योग एवं बौद्ध-धर्मी साधना को मिलाना

हठ योग की आधुनिक शैलियों जैसे अष्टांग विन्यास, अय्यंगार योग, या फिर किसी अन्य शैली जिसमें आसन  अभ्यास पर बल दिया जाता हो, को मिलाना हमारी बौद्ध-धर्मी साधना के लिए अत्यंत लाभदायक हो सकता है:

  • दैनिक आसन अभ्यास हमारे अनुशासन को प्रशिक्षित करता है और हमारे लिए नियमित ध्यान-साधना शुरू करना सरल बनाता है।
  • हमारा शरीर अधिक सबल और लचीला हो जाता है, जिससे हमें बैठकर ध्यान-साधना करना सहज हो जाता है। शमथ  साधना में, जहाँ हमारा लक्ष्य होता है एक शांत और निश्चल चित्त की अवस्था प्राप्त करना, अंग-विन्यास अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होता है और आसन  अभ्यास इसमें सहायक सिद्ध होता है।
  • यदि हम अपने आसन अभ्यास पर एकाग्रचित्त रह सकते हैं, तो यह हमारे ध्यान को आत्मनिरीक्षण के लिए तैयार करता है, जैसे श्वास पर केंद्रित प्राणायाम  साधना। 
  • शवासन, या मृत शरीर की मुद्रा, विश्राम करने के अभ्यास में सहायक होती है - जो शमथ  के विकास के प्रशिक्षण के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

दर्शन की दृष्टि से देखा जाए तो स्थिति अधिक जटिल हो जाती है, क्योंकि योग और बौद्ध-धर्म के कई प्रमुख सिद्धांत अलग-अलग प्रकार से परिभाषित किए गए हैं। यदि हम हठयोग और बौद्ध-धर्म दोनों का अभ्यास एक साथ करना चाहते हैं, तो यह महत्त्वपूर्ण है कि हम इन दोनों प्रणालियों के पृथक तात्त्विक दृष्टिकोणों को परस्पर उलझाएँ नहीं।

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