यह दुनिया अजीब पगलाई सी दिखाई देती है। आप समाचार खोल कर देखिए: आतंकवादी हमला करने वाले हैं! अर्थव्यवस्था चरमरा रही है! और पर्यावरण – बस पूछिए मत। इतना इस बात के लिए काफी होता है कि बाकी के सप्ताह भर आप बिस्तर से उठना भी न चाहें।
और यह तो केवल बाहरी दुनिया की हालत है। हमें खुद अपने जीवन को भी देखना होता है। अगली छुट्टियाँ मनाने के लिए कहाँ जाया जाए? अपने उस सहकर्मी का सामना कैसे करें जिसे हाल ही में तरक्की मिली है जबकि वह तरक्की स्वयं हमें इतनी शिद्दत से चाहिए थी। आखिर हम अपने जीवन का क्या करें?
छोटी उम्र में हमें बताया जाता है कि हम जो चाहें वह बन सकते हैं। “बस अपने स्वप्नों को साकार करने कि दिशा में बढ़े चलो,” हमें सिखाया गया था। लेकिन हममें से कितने ऐसे हैं जो अपने सपनों को साकार कर रहे हैं? हममें से कितने ऐसे हैं जो अपने सोशल मीडिया के फीड्स को देखते हुए उन लोगों से ईर्ष्या करते हैं जो हमारी नज़र में सचमुच अपने सपनों को जीते हुए दिखाई देते हैं? समुद्र तट पर बिताई हुई उनकी छुट्टियाँ और उनकी दमकती दाँतों की लड़ी – उन्हें जीवन जीने की कुंजी मिल चुकी है जबकि हम खुद अपने उदास सुनसान दफ्तर में ही उलझे हुए हैं।
“सुख” की यह अवधारणा किसी परी कथा या किसी विज्ञापन के नारे के जैसी प्रतीत हो सकती है – जिसके लिए हम अभी मेहनत करते हैं ताकि भविष्य में किसी अनाम तारीख को हम उसका आनंद ले सकें। लेकिन हम कितना ही अधिक परिश्रम क्यों न कर लें, हमें सुख मिलेगा ही इसकी कोई गारंटी नहीं है। कुछ लोग पी-एच.डी. कर लेने के बाद भी मैकडॉनल्ड के लिए मामूली नौकरी करते रह जाते हैं जबकि कुछ लोग असाधारण रूप से अमीर हो प्रसिद्ध हो जाते हैं, लेकिन फिर भी वे अवसादग्रस्त हो जाते हैं और कुछ लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं। ये सब बातें हमें जीवन के प्रति चिंतित करती हैं जिससे सामाजिक चिंता उत्पन्न होती है, जहाँ हम हर समय अपनी तुलना दूसरे लोगों के साथ करते रहते हैं। जब हमारी नज़रें किसी दूसरे व्यक्ति से मिलती हैं तो हम असहज और असुरक्षित महसूस करते हैं और फिर खुद को अपने स्मार्टफोन की आड़ में छिपाने का
प्रयत्न करते हैं।
यह हमारे समय की विपत्ति है। भले ही यह एड्स, कैंसर या अवसाद जैसी भयावह न दिखाई देती हो, लेकिन चिंता हमारी ऊर्जा को निचोड़ लेती है और व्यक्ति अपने अचेतन मन में एक व्यग्रता का भाव लिए घूमता रहता है। इसी के कारण हम किसी नई टी.वी. सीरीज़ में या फेसबुक फीड में खोकर अपने ध्यान को बांटने का प्रयास करते हैं, और यह सब इसलिए होता है क्योंकि अपने विचारों के साथ अकेला रहना हमारे लिए असहनीय हो जाता है। अपनी स्थिति को सहन करने योग्य बनाने के लिए हमें ईयरफोन्स और लगातार संगीत की आवश्यकता होती है।
ऐसा होना नहीं चाहिए। हम सभी जानते हैं कि हमें जीवन में जो कुछ मिला है हमें उसके लिए शुक्रगुज़ार होना चाहिए, और हम यह भी जानते हैं कि हमें कभी भी अपनी तुलना दूसरों के साथ नहीं करनी चाहिए। लेकिन वास्तव में इस सब का मतलब क्या है? हम चिंता पर विजय कैसे पा सकते हैं?
पीछे हटें
हमें अपने कदम पीछे खींच कर अपने जीवन का विश्लेषण करने की आवश्यकता है। यह बात उबाऊ या नीरस लग सकती है, लेकिन हम इसे छोड़ कर आगे नहीं बढ़ सकते हैं। हम अपने जीवन से क्या अपेक्षा रखते हैं? सभी के मामले में लागू होने वाला जीवन का कोई एक सही मार्ग नहीं है, लेकिन हमसे पहले बहुत से लोग जीवन के इस मार्ग पर जा चुके हैं। हो सकता है कि हमारी इच्छा एक मशहूर रॉकस्टार बनने की हो, लेकिन क्या हम सचमुच चाहते हैं कि चौबीस घंटे, सात दिन स्वतंत्र फोटोग्राफर आपका पीछा करते रहें? क्या आगे चलकर रॉकस्टार सुखी जीवन जीते हैं? उनमें से कितने होते हैं जो शराब और नशीली दवाओं का सहारा लेते हैं? उसके अलावा हमें यह भी विचार करना होगा कि क्या हम उतना समय और ऊर्जा खर्च करने के लिए तैयार हैं जिसकी इसके लिए आवश्यकता होती है।
अपने लिए अनुकरणीय व्यक्ति तलाश करें
जब हम अपने लिए कोई ऐसी जीवन पद्धति तय कर लेते हैं जो हमारे जीवन को अधिक सुखी और सार्थक बना सकती है, तो फिर अगला कदम किसी ऐसे व्यक्ति को तलाश करने का होता है जो उस प्रकार की जीवन पद्धति का साकार रूप हो। एक महान संगीतकार बनने के लिए हमें अभ्यास करने की आवश्यकता होती है। फुटबॉल का खिलाड़ी बनने के लिए भी अभ्यास की आवश्यकता होती है। भले ही हमें यह बात अब याद न रही हो, लेकिन चलना सीखने के लिए भी हमें अभ्यास करना पड़ा था। यहाँ संदेश यह है कि कारण के बिना कोई परिणाम नहीं होता है। जीवन में कोई उपलब्धि हासिल करने के लिए समर्पण की आवश्यकता होती है। ऐसा व्यक्ति जिसके पगचिह्नों पर हम चलना चाहें, हमें उपयोगी सुझाव दे सकता है और हमारी प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।
दूसरों की सहायता करें
अपने विचारों और अपनी इच्छाओं में तल्लीन हो जाना बहुत सहज होता है। हमारा ध्यान मुख्यतः इस बात पर रहता है कि हम क्या चाहते हैं और जीवन से हमारी क्या अपेक्षा है, और जब भी कोई हमारी इच्छाओं के रास्ते में आता है तो हम हड़बड़ा जाते हैं। चिंता का एक बड़ा भाग इस डर के कारण होता है कि हम अलग-थलग न पड़ जाएं, लेकिन दूसरों के साथ जुड़ने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि हम सचमुच दूसरों की परवाह करें। यदि हम केवल अपने बारे में ही सोचेंगे तो यह निश्चित है कि हम दुखी रहेंगे; जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि दूसरों की सहायता करने से चिंता कम होती है और सुख में वृद्धि होती है।
कुछ बहुत बड़ा करना आवश्यक नहीं है। उदासी भरे किसी दिन में किसी को देख कर मुस्करा देना या सच्चे मन से किसी को धन्यवाद देना ही दोनों पक्षों के उत्साह को बढ़ाने के लिए काफी होता है। इसे सिर पर पड़ा बोझ समझकर करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि किसी के दिन को आनंदमय बनाने की हार्दिक इच्छा के साथ ऐसा करना चाहिए। फिर देखिए कि आपकी मानसिक दशा में कितना बदलाव आता है।
अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानिए
हम सभी यह सोच कर खुश होते हैं कि हम अपने आप में अनूठे हैं, लेकिन इससे तो यही सिद्ध होता है कि हम सभी एक जैसे ही हैं। जब हम यह कहते हैं कि “अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानिए” तो इसका अर्थ वास्तव में यह है कि हम जानें कि हम सभी का वास्तविक स्वरूप क्या है। हम सभी को कुछ न कुछ समस्याएं हैं और किसी का भी जीवन परिपूर्ण नहीं है। आप जो कुछ सोचते हैं उन सभी बातों पर यकीन मत कीजिए!
जिस तरह हम अपने उन चित्रों को किसी को नहीं दिखाना चाहते हैं जिनमें हमारे विचार से हम अच्छे नहीं दिखाई दे रहे होते हैं, वही स्थिति दूसरों की भी है। हम सार्वजनिक तौर पर अपना मखौल उड़ाए जाने से डरते हैं – और जानते हैं? दूसरे सभी लोग भी इसी बात से डरते हैं। हालाँकि हम एक ऐसे युग में जीते हैं जहाँ हमारे सामने ऐसी जानकारी की बौछार होती रहती है जहाँ कितने ही लोगों के जीवन को परिपूर्ण जीवन के रूप में पेश किया जाता है, लेकिन हमें उसके छलावे में आने की आवश्यकता नहीं है। यदि हम इन बातों के प्रति सजग रहें, पूरे मन से दूसरों को खुशी देने के लिए प्रयत्न करें, और स्वयं अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए मेहनत करें तो हमारी चिंता धीरे-धीरे खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगी।