
मैं पहली बार जनवरी 1970 में बोधगया में त्सेनझाब सरकाँग रिन्पोचे से मिला था। मैं उनसे हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अपने पीएचडी शोध प्रबंध की तैयारी के लिए गुह्यसमाज तंत्र का अध्ययन करने हेतु किसी व्यक्ति को खोजने के लिए सलाह माँग रहा था। जैसा रिन्पोचे धर्म में रुचि रखने वाले अपने सभी परिचितों के साथ करते थे, उन्होंने मेरी रुचि को गंभीरता से लिया, हालाँकि मैं इतने उन्नत विषय का अध्ययन करने के लिए पूर्णतः अयोग्य था। हालाँकि, कुशल विधियों के विशेषज्ञ होने के नाते, उन्होंने मुझे सीधे तौर पर यह नहीं बताया कि मैं अभी तैयार नहीं हूँ, बल्कि मुझे ‘लोअर तांत्रिक कॉलेज’ के एक सेवानिवृत्त मठाधीश के पास भेज दिया ताकि मैं स्वयं यह जान सकूँ कि मैं तैयार नहीं हूँ। इसके बजाय, मैंने लाम-रिम, यानी मार्ग के क्रमिक चरणों का अध्ययन और लेखन किया।
डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद, मैं 1972 में ‘तिब्बती ग्रन्थ एवं अभिलेखागार पुस्तकालय’ में ग्रंथों का अध्ययन और अनुवाद करने के लिए धर्मशाला लौट आया। 1974 तक, तिब्बती भाषा पर मेरी पकड़ इतनी विकसित हो गई थी कि मैं बिना अनुवादक के रिन्पोचे से मिल सकता था। जैसा कि रिन्पोचे ने कई बार मेरे साथ रहते हुए प्रदर्शित किया था, उनमें दूसरों की कर्मगत संभावनाओं और उनके साथ अपने कर्मगत संबंधों को समझने की अलौकिक क्षमता थी। इसी प्रकार, उन्हें पता था कि मुझमें उनका अनुवादक बनने, और अंततः परम पावन दलाई लामा के लिए अनुवाद करने और स्वयं एक धर्म शिक्षक बनने की क्षमता है। इसीलिए, जब भी मैं उनसे मिलने जाता, वे अन्य आगंतुकों से मिलते समय मुझे अपने कमरे में रुकने के लिए आमंत्रित करते थे। इसके बाद, उनके के साथ बिताए गए पूरे समय के दौरान, उन्होंने मुझसे मेरे निजी जीवन के बारे में कभी कुछ नहीं पूछा। ऐसा लगता था मानो उन्हें कुछ भी जानने की आवश्यकता ही नहीं थी। हमारे रिश्ते का एकमात्र केंद्र धर्म था।
दूसरों के साथ उनके दयालु और कुशल व्यवहार को देखकर और अपनी कमियों को समझते हुए, मैंने उनसे अनुरोध किया कि कृपया मुझ जैसे गधे को एक सच्चा इंसान बनाने में मदद करें। रिन्पोचे बस मुस्कराए और शीघ्र ही उन्होंने एक अनुवादक के रूप में मेरा अधिक गहन प्रशिक्षण शुरू कर दिया, जिसमें वे उनके द्वारा प्रयुक्त शब्दों को समझाने लगे। एक बार तो उन्होंने मुझे तिब्बती शब्दकोश भी खंगालने को कहा और हर शब्द के साथ एक वाक्य लिखने को कहा ताकि उन्हें पता चल सके कि मैं उसका अर्थ समझता हूँ। वे मुझसे धर्म की शब्दावली के लिए प्रयुक्त अंग्रेज़ी पर्यायों के अर्थ समझाने को कहते और फिर, तिब्बती शब्दों के अर्थ समझाने के बाद, वे अंग्रेज़ी में ऐसे शब्द ढूँढ़ने में मेरी मदद करते जिनका अर्थ वास्तव में तिब्बती भाषा के समान होता था। उन्होंने कहा कि ये अर्थ बहुत महत्त्वपूर्ण हैं और हमें हमेशा शब्दों से "अर्थ निकालना" चाहिए।
शीघ्र ही, जब पश्चिमी लोग शिक्षाओं का अनुरोध करते और जब वे विभिन्न अभिषेक और तत्पश्चात अनुमतियाँ देते, तो मैं रिन्पोचे के लिए अनुवाद करने लगा। मेरी स्मरण शक्ति को प्रशिक्षित करने के लिए, जब भी मैं उनके साथ होता, रिन्पोचे कभी-कभी रुककर मुझसे कहते कि जो उन्होंने अभी कहा था उसे दोहराऊँ या जो मैंने अभी कहा था उसे दोहराऊँ। अगर उन्हें लगता कि मैंने उनकी व्याख्या को नहीं समझा है, या उसका गलत अनुवाद किया है, तो वे मुझसे उसे पुनः अनुवाद करने के लिए कहते। यदि सभी छात्रों को काफ़ी देर इंतज़ार करना भी पड़ता, तब भी वे मुझे तब तक आगे नहीं बढ़ने देते थे जब तक उन्हें यह विश्वास नहीं हो जाता था कि मैंने सही ढंग से समझ लिया है। फिर, वे मुझे शाम तक, जब तक मैं घर वापस नहीं आता, तब तक अपनी शिक्षाएँ लिखने नहीं देते थे। मुझे सब कुछ याद रखना होता था।
मुझे याद है कि एक बार मैंने उनसे एक शब्द का अर्थ पूछा था जिसका उन्होंने तभी-तभी एक प्रवचन में प्रयोग किया था। उन्होंने मुझे डाँटते हुए कहा था, "मैंने तुम्हें सात साल पहले यह समझाया था। मुझे याद है, तुम्हें क्यों नहीं?" दरअसल, मैं जब भी मैं कोई गलती करता या कोई मूर्खतापूर्ण काम करता, तो रिन्पोचे मुझे डाँटते और मुझे अपने पसंदीदा नाम, "मूर्ख" से पुकारते थे, चाहे हम लोगों के एक बड़े समूह में ही क्यों न हों। मैं इस बात की सराहना करता था कि वे किस तरह मेरा अहंकार कम करने में मेरी मदद कर रहे थे, इसलिए मैं उन पर एक बार भी नाराज़ नहीं हुआ।
मुझे बाद में समझ आया कि उन्हें लगता था कि मेरा कालचक्र से एक विशेष जुड़ाव है और मैं भविष्य में परम पावन के लिए दीक्षा अनुष्ठान का अनुवाद कर सकूँगा और कालचक्र पर एक पुस्तक लिख सकूँगा। इसलिए कालचक्र के अतिरिक्त वे मुझे तब तक कुछ नहीं सिखाते थे जब तक कि मैं उसका अनुवाद दूसरों के लिए न करूँ। इस व्यावहारिक तरीके से उन्होंने मुझे सिखाया कि धर्म सीखने की मेरी प्रेरणा केवल दूसरों के लाभ के लिए होनी चाहिए और मुझे जो कुछ भी सीखना है उसे लिख लेना चाहिए ताकि मैं भविष्य में उसे दूसरों तक पहुँचा सकूँ। रिन्पोचे के साथ बिताए नौ वर्षों में उन्होंने मुझे केवल दो बार धन्यवाद दिया। इस तरह, उन्होंने मुझे सिखाया कि उनकी और परम पावन की सेवा करने की मेरी प्रेरणा केवल दूसरों का लाभ होनी चाहिए, न कि शाबाशी पाने के लिए ताकि मैं अपनी पूँछ हिला सकूँ!
रिन्पोचे की शिक्षाओं को सुनने आए पश्चिमी लोगों में इंग्लैंड से एलन टर्नर प्रमुख थे। एलन वज्रभैरव (यमंतक) में गहरी रुचि रखते थे और उन्होंने इस पर कई शिक्षाओं का अनुरोध किया, जिनका मैंने अनुवाद किया। इनमें से कुछ वज्रभैरव साधना पर पश्चिमी लोगों के समूहों को दिए गए प्रवचन थे और कुछ केवल एलन और मेरे लिए निजी शिक्षाएँ थीं। इनमें अग्नि पूजा और आत्म-दीक्षा के साथ-साथ न केवल वज्रभैरव के द्वि-आयामी मंडलों, बल्कि गुह्यसमाज, चक्रसंवर और कालचक्र के चित्रांकन के लिए माप और ग्रिड की शिक्षाएँ शामिल थीं। उन्होंने हमें कागज़ के बड़े-बड़े पन्ने लाकर उनके साथ वह सब चित्रित करने को कहा। इतना ही नहीं, उन्होंने हमें इन सभी देवताओं के त्रि-आयामी मंडल महलों के माप भी सिखाए, और विभिन्न वास्तुशिल्पीय विशेषताओं में त्सम्पा आटे का नमूना बनाकर हमें दिखाया कि वे कैसे दिखते हैं।
हालाँकि एलन तिब्बती भाषा नहीं जानते थे, फिर भी उन्हें रक्षक कक्ष में घंटों बैठकर आनुष्ठानिक मंत्रोच्चार सुनना बहुत पसंद था। उनके अनुरोध पर, रिन्पोचे ने उन्हें छह भुजाओं वाले महाकाल का पूरा रक्षक अनुष्ठान सिखाया। कई वर्षों तक, एलन ने प्रतिदिन इस रक्षक अनुष्ठान के साथ-साथ वज्रभैरव आत्म-दीक्षा भी की। एलन इतने गहन साधक थे कि बाद में रिन्पोचे ने उन्हें अपना "अंग्रेज़ योगी" कहा। इसीलिए, रिन्पोचे अपनी दोनों पश्चिमी यात्राओं के दौरान एलन के घर पर रुके ताकि उन्हें और अधिक निजी शिक्षाएँ दे सकें।
एक दिन, रिन्पोचे ने मुझे समझाया कि किसी लामा द्वारा हर उस ग्रंथ का, जिसका आप अध्ययन करना चाहते हैं, वाक्य-दर-वाक्य, स्पष्टीकरण करवाना असंभव है। आपको स्वयं तिब्बती भाषा में ग्रंथ पढ़ने में सक्षम होना चाहिए और फिर जो अंश आपको समझ में नहीं आते, उन्हें किसी लामा से समझना चाहिए। इस दिशानिर्देश का पालन करते हुए, उन्होंने गुह्यसमाज, कालचक्र और तंत्र चरणों एवं मार्गों पर कई भाष्यों के पठन में मेरा मार्गदर्शन किया, जिनके पठन के साथ-साथ मैंने उनका अनुवाद किया। उन्होंने मेरे साथ अपनी कुछ अंतर्दृष्टियाँ भी साझा कीं, उदाहरण के लिए, सभी भावनात्मक अस्पष्टताएँ (न्योन-स्ग्रिब), जिनमें अशांतकारी मानसिक कारकों के बीज (प्रवृत्तियाँ) भी शामिल हैं, अशांतकारी मानसिक कारक हैं और इस प्रकार किसी चीज़ के प्रति जागरूक होने के तरीके हैं। यह तर्क देते हुए कि चावल का एक बीज भी चावल ही है, उन्होंने कहा कि वे असंगत मानसिक कारक नहीं हैं, जो न तो भौतिक घटनाओं के रूप हैं और न ही किसी चीज़ के प्रति जागरूक होने के तरीके हैं।
शीघ्र ही मैंने परम पावन दलाई लामा के उपदेशों का अनुवाद भी शुरू कर दिया। पहले तो मैं उपदेशों को सुनते समय उनके सारांश तैयार करता और फिर उन्हें पश्चिमी लोगों को पढ़कर सुनाता। फिर मैंने क्रमिक अनुवाद शुरू किया, परम पावन के उपदेशों के साथ बारी-बारी से, और अंततः समकालिक अनुवाद। अधिकतर समय मैं रिन्पोचे के पास बैठा रहता था, जो मेरे व्यवहार पर कड़ी नज़र रखते थे और जब भी मैं उचित शिष्टाचार के विरुद्ध काम करता, तो मुझे डाँटते थे। रिन्पोचे का मानना था कि अधिकतर पश्चिमी लोग प्रश्न पूछना नहीं जानते या बहुत अधिक बोल देते हैं जिससे यह स्पष्ट नहीं होता कि वे क्या पूछ रहे हैं। वे हमेशा मुझसे कहते थे कि मैं उनकी कही हर बात का अनुवाद न करूँ, बल्कि सिर्फ़ प्रश्न का अनुवाद करूँ। इसी तरह, परम पावन के उपदेशों के दौरान जब पश्चिमी लोग लिखित प्रश्न प्रस्तुत करते, तो वे मेरे साथ मिलकर उन्हें पढ़ते ताकि अस्पष्ट या तुच्छ प्रश्नों को अलग किया जा सके और ऐसे प्रासंगिक प्रश्न तैयार किए जा सकें जो परम पावन को प्रसन्न करें और श्रोताओं के लिए सबसे अधिक उपयोगी हों।
एक बार, जब मैं कालचक्र एकांतवास कर रहा था, मुझे निजी कार्यालय से परम पावन के लिए एक दीक्षा और शिक्षा का अनुवाद करने हेतु मनाली जाने का अनुरोध प्राप्त हुआ। रिन्पोचे ने मुझे अपना एकांतवास छोड़कर तुरंत जाने को कहा। परम पावन की सेवा सबसे महत्त्वपूर्ण सेवा है। कभी-कभी मुझे लगता था कि रिन्पोचे ने मुझे प्रशिक्षित करने में इतनी मेहनत की है कि वे मुझे परम पावन की सेवा के लिए एक भेंट के रूप में प्रस्तुत कर सकें। मैंने रिन्पोचे की इच्छा पूरी करने की पूरी कोशिश की है।
जब मैं रिन्पोचे के साथ था, तो कई बार उन्होंने अपनी अतीन्द्रिय क्षमताओं का प्रदर्शन किया। एक बार धर्मशाला के तुषित रिट्रीट सेंटर जाते समय, उन्होंने ड्राइवर से जल्दी करने को कहा। ध्यान कक्ष में तभी-तभी आग लग गई थी, और ऐसा सचमुच हुआ था। एक और बार, उनके साथ पश्चिम की मेरी दो यात्राओं में से एक के दौरान, जब मैं उनसे पहले पेरिस पहुँचने वाला था, तो उन्होंने मुझसे कहा कि मैं तय समय से एक दिन देर से पहुँचूँगा, और कार खराब होने के कारण ऐसा ही हुआ। एक बार, रिन्पोचे ने मुझे स्वयं वज्रभैरव होने का भेद ज़ाहिर किया। मैंने उनसे देवता के चेहरे के बारे में एक प्रश्न पूछा था और अचानक, उन्होंने अपना चेहरा हूबहू उनकी प्रतिकृति में बदल दिया, उनकी जीभ लपलपा रही थी और लाल आँखें चमक रही थीं। यह भयानक था।
जब रिन्पोचे को यूरोप और उत्तरी अमेरिका की दो विदेश यात्राओं के लिए आमंत्रित किया गया, तो मैंने सभी वीज़ा और उड़ानों का पूरा प्रबंध किया और उनके अनुवादक के रूप में उनके साथ गया। मुझे जो भी पत्र लिखने थे, जो भी आवेदन भरने थे और दूतावासों की जो भी यात्राएँ करनी थीं, उन्हें मैंने अपनी प्रारंभिक साधनाओं, अपने "नगोंड्रो" का हिस्सा माना। इन यात्राओं के दौरान, रिन्पोचे ने सूत्र और तंत्र के विविध विषयों की शिक्षा दी। इनमें सबसे दुर्लभ वज्रभैरव और वज्रयोगिनी के " संगृहीत मंत्र" अनुष्ठान (बसंगग्स-बटु) थे।
हमेशा की तरह, रिन्पोचे पूरी यात्रा के दौरान व्यावहारिक और सहज रहे। दिल्ली जाते समय, वे हमेशा ट्रेन की तृतीय श्रेणी से जाना पसंद करते थे। उनका कहना था कि चाहे आप तृतीय श्रेणी में जाएँ या (प्रथम) श्रेणी में, पहुँचना साथ ही है। उन्हें यह पसंद नहीं था कि लोग उन पर अनावश्यक पैसा खर्च करके उन्हें महंगे रेस्टोरेंट में ले जाएँ, बल्कि वे उन परिवारों के साथ घर पर खाना पसंद करते थे जिनके साथ हम ठहरते थे। वे हमेशा परिवारों के साथ मिलकर खाना खाते थे, न कि अपने कमरे में अकेले, जैसा कि अन्य उच्च लामा करते थे जब उनका आतिथ्य किया जाता था। उन्होंने मुझे अपने उदाहरण से सिखाया कि कैसे हमेशा अनौपचारिक और मित्रवत् रहकर, और कभी भी किसी कुलीन व्यक्ति की तरह घमंडी व्यवहार न करके, लोगों को अपने आस-पास सहज महसूस कराया जा सकता है। उन्होंने मुझसे कहा कि भविष्य में, जब मैं धर्म शिक्षक बनूँगा और मेरे छात्र मुझे बुद्ध मानेंगे, हालाँकि मुझे पता है कि मैं बिल्कुल भी बुद्ध नहीं हूँ, तो मुझे अपने शिक्षकों के बुद्ध होने पर कभी संदेह नहीं करना चाहिए।
रिन्पोचे ने अपने उदाहरण से मुझे बहुत कुछ सिखाया, जिस पर मैंने हमेशा अमल करने की कोशिश की है। चाहे वे पोप से मिल रहे हों, किसी शराबी के पास आ रहे हों या बच्चों के समूह से बात कर रहे हों, वे सभी के साथ समान सम्मान और समानता का व्यवहार करते थे, धर्म में सभी की रुचि को गंभीरता से लेते थे। यात्रा चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, रिन्पोचे धर्म में रुचि रखने वाले लोगों को शिक्षा देने के लिए सबसे दुर्गम स्थानों, जैसे तिब्बत की सीमाओं पर तिब्बती सेना के शिविरों में याक पर सवार होकर जाते थे। इसी प्रकार, रिन्पोचे के निधन के बाद, मैंने उनके उदाहरण का अनुसरण करने का प्रयास किया और पूरे साम्यवादी विश्व, दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका के कुछ हिस्सों और मध्य पूर्व की यात्रा की और विश्वविद्यालयों में और साम्यवादी देशों में, लोगों के घरों में गुप्त सभाओं में भी, धर्म पर व्याख्यान दिए।
आखिरी बार मैंने रिन्पोचे को स्पीति में उनके निधन से कुछ हफ़्ते पहले देखा था। रिन्पोचे ने परम पावन के लिए वहाँ पहली बार कालचक्र दीक्षा देने का प्रबंध किया था और मैंने पश्चिमी लोगों से भरी एक बस का इंतज़ाम किया था। दीक्षा के दौरान, जब मैं साथ-साथ अनुवाद कर रहा था, तो मुझे बेहद आश्चर्य हुआ जब मुझे मुख्य शिष्यों में से एक होने के नाते सभी अनुष्ठानिक वस्त्र और अन्य सामग्री पहनने के लिए दी गई। मेरा मानना है कि यह रिन्पोचे की ओर से एक विदाई उपहार था।
दीक्षा के बाद, जब मैं धर्मशाला लौटने से पहले रिन्पोचे से मिलने गया, तो मैंने उनसे दीक्षा अनुष्ठान के बारे में कुछ तकनीकी प्रश्न पूछे। उत्तर देने के बाद, रिन्पोचे ने सलाह दी कि शिक्षाओं में कठिन बिंदुओं को समझने के लिए, मुझे हमेशा तर्क और विवेक का सहारा लेना चाहिए। यह रिन्पोचे द्वारा मुझे दी गई आखिरी सलाह थी। मैंने अपने पूरे जीवन में रिन्पोचे के मुझ पर रखे गए विश्वास पर खरा उतरने और उनकी सभी सलाह और उदाहरणों का यथासंभव पालन करने का प्रयास किया है। किसी भी कठिनाई का सामना करने पर, मैंने हमेशा सोचा है कि रिन्पोचे उस समस्या से कैसे निपटते और तब मुझे स्पष्ट रूप से पता होता है कि क्या करना है।
मेरा मानना है कि रिन्पोचे अपनी अतीन्द्रिय शक्तियों से यह जानते थे कि मुझे सौंपी गई इतनी सारी विशेष शिक्षाओं को मैं संरक्षित रखूँगा और भविष्य में उन्हें दुनिया तक पहुँचाऊँगा। मैं अपनी वेबसाइट, studybuddhism.com के माध्यम से यही करने का प्रयास कर रहा हूँ। मुझे उनसे प्राप्त हुई सबसे दुर्लभ शिक्षाओं में से एक थी ‘व्याख्या-योग्य निश्चयात्मक अर्थों का सुस्पष्ट सार’ (द्रांग्स-नगेस लेग्स-बशाद स्नीइंग-पो) की विशेष वंशावली का मौखिक संचरण, जो उन्हें उनके पिता सरकाँग दोरजेचांग से प्राप्त हुई थी, जिन्होंने इसे सीधे जे त्सोंगखापा से निर्मल दिव्य-दर्शन में प्राप्त किया था। मुझे परम पावन दलाई लामा की अनुमति से, कई वर्षों बाद सरकाँग रिन्पोचे के पुनर्जन्म (त्सेनझाब सरकाँग रिन्पोचे (द्वितीय)) को इसे वापस देने और हमारी वेबसाइट पर उनकी शिक्षाओं को शामिल करके सरकाँग वंशावली को और अधिक संरक्षित करने का अनूठा अवसर मिला। मुझे आशा है कि इन छोटे-छोटे तरीकों से मैं उनकी असीम दया और विश्वास का बदला चुका पाऊंगा।