तीन स्तर हैं: बाह्य, आतंरिक, तथा वैकल्पिक चक्र | बाह्य चक्रों से अभिप्राय है वे चक्र जिनसे ब्रह्माण्ड गुज़रता है | इन चक्रों के कारण ही, सूर्य, चंद्र, तथा ग्रहों के गतिकाल की सहायता से, हम समय को बाह्य रूप से माप सकते हैं | अंततः, बौद्ध धर्म के अनुसार समय की परिभाषा तो परिवर्तन का मापन ही है | इसके अतिरिक्त, हम खगोलीय पिंडों की पारस्परिक गति के स्वरुप के आधार पर ही तो जन्म-कुंडली बनाते हैं | खगोल-विद्या तथा ज्योतिष-शास्त्र के सम्पूर्ण अध्ययन का सम्बन्ध इन्हीं बाह्य चक्रों से है | 

आंतरिक स्तर पर आप समय की गति को अपने शरीर के चक्रों के द्वारा भी माप सकते हैं | उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति कितनी बार साँस लेता है, इससे समय को मापा जा सकता है | इसको आप मानव जीवन की बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था, या महिला के रजोस्राव चक्र से भी माप सकते हैं | अतः समय के बाह्य तथा आभ्यन्तर चक्र होते हैं; और कालचक्र शिक्षाओं के अनुसार ये एक दूसरे के समानांतर होते हैं |

बौद्ध दृष्टिकोण से देखने पर हम कहेंगे कि इन चक्रों पर साधारण जीवों का कोई नियंत्रण नहीं होता | ये चक्र कर्म के बल से या ऊर्जा के आवेग से उत्पन्न होते हैं | खगोलीय पिंडों की दैनिक अवस्था की चलित कुंडली को बताने वाले बाह्य चक्र सामान्य सामूहिक कर्म से उत्पन्न अथवा 'परिपक्व' होते हैं | लोगों की जन्मकुंडली बताने वाले आभ्यन्तर चक्र अलग अलग व्यक्तियों के व्यक्तिगत कर्मों से परिपक्व होते हैं | हमें विभिन्न प्रकार की समस्याएँ इसलिए झेलनी पड़ती हैं, क्योंकि इन चक्रों और उनके प्रभावों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता |

उदाहरण के लिए कुछ लोगों पर उनकी जन्मकुंडली की समाकृतियों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है | इन्हें अपने व्यक्तिगत जीवन के अतिरिक्त लम्बी सर्दियों या पूर्णिमा जैसे बाह्य चक्रों का सामना करने में कठिनाई होती है | नरवृक (वरवुल्व्ज़) की भाँति कुछ लोग पूर्णिमा पर मानसिक रूप से विचलित हो जाते हैं | लोगों को आतंरिक चक्रों का सामना करने में भी कठिनाई होती है: हॉर्मोन विकास का चक्र जैसे यौवन, रजोस्राव चक्र, आयुर्वृद्धि आदि से गुज़रना | बौद्ध धर्म में हमारा प्रयास रहता है कि हम ‘संसार’ नामक इन अनियन्त्रित पुनरावृत्त चक्रों से मुक्ति पाएँ, और ज्ञानोदय प्राप्त बुद्ध बनकर दूसरों की अधिकाधिक सहायता कर पाएँ |

मुक्ति और प्रबोधन पाने के लिए कालचक्र साधना की विभिन्न पद्धतियाँ हैं जो वैकल्पिक कालचक्र से उत्पन्न हुई हैं | यह मुख्य बिंदु इस बात की ओर संकेत करता है कि बौद्ध धर्म का ज्योतिष शास्त्र की ओर झुकाव है परन्तु हम जन्मकुंडली जैसे ज्योतिषीय लक्षणों की दासता से मुक्त होना चाहते हैं | बौद्ध धर्म के अनुसार, किसी उत्पत्ति के अभाव में प्रत्येक व्यक्ति के मानसिक सातत्य या चित्तसरणि को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हैं, और, यदि हमने स्थिति को बदलने की चेष्टा नहीं की तो, उसे एक से दूसरे जन्म निरंतर इसका सामना करना पड़ेगा | इसका अर्थ है कि हमें अपने इस जन्म की व्यक्तिगत जन्मकुंडली से ही नहीं, आभ्यंतर रूप से आने वाले भावी जन्मों की जन्मकुंडलियों से भी मुक्ति पाने की चेष्टा करनी चाहिए | दूसरे शब्दों में, राशिचक्र से मुक्ति पाना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए |

इस दृष्टिकोण से हम समझ सकते हैं कि जन्मकुंडली ऐसी कोई ठोस या निश्चित वस्तु नहीं है, जो अनिवार्य रूप से हमारा दिशा-निर्देशन करे, और जिसका हम बिलकुल विरोध न कर सकें | ऐसे काल्पनिक बंधनों से हमें मुक्त होना चाहिए, और ऐसा करने के लिए, हमें अपनी कुंडली विशेष, तथा सामान्य रूप से अन्य कुंडलियों का थोड़ा-बहुत ज्ञान आवश्यक है | तो, इस सन्दर्भ में, हमारे लिए ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन आवश्यक है - चाहे वह तिब्बती-मंगोल हो, भारतीय हिन्दू हो, चीनी हो, अरबी हो, मायन हो, या पश्चिमी हो | हमारी इच्छा है कि हम इस जन्म की अपनी व्यक्तिगत कुंडली से ही नहीं, ग्रह, नक्षत्र, आदि की गति से मापे जाने वाले निरंतर बदलते कालचक्र से भी मुक्ति पाएँ | यह बात समझना अति आवश्यक है | अन्यथा, हम आसानी से ज्योतिष से जुड़े अंधविश्वास के शिकार बन सकते हैं, विशेषतः तिब्बती-मंगोल ज्योतिष विद्या के, क्योंकि उसमें 'शुभ' और 'अशुभ दिनों' का भरपूर वर्णन है |

पश्चिमी ज्योतिष शास्त्र से सम्बन्ध

तिब्बती-मंगोल पंचांगों के अधिकाँश लक्षणों की गणना के लिए, पत्रा में ग्रह, नक्षत्र आदि की स्थिति के लिए, और शुभ, अशुभ दिन जैसे, जंत्री के अनेक कारकों के लिए 'कालचक्र तंत्र' ही स्रोत है | चूँकि तिब्बत और फिर मंगोलिया में फैलने से पहले कालचक्र शिक्षाएँ भारत में विकसित हुईं, इसलिए उसमें और हिन्दू ज्योतिष प्रणाली में बहुत-सी समानताएँ हैं | इसी प्रकार, हिन्दू ज्योतिष शास्त्र, और प्राचीन भारतीय संस्कृति के कई पहलुओं, और प्राचीन यूनानी संस्कृति में बहुत-सी समानताएँ हैं, क्योंकि इन दोनों सभ्यताओं का, सिकंदर महान के काल से, निकट सम्बन्ध रहा | तो आइए, हम, पहले, इन समानताओं की ओर देखें | आधुनिक पश्चिमी ज्योतिष शास्त्र में भी यह समानताएँ पाई जाती हैं, क्योंकि यह भी प्राचीन यूनानी परम्परा से उद्भूत हुआ |

तिब्बती-मंगोल ज्योतिष में हम ग्रहों की स्थिति की गणना केवल शनि ग्रह तक ही करते हैं, उसके आगे नहीं, और सप्ताह के दिनों के नाम खगोलीय पिंडों के नामों पर रखे जाते हैं, जैसे सूर्य के लिए रविवार, चन्द्रमा के लिए सोमवार | ऐसा इसलिए है क्योंकि शनि ग्रह के आगे के ग्रह हम कोरी आँखों से नहीं देख सकते | राशि चक्र को भी बारह राशि चिन्हों में बाँटा गया है, जिनके नाम वही हैं जो यूनानी और भारतीय हिन्दू प्रणालियों में पाए जाते हैं | ये वही नाम हैं जो हमारी पश्चिमी प्रणाली में भी प्रयुक्त होते हैं - जैसे मेष, वृषभ आदि | बारह भावों का भी विभाजन है जिनमें से कुछ की व्याख्या पश्चिमी ज्योतिष शास्त्र में पाए जाने वाले भावों से भिन्न है | जैसा कि पश्चिमी जन्म-कुंडली में पाया जाता है, प्रत्येक ग्रह, नक्षत्र आदि का एक भाव और एक राशि है, जिनका संयोजन कुंडली में उस ग्रह या नक्षत्र आदि के अर्थ एवं महत्त्व को प्रभावित करता है |

राशि और भाव

जिन्हें ज्योतिष शास्त्र का बिल्कुल ज्ञान नहीं है उनके लिए, आइए मैं संक्षेप में समझाऊँ कि राशि और भाव क्या हैं | दोनों का सम्बन्ध खगोलीय विशेषताओं से है |

यदि आप आकाश की ओर देखें तो आप पाएँगे कि सूर्य, चंद्र, और ग्रह - इन्हें सौर पिंड कह सकते हैं - सब एक निश्चित वृत्त में पूर्व से पश्चिम की ओर चलते हैं | प्राचीन काल में लोग नहीं जानते थे कि धरती घूमती है | उनका मानना था कि आकाश और सौर पिंड धरती के चक्कर लगाते हैं | वे सोचते थे कि सौर पिंड के प्रमुख ग्रह आदि आकाश के जिस मार्ग से होकर जाते हैं - क्रांतिवृत्त - वह एक बहुत बड़े, वामावर्त दिशा में धीरे-धीरे घूमने वाले, पहिये के समान है जिसका आधा भाग पृथ्वी के नीचे है | यदि हम एक आधुनिक उदाहरण दें, तो हमारा दृष्टिकोण उस व्यक्ति के समान है जो एक, बहुत धीमी गति से घूमते हुए, फेरिस व्हील के बीचों-बीच खड़ा है: इसका आधा भाग हमारे ऊपर है, आधा नीचे है |

यदि आप इस आकाश-मार्ग को एक धीमी गति से घूमते फेरिस व्हील की तरह देखें, तो आप इस चक्र को बारह भागों में बाँट सकते हैं, जिनमें से आकाश में एक समय पर केवल छह ही दिखते हैं | इस चक्र के प्रत्येक भाग में एक प्रमुख तारामंडल है, जैसे फेरिस व्हील की सीटें होती हैं | यह तारामंडल राशिचक्र के बारह चिह्न हैं |

अब, सोचिए कि यह फेरिस व्हील एक बहुत विशाल गोले-रूपी भवन के भीतर धीमी गति से घूम रहा है | जिस गोले के भीतर यह फेरिस व्हील घूमता है, उसकी भीतरी दीवार पर फैली पट्टी को यदि आप बारह भागों में बाँट दें, तो ये बारह भाव बनेंगे | ये हिलते नहीं हैं | अतः, उस गोले की पट्टी का वह भाग जो हमारे पूर्व में नीचे की ओर पश्चिम दिशा में छठे भाग तक जाता है, वह पहला भाव है | अगला छठा भाग दूसरा भाव है, इत्यादि | पहले छह भाव हमारे नीचे हैं - दूसरे शब्दों में, क्षितिज के नीचे - अंतिम छह ऊपर | मान लीजिए कि पहला स्थान, मेष राशि, हमारी पूर्वी दिशा में गोले की भीतरी दीवार से बिंदु के बगल में है - लग्न | फेरिस व्हील इतनी धीमी गति से घूमता है कि दूसरे स्थान, वृषभ राशि, को उस बिंदु तक पहुँचने में एक महीना लगता है | जब मेष राशि दीवार के उस बिंदु तक दोबारा पहुँचती है, एक साल बीत चुका होता है |

अब कल्पना कीजिए कि यह फेरिस व्हील, जो गोलाकार भवन में धीमी गति से उलटी दिशा में घूम रहा है, एक खोखले टायर के समान है जिसके भीतर नौ गेंदें सीधी दिशा में अपनी अलग-अलग गति से घूमती हैं | ये नौ गेंदें ग्रह, नक्षत्र, आदि हैं | सूरज की गेंद इस टायर के भीतर एक दिन में चक्कर लगाती है; चन्द्रमा की गेंद को एक चक्कर लगाने में एक महीना लगता है, आदि | इस प्रकार, किसी भी विशेष समय पर यह ग्रह नक्षत्र एक विशेष राशि और एक विशेष भाव में होते हैं, और यह स्थान निरंतर बदलता रहता है | जन्मकुंडली एक विशेष समय पर खींचे गए चित्र के समान है, जैसे किसी के जन्म का समय, जो पृथ्वी के ऊपर अथवा नीचे फैले आकाश के विशेष भाग में धीमी गति से घूमते राशिचक्र की पट्टी में प्रत्येक घूमते ग्रह, नक्षत्र, आदि का स्थान बताती है |

गृह, नक्षत्र आदि, राशियों और भावों की यह प्रणाली तिब्बती-मंगोल, भारतीय हिन्दू, प्राचीन मिस्र एवं आधुनिक पश्चिमी ज्योतिष प्रणालियों के समान है | परन्तु बाद की दो प्रणालियों के विपरीत भारतीय तथा तिब्बती-मंगोल प्रणालियों में क्रांतिवृत्त के फेरिस व्हील को 27 राशियों के एक दूसरे राशिचक्र में बाँटा जाता है | कभी-कभी वे फेरिस व्हील पर बारह के स्थान पर सत्ताईस सीटें लगाते हैं | वे 27 नक्षत्र वाले राशिचक्र का प्रयोग पंचांग, पत्रा, और जंत्री की गणना के लिए, और 12 राशि वाले का प्रयोग जन्मपत्री के लिए करते हैं |

स्थिर-तारा एवं नाक्षत्रिक राशि-चक्र

भारतीय हिन्दू तथा तिब्बती मंगोल प्रणालियों में राशि-चक्र सम्बन्धी एक समानता और है जो प्राचीन मिस्र एवं आधुनिक पश्चिमी प्रणालियों से उल्लेखनीय रूप से भिन्न है | पहली दो प्रणालियाँ स्थिर-तारा अथवा नाक्षत्रिक राशि-चक्र का प्रयोग करती हैं, जबकि अंतिम दो सायन  राशिचक्र का | वास्तव में ऐसा हुआ कि कालचक्र प्रणाली में भारतीय हिन्दू ज्योतिष प्रणाली में प्रयुक्त होने वाले स्थिर-तारा राशि-चक्र की आलोचना की और सायन राशिचक्र को बढ़ावा दिया | परन्तु, जब तिब्बतियों ने कालचक्र राशि प्रणाली को अपनाया तो उन्होंने इस लक्षण की उपेक्षा की और स्थिर-तारा पद्धति का पुनः प्रयोग किया, यद्दपि यह भारतीय हिन्दू प्रणाली से पूर्ण रूप से भिन्न थी | 

तिब्बती-मंगोल कालचक्र और भारतीय हिन्दू प्रणालियों के राशि चक्रों के अंतर समझाने से अच्छा है कि बारह भावों वाला राशि चक्र, जो इन सभी प्रणालियों में पाया जाता है, के सन्दर्भ में स्थिर-तारा एवं सायन राशिचक्र का अंतर बतलाया जाए | अंतर इस रूप में है कि ये प्रणालियाँ फेरिस व्हील पर बारह सीटें कहाँ रखती हैं, और ये सीटें स्थिर हैं या बहुत धीमी गति से घूमती हैं | 

मान लीजिए कि फेरिस व्हील बारह वर्गों में बँटा हुआ है और प्रत्येक वर्ग का नाम राशियों के नाम पर है | प्रत्येक सीट का नाम भी किसी एक राशि के आधार पर है |  तिब्बती-मंगोल और भारतीय हिन्दू प्रणालियाँ बारह सीटों को फेरिस व्हील पर ठीक उस स्थान पर रखती हैं जहाँ उन्हीं नामों वाले वर्ग शुरू होते हैं | मेष राशि फेरिस व्हील पर मेष वर्ग की शुरुआत में होती है और वह अपने स्थान से कभी नहीं हिलती | अतः तिब्बती-मंगोल और भारतीय हिन्दू ज्योतिष शास्त्र स्थिर-तारा राशि-चक्र का प्रयोग करते हैं |

प्राचीन मिस्र, कालचक्र, और आधुनिक पश्चिमी प्रणालियाँ मेष राशि भाव को फेरिस व्हील के उस बिंदु पर रखतीं हैं जहाँ भारत में ठीक वसंत-विषुव - वसंत ऋतु  का वह क्षण जब दिन और रात की अवधि समान होती है - के समय सूरज का गोला स्थित हो | चूँकि इस दिन कर्क-रेखा पर सूर्य ठीक सिर के ऊपर से जाता है, आकाश में भावों के इस स्थान-नियोजन को सायन  राशि-चक्र कहते हैं |

अपनी चर्चा के लिए अब हम प्राचीन मिस्र प्रणाली की बात नहीं करेंगे | लगभग 280 ईस्वी में आकाश में देखा गया कि वसंत-विषुव बिंदु वास्तव में फेरिस व्हील के मेष वर्ग के प्रारम्भ में स्थित था | तब से यह लगभग बहत्तर वर्षों में एक डिग्री की दर पर बहुत धीमी गति से पीछे की और खिसकता जा रहा है | इस दृश्य-प्रपंच को विषुव का अग्रगमन कहा जाता है | चूँकि, भूगोल का ध्रुवाक्ष "स्थिर" तारा के अनुकूल धीरे-धीरे, 26,000 वर्ष में घूमता है, इसलिए, मेष की प्रेक्षित शून्य डिग्री तथा वसंत विषुव के आधार पर परिभाषित शून्य डिग्री के बीच विसंगति है |

अब, वसंत विषुव बिंदु फेरिस व्हील के मीन वर्ग में 23 और 24 डिग्री के बीच है, जो मेष वर्ग के ठीक पीछे है | इस प्रकार आधुनिक पश्चिमी प्रणाली मेष राशि को फेरिस व्हील पर मीन राशि में 6 और 7 डिग्री के बीच मानती है | प्रत्येक वर्ष आधुनिक पश्चिमी प्रणाली इन अंशों को थोड़ा थोड़ा पीछे कर देती है | यह प्रणाली ग्रह नक्षत्र आदि के स्थान को भावों द्वारा परिभाषित राशि के अनुकूल मानती है, परन्तु तिब्बती-मंगोली तथा भारतीय हिन्दू प्रणालियाँ उसे फेरिस व्हील द्वारा परिभाषित राशि के अनुकूल मानती हैं | अतः सायन राशि के शून्य डिग्री का मेष स्थिर-तारा राशि के मीन के 6 और 7 डिग्री के बीच होता है - दूसरे शब्दों में, सायन स्थान से 23 या 24 डिग्री कम |

आकाश के निरीक्षण से यह पता चलता है कि पश्चिमी प्रणाली का शून्य डिग्री मेष वास्तव में मेष समूह के निरीक्षित स्थान के प्रारम्भ से 23 या 24 डिग्री का प्रक्रमण गुणक के व्यतिरेक में होता है | यह विचारणीय है कि परिगणित स्थान निरीक्षित स्थान के अनुरूप नहीं होना कोई महत्त्व नहीं रखता क्योंकि पारम्परिक तिब्बती-मंगोल एवं भारतीय हिन्दू प्रणालियों ने अग्रगमन कारक के आकलन के लिए कभी भी प्रायोगिक प्रेक्षण का आश्रय नहीं लिया, अपितु उसके स्थान पर ग्रह नक्षत्रों के स्थानों को सांख्यिक गणना से ही प्राप्त किया | पारम्परिक भारतीय, तिब्बती, तथा मंगोल ज्योतिषाचार्य केवल आकाश को देखकर अपने आकलन को प्रमाणित करने के इच्छुक नहीं थे |

ग्रहों के परिगणित तथा निरीक्षित स्थान

भारत को खगोलीय वेधशालाओं के बारे में पहली बार मुग़ल आक्रांताओं से ही पता चला था, जिन्होंने इन्हें अरबों से बनाना सीखा था | इनसे यह पता चला कि ग्रह नक्षत्रों के परम्परागत रूप से परिगणित स्थान तथा निरीक्षित स्थानों का अंतर उल्लेखनीय है | यदि भारतीय ज्योतिषशास्त्री अपने परिगणित स्थानों के साथ 23 या 24 डिग्री भी जोड़ दें, तो भी उनके गणितीय प्रतिमान एकदम सही परिणाम नहीं दे सकते | ब्रिटिश शासनकाल में जब भारतीय ज्योतिषशास्त्रियों ने ग्रह नक्षत्रों के स्थानों को जानने के यूरोपीय सूत्र को जाना, और यह पाया कि उनके परिणाम निरीक्षण द्वारा प्रमाणित हो रहे हैं, तो कई लोगों ने पारम्परिक हिन्दू परिकलन तथा उनसे प्राप्त पंचांग का परित्याग कर दिया | इसके स्थान पर सुधारकों ने पश्चिम जनित विद्या द्वारा निरीक्षित और प्राप्त स्थानों को स्वीकार किया जहाँ स्थिर-ग्रह राशि में परिवर्तन करने के लिए 23 या 24 डिग्री घटा दी जाती है |

जिस संकटावस्था में भारतीय हिन्दू ज्योतिष विज्ञान कई शताब्दी पहले था, उसी संकटावस्था में अब तिब्बती-मंगोल ज्योतिष विज्ञान है | जैसे-जैसे तिब्बती व मंगोल ज्योतिष वैज्ञानिक पश्चिमी और भारतीय प्रणाली से अवगत हो रहे हैं, वे यह भी समझते हैं कि, यद्दपि ग्रह नक्षत्रों के स्थान को जानने के कालचक्र गणितीय सूत्र पारम्परिक हिन्दू प्रणाली से भिन्न हैं, परन्तु अब भी उसमें निरीक्षण के अनुरूप जो सूक्ष्मता होनी चाहिए वह नहीं है | अब प्रश्न यह है कि क्या उन्हें हिन्दुओं की तरह पारम्परिक गणित को छोड़ देना चाहिए और विषुव के अग्रगमन के लिए समायोजित किए गए पश्चिमी राशि स्थानों को स्वीकार कर लेना चाहिए | दोनों ओर श्रेष्ठताएँ है | आज भी भारतीय हिन्दू ज्योतिषाचार्यों के बीच इस बात को लेकर विवाद चल रहा है |

कर्म के साथ सम्बन्ध

बौद्ध-धर्मी शिक्षाओं में यह साफ़ है कि ज्योतिषविज्ञान ऐसा नहीं कहता है कि सुदूर नक्षत्रों में विराजे देवी-देवता अपनी व्यक्तिगत शक्तियों द्वारा हमारे जीवन को स्वाधीन रूप से प्रभावित कर रहे हों | और यह भी नहीं कि खगोलीय पिंड स्वमेव हमारे जीवन को वास्तव में किसी प्रकार से प्रभावित कर रहे हों | यह सब असंभव है | अपितु, बौद्ध धर्म यह दावा करता है कि खगोलीय पिंडों की स्थिति केवल जातक की कर्म संभावनाओं का प्रतिबिम्ब है |

ऐसे कई दर्पण हैं जो हमारी कर्म संभाव्यताओं को प्रतिरूपों में प्रतिबिंबित करते हैं | हम इन प्रतिरूपों को न केवल हमारे जन्म समय के ग्रह-विन्यास में, अपितु हमारी आनुवंशिक संरचना में, हमारे व्यक्तित्व में, हमारे व्यवहार में, और सामान्य रूप से हमारे जीवन में भी देख सकते हैं | दूसरे शब्दों में, ये हमारे पूर्वजन्मों की कार्मिक शक्तियों के कारण उत्पन्न एक समग्र सम्पुंज की तरह घटित होते हैं | उस दृष्टिकोण से यह कोई मायने नहीं रखता कि क्या खगोलीय पिंडों की परिगणित स्थितियाँ उनके निरीक्षित स्थितियों के अनुरूप हैं अथवा नहीं | अतः, यह तय करना सरल नहीं है कि कालचक्र के अनुसार परिकलित ग्रह नक्षत्रों के स्थानों को स्वीकार किया जाए, या पाश्चात्य स्वीकृति प्राप्त निरीक्षित स्थानों को स्वीकार कर उन्हें विषुव के लिए समायोजित किया जाए | यह जानने के लिए बहुत शोध की आवश्यकता है कि कौन-सा विकल्प जातकों के जीवन से ठीक-ठीक मेल खाएगा |

फलित कुण्डलियाँ

एक विचारणीय विषय है फलित जन्मकुंडली, जो इसका पूर्वानुमान लगाती है कि किसी व्यक्ति के जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में क्या होने वाला है | जन्मकुंडली तथा पंचांग की भाँति इसमें भी नौ ग्रहों का उल्लेख है: सूर्य, चंद्र, बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि, तथा जिन्हें हम पश्चिम में "उत्तरी और दक्षिणी चंद्र संधि" (राहु और केतु) कहते हैं | अब हम अपनी फेरिस व्हील की उपमा की ओर चलते हैं जो एक टायर के आकार में है, जिसके भीतरी पथ में सूर्य और चंद्र के गोले लुढ़क रहे हैं | यह सूर्य और चंद्र के ग्रहपथ दर्शाता है | ये दोनों ग्रहपथ पूर्णतः समान्तर नहीं हैं, ये टायर के दोनों ओर एक दूसरे को काटते हैं | जहाँ ये ग्रहपथ एक दूसरे को काटते हैं वे चंद्र की उत्तरी और दक्षिणी चंद्र संधियाँ हैं | जब सूर्य इनमें से एक चौराहे पर होता है और चंद्र ठीक दूसरे पर, तब चंद्र ग्रहण होता है | सूर्य ग्रहण तब होता है जब सूर्य और चंद्र इन दोनों में से किसी एक चौराहे पर मिलते हैं | खगोल शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र की अधिकतर प्राचीन प्रणालियों में इन चंद्र संधियों (राहु और केतु) को खगोलीय पिंड माना गया है | बौद्ध प्रणाली में इन्हें राहु और कालाग्नि कहते हैं, जबकि हिन्दू प्रणाली में इन्हें राहु और केतु कहा गया है | ये आठवाँ और नौवाँ खगोलीय पिंड हैं |

तिब्बती मंगोल फलित ज्योतिष किसी व्यक्ति के जीवन की संभावित अवधि की गणना करती है | फिर वह इस जीवन-अवधि को दशाओं में बाँटती है जिन पर एक निश्चित क्रम में प्रत्येक नवग्रह का आधिपत्य होता है | प्रत्येक ग्रह एक निश्चित समय के लिए रहता है-जीवन काल का एक निश्चित प्रतिशत-एक तय अनुपात के अनुसार | प्रत्येक ग्रह के लिए प्रतिशत भिन्न है | आप गणना करते हैं कि किसी व्यक्ति के जीवन की पहली दशा में किस ग्रह का आधिपत्य रहेगा, और, जीवनकाल के कितने प्रतिशत में उस ग्रह का आधिपत्य रहेगा इसकी गणना से आप पहली दशा की अवधि जान लेते हैं | आप इसी अनुपात से जीवनकाल की इन दशाओं को अन्तर्दशाओं में बाँट सकते हैं, और फिर इन अन्तर्दशाओं को भी आगे विभाजित किया जा सकता है | जन्मकुंडली में दशा, अन्तर्दशा, और प्रत्यंतर दशा के स्वामी-ग्रहों की शक्ति की तुलना से अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समयकाल में उस व्यक्ति के जीवन में क्या घटित होने की संभावना है |

फलित ज्योतिष की भारतीय हिन्दू प्रणालियाँ तिब्बती-मंगोल प्रणालियों से मिलती-जुलती हैं, परन्तु इनमें कई भेद भी हैं | हिन्दू प्रणाली में जीवन अवधि की गणना नहीं की जाती | तिब्बती-मंगोल प्रणाली की भाँति नवग्रहों का उसी तय क्रम और अनुपात में स्वामित्व होता है, परन्तु सब स्थितियों में नवग्रहों से शासित दशाओं का कुल जोड़ 120 वर्ष ही होता है | इसलिए यदि किसी नवग्रह के स्वामित्व का प्रतिशत दस प्रतिशत है, तो वह प्रत्येक जातक के जीवन में बारह वर्ष ही उसका स्वामित्व होगा | भिन्न जातकों की कुंडली में अंतर केवल यह होता है कि यह बारह वर्ष कब आते हैं |  इसका पता इस गणना से चलता है कि 120 वर्ष के जीवन-चक्र में किसी का जीवन कहाँ आरम्भ होता है | अधिकाँश लोगों की मृत्यु 120 वर्ष की आयु से पहले हो जाती है, और इसलिए हो सकता है कि उनकी मृत्यु से पहले यह दशा आए ही नहीं | तिब्बती-मंगोल प्रणाली में, सबके जीवनकाल में सारी नौ दशाएँ आती हैं और, यदि जीवनकाल केवल 60 वर्ष है और एक ग्रह के स्वामित्व का प्रतिशत दस प्रतिशत है, तो उस ग्रह की दशा केवल छह वर्ष होगी |

श्याम गणना और चीनी ज्योतिषशास्त्र

तिब्बती-मंगोल ज्योतिषशास्त्र की श्याम गणनाओं में फलित ज्योतिष के लिए चीनी पद्धतियों से उद्भूत कई अन्य परिवर्तिक कारक जुड़ गए | एक पहलू बारह पशुओं - चूहा, सूअर, बन्दर, इत्यादि - और पांच तत्वों - पृथ्वी, जल, अग्नि, काष्ठ, और लोहा - के चक्रों से आया | इन्हें मिलाकर तिब्बती रूपांतर में साठ मेल बनते हैं, जैसे लोहा-अश्व या काष्ठ-बाघ | मंगोल पद्धति में तत्वों के नामों के स्थान पर उनसे जुड़े रंगों के नाम प्रयुक्त होते हैं, जैसे काला-घोड़ा या नीला-बाघ | जन्मकुण्डलियों में जन्म के समय के लिए वर्ष, माह, तिथि, एवं दो घंटे की अवधि के समामेलन दिए होते हैं | आप पशु-तत्व समामेलन की गणना करते हैं जो जीवन के प्रत्येक वर्ष में प्रधान होती है और, जन्म-कालीन समामेलनों से इसकी तुलना करके, आप उस वर्ष के लिए अन्य फलित जानकारी निकालते हैं |

श्याम गणनाओं में आठ त्रिग्रामों एवं नौ अभिमंत्रित चतुर्भुज अंकों की एक प्रणाली भी पाई जाती है | त्रिग्राम शास्त्रीय चीनी आई-चिंग (द बुक ऑफ़ चेंजेज़) में पाया जाने वाला तीन रेखाओं का संयोग है जो भंग या अभंग होती हैं | अभिमंत्रित समचतुर्भुज अंक एक ऐसे चतुर्भुज से निकले हैं जिसे टिक-टैक-टो की भाँति नौ ख़ानों में विभाजित किया जाता है और प्रत्येक ख़ाने में एक से नौ की संख्या इस प्रकार लिखी होती है कि उन्हें, पट, लंब, या तिरछा, जैसे भी जोड़ा जाए, किसी भी लाइन की कुल संख्या पंद्रह ही होगी | जन्म वर्ष के त्रिग्राम और अभिमंत्रित चतुर्भुज संख्या से आप जीवन के प्रत्येक वर्ष के प्रगमित त्रिग्राम एवं अंकों की गणना करते हैं जो आपको और अधिक भविष्यसूचक जानकारी देती है | श्वेत और श्याम गणनाओं से मिली सारी जानकारी सहसम्बद्ध करके व्याख्यायित की जाती है जिससे पूर्ण फलित तिब्बती मंगोल जन्मकुंडली बनाई जा सके | अधिक शुद्धता के लिए, आप शुभ एवं अशुभ दिनों और घंटों की जानकारी पंचांग देखकर श्वेत और श्याम गणनाओं से पा सकते हैं | एक विशिष्ट समयकाल पर प्रभाव डालने वाले सभी कारकों पर विचार करना होगा, क्योंकि एक परिवर्तनशील दृष्टिकोण से वह समय अनुकूल हो सकता है, परन्तु दूसरे से हो सकता है कि वह प्रतिकूल हो | तिब्बती मंगोल ज्योतिषशास्त्र में जन्मकुण्डलियों की व्याख्या एक जटिल कला है |

जीवनावधि की भविष्यवाणी

इस प्रणाली में पैदा होने वाली समस्याओं के कारण व्याख्या- कौशल और अधिक कठिन हो जाता है | कभी-कभी जब आप किसी व्यक्ति की जीवनावधि की गणना करते हैं, तो आप पाते हैं कि गणितीय सूत्रों के अनुसार उसकी मृत्यु कई वर्ष पहले हो जानी चाहिए थी | एक अन्य गणना बतलाती है कि यदि कोई व्यक्ति बहुत से सत्कर्म करता है, तो उसकी जीवनावधि एक विशिष्ट प्रतिशत से बढ़ जाती है | फिर भी कई लोगों की मृत्यु हो जानी चाहिए थी | इसके अतिरिक्त, आपकी जीवनावधि बढ़ाने के लिए कितने सत्कर्मों की आवश्यतकता होती है ? और क्या केवल दो सम्भावनाएँ हैं, सामान्य तथा बढ़ाई गई जीवनावधि, अथवा यदि आप केवल कुछ सत्कर्म करते हैं या आपकी उत्प्रेरणा कलुषित है, तो क्या आप अपनी जीवनावधि केवल थोड़ी-सी बढ़ा सकते हैं ?

यह स्थिति तब और अधिक भ्रम में डालने वाली हो जाती है जब आप ज्योतिष-शास्त्र की इतिहास-यात्रा के विभिन्न पड़ावों में तिब्बती तथा मंगोलियाई ज्योतिषाचार्यों के ग्रंथों को पढ़ते हैं | किसी व्यक्ति की जीवनावधि की गणनाओं को लेकर उनमें आपस में असहमति है | कुछ ज्योतिषाचार्य अधिकतम आदर्श जीवनावधि 120 वर्ष मानते हैं, कुछ 100 वर्ष, और कुछ 80 वर्ष | किसी का जीवनकाल कितना लंबा होगा और उसके जीवन में क्या-क्या घटित होगा, इसकी गणना इस पर निर्भर करती है कि आपने कितनी लम्बी जीवनावधि चुनी है | इनमें से कौन-सी सही है ? क्या भारतीय हिन्दू ज्योतिषशास्त्र का अनुसरण करके जीवनावधि की गणना से पूर्णतः विरत होना उत्तम होगा ? यदि हम ऐसा भी करते हैं, तो तिब्बती-मंगोल ज्योतिषशास्त्र की अनेक परम्पराएँ हैं; प्रत्येक में पंचांगों की गणना में थोड़ा अंतर है; और इसलिए किसी व्यक्ति के जीवनक्रम के विषय में और अधिक भिन्न भविष्यवाणियाँ उपलब्ध हैं |

सत्य की खोज

तिब्बती मंगोल ज्योतिषशास्त्र इस सन्दर्भ में अद्वितीय नहीं है कि उसमें भी कई विभिन्न परम्पराएँ हैं, और प्रत्येक परम्परा के अंतर्गत जो फलित कुण्डलियाँ बनाई जाती हैं, उनमें कतिपय अंतर होते हैं | पश्चिमी, भारतीय हिन्दू, एवं चीनी प्रणालियाँ में भी यह विशेषता समान रूप से पाई जाती है | जब लोग इस स्थिति से अवगत होते हैं, तो प्रायः वे व्याकुल हो जाते हैं | ऐसी मनःस्थिति में वे अपने लिए ठोस ज्ञातव्य "मैं" खोजते हैं और यह जानने के लिए उत्सुक होते हैं कि उनके जीवन में निश्चित घटनाओं की भाँति अन्तर्जात रूप से क्या घटित होने वाला है | इस असमंजस के अधीन वे व्याकुल होकर चाहते हैं कि यह अस्तित्वमान "मैं" आने वाली घटनाओं पर नियंत्रण पा सके, या वे कम से कम जान पाएँ कि क्या होने वाला है ताकि वे उसकी तैयारी कर सकें | भविष्य की अनेक संभावनाओं का सामना करते हुए उन्हें लगता है कि उनके अस्तित्वमान "मैं" का जीवन उनके नियंत्रण से बाहर है |

उनकी हताशा उनकी उस प्रतिक्रिया जैसी होती है जब तिब्बती या मंगोल आचार्य उन्हें एक बौद्धधर्मी कालजयी ग्रन्थ पढ़ाते हैं और समझाते हैं कि इस मठीय पाठ्यग्रंथ में प्रतिपादित सिद्धांत-प्रणाली के दृष्टिकोण से इसका अर्थ यह होगा | परन्तु, अन्य प्रत्येक पाठ्यग्रंथ के अनुसार इसका अर्थ वह या वह है; अन्य सिद्धांत प्रणालियों के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से प्रत्येक पाठ्यग्रंथ की एक अन्य व्याख्या है; और अन्य सभी तिब्बती-मंगोल बौद्ध पद्धतियाँ इसे भिन्न रूप से व्याख्यायित करती हैं | ऐसे अनेक विकल्पों को देखकर अधिकांश पश्चिमवासी पूछते हैं, "परन्तु वास्तव में इसका अर्थ क्या है ?" संभवतः बाइबल की विचारधारा ने अनजाने में उन्हें प्रभावित किया है – एक ईश्वर, एक सत्य – जिसके कारण वे एक अन्तर्जात रूप से अस्तित्वमान सत्य के अनुसार उस शिक्षा का वास्तविक अर्थ ढूँढ़ते हैं | वे ज्योतिषीय जानकारी भी इसी दृष्टिकोण से देखते हैं और भावी घटनाओं के विषय में निश्चित उत्तर ढूँढ़ते हैं |

यदि हम इस असंभव रूप में यथार्थ की खोज करेंगे, तो हमें निराशा होगी और तिब्बती-मंगोल ज्योतिषशास्त्र से मिली जानकारी से हम कुंठित हो जाएँगे | इससे कोई भी लाभ उठाने के लिए हमें इस जानकारी को एक पूर्णतः भिन्न दृष्टिकोण से देखना चाहिए - अर्थात कर्म और शून्यता पर बौद्ध शिक्षाओं का दृष्टिकोण | ज्योतिषीय जानकारी संसार को इस प्रकार व्याख्यायित करती है - कर्म के प्रभाव से पुनर्जन्म और अनियंत्रित रूप से घटित होती प्रत्येक जीवन की गति | इस दुष्चक्र से मुक्ति पाने के लिए हमें शून्यता को समझने की आवश्यकता है - अर्थात यह समझने की कि हमारे जीवन की घटनाओं और हमारे व्यक्तित्व सहित सब कुछ अस्तित्व की असम्भाव्यताओं से वंचित है | अतः हमें कर्म और शून्यता को समझने की आवश्यकता है |

कार्मिक सम्भाव्यताएँ बनाम पूर्वनिर्धारण

केद्रब जे, एक महान तिब्बती आचार्य ने इसे बहुत अच्छे से समझाया है | कालचक्र-तंत्र पर एक भाष्य में उन्होंने लिखा है कि यदि ज्योतिष किसी के बारे में सारी जानकारी देता है, तो एक समय और एक ही स्थान पर जन्मे एक मनुष्य और एक कुत्ते के व्यक्तित्व एक-से होंगे, उनकी जीवनावधि एक होगी, और उनके जीवन में उनके साथ एक-सी घटनाएँ घटेंगी | निस्संदेह ऐसा नहीं होता | इसका कारण यह है कि ज्योतिषशास्त्र किसी के विषय में सारी जानकारी नहीं देता | एक व्यक्ति की जीवनगति पर अनेक कारकों का प्रभाव पड़ता है | कारणों और परिस्थितियों के अनेक संजाल प्रभाव डालते हैं; कर्म एवं व्यावहारिक कार्य कारण के नियम अत्यंत जटिल हैं | हम अनादिकाल से प्रत्येक जन्म के अनुभवों के कार्मिक कारणों को संचित करते आए हैं | हमारी जन्मकुंडली चाहे कितनी भी विस्तृत और परिष्कृत क्यों न हो, वह हमारे कर्म के केवल एक पक्ष का एक छोटा-सा चित्र ही प्रस्तुत करती है | एक बहुत बड़ी संभावना है कि उस जन्मकुंडली के अनुसार कुछ घटनाएँ हों; परन्तु आप उन न्यून संभावनाओं की अवहेलना नहीं कर सकते कि इन घटनाओं के अतिरिक्त या इनके स्थान पर अन्य घटनाएँ घटित हों | अन्तर्जात रूप से कुछ भी निश्चित नहीं है | इस असंभव अस्तित्वमान रूप की अवहेलना करके हम अपने उस अभ्यास पर नियंत्रण पाते हैं कि हम वह ठोस रूप से अस्तित्वमान "मैं" हैं, जिसे हर भावी घटना का पूर्वाभास है और जो सदैव नियंत्रित है |

विभिन्न चिकित्सीय परम्पराओं से प्राप्त जानकारी पर विचार कीजिए | पश्चिमी चिकित्साविज्ञान शरीर को विभिन्न प्रणालियों का एक जटिल संजाल मानता है - परिसंचरण, तंत्रिका, पाचन, इत्यादि | तिब्बती-मंगोल चिकित्सा विज्ञान चक्रों और ऊर्जा वाहिकाओं की प्रणालियों के विषय में बताता है | चीनी चिकित्सा विज्ञान नाड़ियों और एक्यूपंक्चर बिंदुओं का वर्णन करता है | यदि आप विरोध करें और पूछें, "पर कौन-सा सही है? कौन-सी  प्रणाली बताती है कि शरीर में सचमुच क्या हो रहा है", तो हमारा उत्तर होगा कि सभी सही हैं | प्रत्येक से शरीर के विषय में एक प्रामाणिक जानकारी मिलती है, जिससे उपचार सफल होता है |

ज्योतिषशास्त्र में भी ऐसा ही है | पश्चिमी प्रणालियों में सायन राशिचक्र द्वारा एक प्रकार की जानकारी मिलती है | भारतीय हिन्दू एवं तिब्बती मंगोल प्रणालियों में स्थिर-तारा राशि-चक्र द्वारा अन्य परिणाम मिलते हैं | पारम्परिक चीनी ज्योतिषशास्त्र प्रणालियाँ अतिरिक्त जानकारी उद्घाटित होती हैं, जबकि तिब्बतियों और मंगोलों द्वारा प्रयुक्त चीनी से उद्भूत श्याम गणनाएँ अलग जानकारी देती हैं | तिब्बती मंगोल ज्योतिषशास्त्र परम्पराओं में, यदि आप 120, 100, या 80 वर्षों की अधिकतम जीवनावधि की गणना करने वाली प्रणालियों का प्रयोग करते हैं, तो आपको जीवन में होने वाली घटनाओं के तीन भिन्न चित्र मिलते हैं | आपाततः परस्पर-विरोधी जानकारी को समझने के लिए यह मान लिया जाए कि प्रत्येक प्रणाली एक संभावित कार्मिक विन्यास बतलाती है जिसमें उसके फलीभूत होने की प्रबल संभावना है |

हम सब में एक बड़ी मात्रा में कार्मिक विन्यास और, उसके कारण, अनेक प्रकार से अपना जीवन जीने की सम्भाव्यताएँ होती हैं | उनका अभिविन्यास यह जानना नहीं है कि कल निश्चित रूप से क्या होने वाला है – क्या कल मुझे और शेयर खरीदने चाहिए, क्या कल का दिन मेरे लिए शुभ होगा ? उसका सही अभिविन्यास सम्भाव्यताओं का प्रायिकता फलन है | यदि हमारी जन्मकुंडली यह कहती है कि हमारी मृत्यु 10 वर्ष पहले हो जानी चाहिए थी, तो हमें यह पता चलता है कि हम ने अल्पायु के लिए ही कर्म संचित किया है | हमारी कार्मिक धरोहर की यह एक संभावना है | किन्तु, एक जीवनकाल में जो परिपक्व होता है, वह अवस्थाओं और परिस्थितियों पर निर्भर करता है | भूकंप जैसी प्राकृतिक – अथवा परमाणु बम – के कारण भारी संख्या में मारे गए लोगों के बारे में सोचिए | निश्चित रूप से सभी की जन्मकुण्डलियों में तो ऐसा नहीं लिखा होगा कि उस दिन उनकी मृत्यु होगी | बाह्य परिस्थितियों और अवस्थाओं का घटनाओं पर प्रभाव पड़ता है जो जन्मकुण्डलियों में नहीं लिखा होता |

इसलिए, जन्मकुंडली मौसम की रिपोर्ट की भाँति होती है : जिस घटना की बहुत अधिक संभावना हो, वह इसके बारे में बतलाती है, परन्तु, वास्तव में, हो सकता है कि ऐसा न हो | आज वर्षा हो सकती है, तो सावधानी की दृष्टि से हम छतरी लेकर निकलते हैं | यदि वर्षा न हो तो कोई हानि नहीं हुई | इसी प्रकार यदि हमारी जन्मकुंडली इंगित करती है कि आज हमारी भेंट हमारे प्रियजन से होगी, व्यापार में सफलता मिलेगी, या कुछ और, यदि इस गहरी संभावना से हम परिचित हों, तो उस दिन हमारे सामने आने वाले अवसरों के प्रति हम ग्रहणशील रहेंगे | यदि कुछ नहीं होता है, तो हम स्वयं को याद दिलाते हैं कि जन्मकुंडली में कुछ भी भाग्यवादी नहीं होता |

कर्म की शुद्धि

यदि हम सब संभावित जन्मकुण्डलियों से अपना शुद्धिकरण करना चाहते हैं, जो वास्तव में ज्योतिषशास्त्र के बौद्ध अध्ययन का लक्ष्य है, तो हमें अपनी जन्मकुण्डलियों से धर्म के पाठ सीखने होंगे | उदाहरणार्थ, हम यह सीख सकते हैं कि सब परिस्थितियों में हमें अच्छे अवसरों के प्रति उन्मुख और ग्रहणशील रहना चाहिए, और संभावित संकटों या विघ्नों के प्रति सावधान | यदि हमारी जन्मकुंडली के अनुसार हमें 10 वर्ष की आयु में मृत्यु को प्राप्त हो जाना चाहिए था, और, स्पष्टतः, ऐसा नहीं हुआ, तो हम अल्पायु के कार्मिक कारणों के बारे में सोचते हैं | दूसरों को हानि पहुँचाने अथवा उनके प्राण लेने से कम आयु में ही मृत्यु हो जाती है | यदि ये कार्मिक फल इस जीवनकाल में परिपक्व न भी हुए हों, तब भी हम यह नहीं भूलते कि ये कर्म-फल हमने ही संचित किए हैं, और, संभवतः भविष्य में भी कर सकते हैं | उदाहरणार्थ, हो सकता है कि हम बिना सोचे समझे मक्खियाँ मारें, यह समझकर कि इससे कोई अंतर नहीं पड़ता | हमारी जन्मकुंडली में हमारी लघु जीवनावधि से प्रेरित होकर, हो सकता है कि, ऐसी बुरी प्रवृत्तियों से छुटकारा पाने के लिए, हम अपना शुद्धिकरण कर लें |

तिब्बती-मंगोल जन्मकुंडली से हम एक प्रमुख बात यह सीखते हैं कि हमें स्वयं ही अपने कर्म-फल को भोगना है | यह आवश्यक नहीं हम सटीक रूप से यह जानें कि हमारे जीवन में अमुक-अमुक दिनों में क्या-क्या होने वाला है | यह विद्या हमें अधिक उत्तरदायी बनाती है | यदि सब कुछ पूर्वनिर्धारित है, तो हम अभी चाहे कुछ भी कर लें, वह निष्फल ही होगा | हमारे साथ जो भी होगा, हम उसे किसी प्रकार प्रभावित नहीं कर सकते | दूसरी ओर, जब हमें कुछ घटित होने की संभावना दिखाई देती है, जो निश्चित न भी हो, तो हम अपने चयन के लिए स्वयं ही जवाबदेह होते हैं | ज्योतिषीय जानकारी हमारे मन को संकीर्ण बनाकर हमारे व्यक्तित्व, जीवनगति, तथा दूसरों के साथ हमारे परस्पर संबंधों को स्थिर और स्थाई मानने के लिए बाध्य नहीं करती; अपितु, हमें इससे विपरीत निष्कर्ष पर ही पहुँचाती है | हम पाते हैं कि जो भी घटित होता है, वह असंख्य कारणों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है, और हमारे कर्म हमारी जीवनगति को दिशा देते हैं |

तिब्बती-मंगोल ज्योतिषशास्त्र प्रणाली जटिल प्रतीत होती है, परन्तु जीवन इससे कहीं अधिक उलझा हुआ है | खगोलीय पिंडों, राशियों, घरों, पशुओं, तत्वों, त्रिग्रामों, एवं अभिमंत्रित चतुर्भुज अंकों की तुलना में घटनाओं के रूप-भेदों का कहीं अधिक प्रभाव पड़ता है | हमारे जीवन पर अनगिनत रूप-भेदों के प्रभाव को सचेतन भाव से देखने पर, संसार, जीवन, स्वयं, एवं अन्यों के प्रति हमारे कठोर, भ्रांत दृष्टिकोण नरम पड़ जाते हैं | इस बदले हुए दृष्टिकोण से हम शून्यता को प्रतीत्यसमुत्पाद के सन्दर्भ में देखने लगते हैं | हमारी जीवनगति स्वच्छंद रूप से स्थापित ठोस जड़ी वस्तुओं के समान नहीं है | अपितु, वह अनगिनत कारकों पर निर्भर है | ज्योतिषीय जानकारी एवं जन्मकुण्डलियाँ प्रभावी रूप-भेदों का एक बहुत छोटा अंश हैं | फिर भी, संभावित घटनाओं को उजागर करके ये हमें कर्म, शून्यता, और प्रतीत्यसमुत्पाद के प्रति सचेतन भाव रखने में सहायक होतीं हैं | इस परिप्रेक्ष्य में यह तथ्य वास्तव में लाभप्रद है कि तिब्बती मंगोल ज्योतिषशास्त्र से मिली जानकारी प्रायः पूर्णतः सटीक नहीं होती | यह दर्शाता है कि जीवन ठोस और तटस्थ नहीं है | कर्मों के कई प्रकार से फलीभूत होने की संभावना है |

प्रश्न

तिब्बती-मंगोल वर्ष की गणना चंद्र, तथा पश्चिमी वर्ष सूर्य, के आधार पर की जाती है | इन में क्या अंतर हैं ?

तिब्बती और मंगोल पंचांगों में सूर्य और चंद्र के लक्षण मिले होते हैं | बौद्ध परिभाषा के अनुसार समय बदलाव का प्रतिमान है | आप वर्ष, महीने और दिन की अभिधाओं को बदलाव के अनेक आवर्तनों के प्रतिमान के आधार पर आँक सकते हैं | तिब्बती और मंगोल पंचांग अमावस्या से अमावस्या तक एक महीना मानते हैं | अमावस्या के 12 आवर्तनों, दूसरे शब्दों में 12 चंद्र महीनों, का जोड़ एक सूर्यवर्ष से कुछ कम होता है - सूर्यवर्ष वह माप है जिस अवधि में सूर्य राशिचक्र का पूरा चक्कर काटकर वापस उसी बिंदु पर पहुंचता है | तिब्बती और मंगोल पंचांगों में चंद्र महीने तथा सूर्य वर्ष होते हैं, इसलिए दोनों को समाहित करने के लिए सामंजस्य बिठाना पड़ता है |

जिस प्रकार पश्चिमी पंचांग में अधिवर्ष होते हैं, जिसमें सूर्य वर्ष में सूर्य दिवसों के पूर्णांक की कमी को पूरा करने के लिए हर चौथे वर्ष एक दिन जोड़ा जाता है, उसी प्रकार तिब्बती और मंगोल पंचांगों में चंद्र महीनों को सूर्य वर्षों में ठीक से बिठाने के लिए "लीप" लक्षण होते हैं | कभी-कभार वे अधिक मास जोड़ते हैं, और कभी, अमावस और पूर्णिमा चंद्र मास की निर्दिष्ट तिथियों पर आएँ, इसके लिए वे कुछ तिथियाँ दुगुनी कर देते हैं अथवा छोड़ देते हैं | गणितीय सूत्र एवं नियम बहुत ही जटिल हैं |

12 राशियों एवं 27 नक्षत्रों की व्युत्पत्ति क्या है ? 

एक वर्ष में प्रत्येक अमावस पर जब सूर्य पूर्वी क्षितिज पर उगता है, तब उसके साथ उगने वाले प्रमुख तारामंडलों से 12 राशियाँ उद्भूत होती हैं | एक अमावस से दूसरी अमावस तक जब प्रत्येक 27 - या 28 - रातों में चंद्र उदित होता है, तब पूर्वी क्षितिज पर साथ उदित होने वाले प्रमुख तारामंडलों से  27 - कुछ गणनाओं में 28 - नक्षत्रों के राशिचक्र उद्भूत होते हैं |

क्या तिब्बती-मंगोल ज्योतिषशास्त्र उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध में हुए जन्मों के बीच भेद करता है ?

नहीं | उत्तरी या दक्षिणी गोलार्द्ध में हुए जन्म की कमी पूरी करने के लिए तिब्बती-मंगोल ज्योतिषशास्त्र में कोई लक्षण नहीं है; वह उत्तरी गोलार्ध में विभिन्न समान समय क्षेत्रों अथवा विभिन्न जन्म-स्थानों को नहीं मानता | तो फिर, प्रश्न यह उठता है कि क्या प्रणाली को संशोधित करके इन लक्षणों को जोड़ा जाए, जैसा पारम्परिक भारतीय हिन्दू प्रणालियों में होता था, या क्या इससे कोई अंतर नहीं पड़ता ?

इसका उपाय खोजने के लिए विस्तृत अनुसंधान की आवश्यकता है | इस परियोजना को बढ़ाने के लिए मैंने अपने सहकर्मी के साथ एक कम्प्यूटर प्रोग्राम बनाया, जिससे बहुप्रयुक्त तिब्बती पंचांग और पत्रा की श्वेत लक्षण गणना की जा सके | अगला कदम है, श्याम गणना सामग्री और विभिन्न तिब्बती-मंगोल प्रणालियों के लिए गणनाओं को जोड़ना | ऐसा असमान रूपभेदों की कलन विधियाँ बदलकर किया जा सकता है |  इसके पश्चात शोधकर्ताओं को एक बड़ी संख्या में उन लोगों के जन्म और मृत्यु सम्बन्धी आंकड़े जोड़ने पड़ेंगे, जिनकी जीवनगति एवं व्यक्तित्व प्रसिद्ध हैं | फिर उन्हें देखना होगा कि जन्म कुंडलियों की व्याख्या करने की तिब्बती मंगोल प्रणाली के अनुसार प्रत्येक रूपभेद के किस भेद से सबसे अधिक विश्वसनीय परिणाम मिलते हैं | निस्संदेह, उन्हें यह मानना होगा कि ज्योतिषशास्त्र कभी भी पूर्णतया सही नहीं हो सकता | उन्हें पश्चिमी पत्रा के अनुसार खगोलीय पिंडों के विषुव के अयन के लिए समायोजित स्थानों को ग्रहण करके, तथा दोनों गोलार्द्धों, विभिन्न जन्म स्थानों, एवं समय क्षेत्रों को नियमित करके प्राप्त परिणामों की जाँच करनी होगी |

व्यक्तिगत रूप से मुझे पूरा भरोसा है कि कर्म और शून्यता की समझ में सहायक होने के अतिरिक्त तिब्बती-मंगोल ज्योतिषशास्त्र प्रणाली उतनी ही लाभप्रद परम्परागत जानकारी प्रदान कर सकती है जितनी पश्चिमी, भारतीय-हिन्दू तथा चीनी जन्मकुण्डलियों से मिलती है | अंततः, प्राचीन काल के महान तिब्बती और मंगोल आचार्यों ने इन ज्योतिषीय शिक्षाओं पर भरोसा किया और उनकी अत्यधिक प्रशंसा की | वस्तुतः वे मूर्ख नहीं थे |

समर्पण 

हम एक समर्पण से समाप्त करते हैं | हम यह कामना करते हैं कि श्रुति द्वारा निर्मित समग्र सकारात्मक ऊर्जा, शक्तियाँ, एवं प्रज्ञा से सभी लोग अपनी-अपनी जन्मकुण्डलियों के कठिन आयामों तथा अनियंत्रित शैली के कर्मों से उबर सकें | हमारी जन्मकुण्डलियाँ हमारे हाथ लगी बाज़ी नहीं है जिसे हम कुशलतापूर्वक खेलकर जीतने का कौशल प्राप्त करें | हम यह कामना करते हैं कि हम कोई मूर्खतापूर्ण ताश का खेल न खेलें, अपितु अपनी शक्तियों को दूसरों की सहायता के लिए उपयोग कर पाएँ | 

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