तिब्बती खगोल विज्ञान

तिब्बती खगोल विज्ञान का विस्तार

पंचांग-रचना, खगोल शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र, और गणित जैसे खगोल विज्ञान तिब्बती जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़े हैं | उनकी परंपरा तिब्बत से भीतरी और बाहरी मंगोलिया, मंचूरिया, पूर्वी तुर्किस्तान, बुर्यातिया, कल्मीकिया, और तूवा के रूसी गणतंत्र राज्यों, और तिब्बती संस्कृति से प्रभावित हिमालय, मध्य-एशिया, और वर्तमान चीन जैसे सभी क्षेत्रों में फैली | तिब्बती चिकित्सा परम्परा में विज्ञान की इन शैलियों ने बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई | चाहे खगोल शास्त्र के विद्यार्थियों के लिए चिकित्सा विज्ञान पढ़ना आवश्यक न हो, परन्तु चिकित्सा विज्ञान के विद्यार्थियों को एक विशेष स्तर तक खगोल शास्त्र अवश्य पढ़ना चाहिए |

इस विद्या से हमें पंचांग की उस गणना का पता चलता है जिससे ग्रहों की स्थिति का अनुमान, ग्रहणों का पूर्वानुमान, और पंचांग बनाने में सहायता मिलती है | इसमें व्यक्तिगत जन्मपत्रियों के लिए ज्योतिषीय गणना पाई जाती है, और वार्षिक पंचांग की जानकारी भी होती है कि कौन से दिन बीज बोने जैसी विभिन्न गतिविधियों के लिए शुभ अथवा अशुभ हैं | यह अध्ययन क्षेत्र बहुत विस्तृत है |  

इसके दो भाग हैं; श्वेत एवं श्याम गणना | भारत और चीन में पारम्परिक परिधानों के रंगों के अनुसार इन देशों से आई सामग्री को श्वेत और श्याम कहा गया है | तिब्बती चिकित्सा विज्ञान की भांति, तिब्बतीय ज्योतिष शास्त्र में भी ऐसे पहलू हैं जो हिन्दू भारत और चीन में पाए जाते हैं | यद्यपि, इन्हें मिश्रित एवं परिवर्तित करके विभिन्न प्रयोगों द्वारा एक विशिष्ट तिब्बती प्रणाली बनाई गई है |

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