त्सेनशाब सेरकोँग रिंपोछे द्वितीय के साथ साक्षात्कार

त्सेनशाब सेरकोँग रिंपोछे द्वितीय की हाल की यूरोप यात्रा के दौरान स्टडी बुद्धिज़्म ने हैम्बर्ग के नज़दीक देहात में एक उद्यान में उनके साथ वार्ता की।
Study buddhism tsenzhab serkong rinpoche 2

स्टडी बुद्धिज़्म: कृपया अपना परिचय दें।

सेरकोँग रिंपोछे: मेरा नाम त्सेनशाब सेरकोँग रिंपोछे है जो कि परम पावन दलाई लामा द्वारा दी गई एक उपाधि है। मुझे अवतार की उपाधि उस समय दी गई जब मेरी उम्र लगभग साढ़े तीन वर्ष थी। मैं मठ में रहने के लिए गया और वहाँ मैंने विभिन्न ग्रंथों का अध्ययन किया। 

मेरा जन्म स्पीति में एक बड़े परिवार में हुआ था – मेरे नौ भाई- बहन हैं। मैं अपने माता-पिता की चौथी संतान हूँ। लेकिन मैं अपने परिवार और बहन-भाइयों के साथ ज्यादा समय तक नहीं रहा, क्योंकि मैं तो मठ में चला गया था। स्पीति एक दूर-दराज़ का शुष्क और रेगिस्तान जैसा क्षेत्र है। वह काफी ऊँचाई पर स्थित है। वहाँ की संस्कृति और स्थानीय लोग तिब्बतियों से मिलते-जुलते हैं। और तिब्बती लोगों की ही तरह हम लोग भी एक-दूसरे का बहुत आदर करते हैं, और लोग बड़े नेकदिल होते हैं। बेशक, बहुत से लोग अंधविश्वास को भी मानते हैं।

स्टडी बुद्धिज़्म: आपको महान आचार्य सरकाँग रिंपोशे के अवतार के रूप में मान्यता दी गई। क्या आप अनुभव करते हैं कि एक व्यक्ति के तौर पर आप वैसे ही हैं जैसे आप पिछले जन्म में थे?

सेरकोँग रिंपोछे: ओह, यह तो बड़ा पेचीदा सवाल है! पहली बात तो यह है कि मैं कभी पिछले रिंपोशे से मिला नहीं। यह स्वरूप अलग है, और चित्त की दृष्टि से भी कुछ अंतर है। इसलिए मैं कहना चाहूँगा कि अधिकांशतः मैं स्वयं को उनके जैसा महसूस नहीं करता हूँ। वे जिस तरह से साधना करते थे, उनमें जितनी गुरु भक्ति थी – जब मैं उनके सद्गुणों के बारे में सुनता हूँ तो सचमुच उनके प्रति श्रद्धा और समादर भाव जाग्रत होती है।

लेकिन मैं लोगों की भलाई करने की त्सेनशाब सेरकोँग रिंपोछे की ज़िम्मेदारियों से अपने आप को बहुत जुड़ा हुआ महसूस करता हूँ। कई बार मैं सोचता हूँ, “मैं अवतरा होऊँ या न होऊँ, लेकिन मेरे सामने यह एक बड़ा महान अवसर है।” इसलिए मैं इस अवसर को पाकर अपने आप को बड़ा भाग्यशाली समझता हूँ।

स्टडी बुद्धिज़्म: कृपया आप अपनी इन ज़िम्मेदारियों के बारे में थोड़े विस्तार से बताएंगे?

सेरकोँग रिंपोछे: पूर्ववर्ती सरकाँग रिंपोशे ने एक सबसे अद्भुत काम तो यह किया कि उन्होंने परम पावन दलाई लामा की सेवा की। इसके अलावा, स्पीति के लोगों के प्रति अपनी करुणा के कारण उन्होंने वहाँ के लोगों के साथ-साथ तिब्बत के लोगों और यूरोप तथा अमेरिका में पश्चिम जगत के कई लोगों के साथ भी गहरे ताल्लुकात स्थापित किए।

इसलिए मेरी भी इच्छा है कि मैं परम पावन की सेवा करूँ। ज़ाहिर है कि यहाँ मेरा काम थोड़ा सा अलग है, क्योंकि मेरे पूर्ववर्ती एक योग्य शिक्षक थे, और मैं उसके कहीं भी नज़दीक नहीं हूँ। मुझे अभी बहुत अध्ययन और साधना करनी है। लेकिन परम पावन के मार्गदर्शन में मैं उनके द्वारा निर्देशित कार्यों को अपनी पूरी क्षमता से करने का प्रयास करूँगा। 

वीडियो: त्सेनशाब सेरकोँग रिंपोछे द्वितीय – बौद्ध धर्म का अध्ययन क्यों करें?
सबटाइटल्स को ऑन करने के लिए वीडियो स्क्रीन पर "CC" आइकॉन को क्लिक कीजिए। सबटाइटल्स की भाषा बदलने के लिए "सेटिंग्स" आइकॉन को क्लिक करें और उसके बाद "सबटाइटल्स" पर क्लिक करें और फिर अपनी पसंद की भाषा का चुनाव करें।

इस सब के अलावा,  मुझसे पहले मेरे पूर्ववर्ती द्वारा किए गए कार्य को आगे जारी रखने की दृष्टि से ऐसे बहुत से लोग हैं जिनकी यह इच्छा है कि मैं उन्हें शिक्षा दूँ, और वे मेरे साथ कार्मिक सम्बंध बनाना चाहते हैं। मुझे लगता है कि उनकी खातिर मुझे यह कार्य करना चाहिए।

स्टडी बुद्धिज़्म: आप एक बहुत ही पारम्परिक मठ व्यवस्था में पले-बढ़े हैं, और अब आपने हाल के तीन वर्ष कनाडा में रहते हुए बिताए हैं। यह एक बहुत बड़ा बदलाव है। इस बदलाव को संभालने में आपकी बौद्ध साधना ने किस प्रकार आप की सहायता की?

सेरकोँग रिंपोछे: मेरी मठीय जीवनशैली और कनाडा की जीवनशैली के बीच बहुत अंतर है। मठ में रहते हुए हमें कई तरह के नियमों का पालन और सम्मान करना होता था। लेकिन यदि कभी आपको ऐसा महसूस होता कि आप उनका पालन नहीं करना चाहते हैं, तो आपको ऐसा महसूस हो सकता था जैसे आप किसी बंदीगृह में हों। मठ की जीवनशैली के साथ में बहुत नज़दीकी से जुड़ा हुआ था, लेकिन यह सच है कि कभी-कभी मेरी इच्छा होती थी कि मैं उसका पालन न करूँ। 

निःसंदेह, जब मैं कनाडा आया तो मैं वहाँ पहुँच कर पूरी तरह कनाडाई नहीं बन गया! मैं वहाँ अंग्रेज़ी पढ़ने के लिए गया था, और मेरे सभी मित्र मुझे केवल सरकाँग कह कर बुलाते थे जो बड़ा अजीब लगता था। लेकिन वहाँ मेरे कुछ अच्छे दोस्त बने, और आखिरकार मुझे लगने लगा कि मैं भी उन्हीं में से एक हूँ। मुझे  अपने देश के लोगों और कनाडा के लोगों के सोचने के ढंग में बहुत अंतर दिखाई देते थे। मुझे लगता था, “ओह, सामान्य लोग इसी ढंग से सोचते हैं!”

जब मैं मठवासी था, तो सभी मेरे साथ बहुत ही आदरपूर्वक व्यवहार करते थे। लेकिन कनाडा में मेरे मित्रों के साथ रहते हुए स्थिति वैसी बिल्कुल नहीं थी। इससे मुझे इस बात को याद रखने में बड़ी सहायता मिली कि मैं एक बेहद साधारण व्यक्ति हूँ! मठ में रहते हुए मेरे लिए अपने छुरी-काँटे, कप और थाली हुआ करते थे जिनका प्रयोग भोजन करने के लिए कोई और नहीं कर सकता था। कनाडा में मेरे मित्र आइसक्रीम खाते हुए मुझसे कह सकते थे, “अरे, इसे चख कर देखो, बहुत स्वादिष्ट है!” इससे मुझे यह अहसास हुआ कि मैं दूसरों के साथ जुड़ा हुआ हूँ। 

स्टडी बुद्धिज़्म: आपने अपना जीवन बौद्ध धर्म का अध्ययन करते हुए बिताया है। ऐसा करने के लिए यदि आपको एक अच्छा कारण गिनाना हो, तो वह कारण क्या होगा?

सेरकोँग रिंपोछे: लोग बौद्ध धर्म का अध्ययन क्यों करें? यह बहुत व्यक्ति सापेक्ष बात है! यह प्रत्येक व्यक्ति की अपनी रुचि पर निर्भर  करता है। परम पावन दलाई लामा हमेशा कहते हैं कि लोगों को बौद्ध धर्म, बौद्ध दर्शन और बौद्ध विज्ञान के विकल्प उपलब्ध हैं। इसलिए कई प्रकार के विकल्प उपलब्ध हैं जो अलग-अलग लोगों को लाभ पहुँचा सकते हैं।

उदाहरण के लिए करुणा को लें। बौद्धजन इसकी बहुत चर्चा करते हैं, लेकिन केवल करुणा की साधना करने मात्र से ही आप बौद्ध नहीं बन जाते हैं। लेकिन सच्चे अर्थ में करुणा को विकसित करने के लिए हम सभी बौद्ध विधियों का अध्ययन कर सकते हैं। इस प्रकार आप अपने करुणा के भाव का संवर्धन कर सकते हैं। मैं नहीं मानता कि कोई ऐसा भी व्यक्ति होगा जो अपनी करुणा को न बढ़ाना चाहे, क्योंकि वह एक बहुत ही सुंदर भाव है, है न?

जब आप यह महसूस करना शुरू करते हैं कि आप संसार – अपने सभी दुखों और समस्याओं – से बाहर निकलना चाहते हैं तो यह प्रश्न इस प्रकार पूछा जा सकता है कि क्या व्यक्ति को और अधिक अध्ययन और साधना करनी चाहिए। लेकिन सामान्य तौर पर, बहुत सारे ऐसे गुण हैं जिन्हें हम बौद्ध बने बिना भी बौद्ध धर्म का अध्ययन करके हासिल कर सकते हैं। 

वीडियो: त्सेनशाब सेरकोँग रिंपोछे द्वितीय – पूर्वी और पश्चिमी जगत में बौद्ध धर्म का अध्ययन
सबटाइटल्स को ऑन करने के लिए वीडियो स्क्रीन पर "CC" आइकॉन को क्लिक कीजिए। सबटाइटल्स की भाषा बदलने के लिए "सेटिंग्स" आइकॉन को क्लिक करें और उसके बाद "सबटाइटल्स" पर क्लिक करें और फिर अपनी पसंद की भाषा का चुनाव करें।

स्टडी बुद्धिज़्म: क्या आप एशिया और पश्चिम जगत में बौद्ध तकनीकों के अभ्यास और उन्हें वास्तव में लागू करने के बीच कोई अंतर पाते हैं? क्या पश्चिम के लोगों की कोई विशेष समस्याएं हैं?

सेरकोँग रिंपोछे: मैं मानता हूँ कि इनके बीच बहुत बड़ा अंतर है? एशिया में हमारा पालन-पोषण परम्परागत ढंग से होता है, इसलिए जब हमारे माता-पिता कहते हैं, “जाओ, प्रदक्षिणा करो और ऊँ मणि पद्मे हुँ का उच्चार करो” और हम अपने-आप वैसा कर देते हैं। इसके अलावा, लोगों को बौद्ध धर्म के बारे में बहुत कम जानकारी होती है। वे सोचते हैं, “यह सिर्फ हमारी परम्परा है, और कुछ नहीं।”

जब मैं स्पीति में लोगों को उपदेश देता हूँ तो सभी बड़े ध्यानपूर्वक सुनते हैं और मैं जो कुछ भी कहूँ, वे सिर हिलाकर अपनी सहमति व्यक्त करते हैं। उसके बाद में प्रतीक्षा करता हूँ कि मैंने जो कहा है उसके बारे में कुछ प्रश्न पूछे जाएंगे, लेकिन सामान्यतया कोई प्रश्न नहीं पूछा जाता है। मुझे लगता है कि यह थोड़ी समस्या की बात है। यदि कोई शंका नहीं प्रकट की जाती है तो इसका मतलब है कि श्रोता कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं।

पश्चिम में ऐसा नहीं है। वहाँ लोग बौद्ध धर्म के बारे में व्याख्यानों को सुनने के लिए जाते हैं और मुख्य बातों को बड़े ध्यान से सुनते हैं। ये उपदेश सचमुच उनके दिलों को जीत लेते हैं। पश्चिम में मैं अपने व्याख्यानों में जो कुछ भी कहता हूँ, लोग उसका विश्लेषण करते हैं और प्रश्न पूछते हैं। इससे धर्म के प्रति आस्था मज़बूत होती है।

निःसंदेह परम पावन की कृपा और उनके मार्गदर्शन से तिब्बत की संस्कृति पूरी तरह बदल रही है। लेकिन फिर भी, ये कुछ अंतर हैं जो मैंने पश्चिमी और हिमालयी समाजों के बीच पाए हैं।

स्टडी बुद्धिज़्म: क्या आप मानते हैं कि पूरी तरह पश्चिम में ही रहते हुए बौद्ध धर्म का अध्ययन और उसकी साधना करना सम्भव है, या हमें अध्ययन के लिए एशिया जाने की आवश्यकता है?

सेरकोँग रिंपोछे: पहले महान और योग्य शिक्षकों से मिलने के लिए भारत आना आवश्यक होता था। लेकिन आजकल प्रौद्योगिकी की सुविधा उपलब्ध होने के कारण लोगों के लिए धर्म सम्बंधी सामग्री को प्राप्त करना सचमुच बड़ा सुविधाजनक हो गया है। बहुत से देशों में भी कई बौद्ध केंद्र उपलब्ध हैं जहाँ योग्य गेशे और शिक्षक उपलब्ध हैं। इसलिए अब भारत आने की आवश्यकता नहीं रह गई है।

स्टडी बुद्धिज़्म: युवा लोग बड़ा व्यस्त जीवन जीते हैं। वे काम करना चाहते हैं और अच्छा समय बिताना चाहते हैं, लेकिन बहुत से युवा बौद्ध धर्म का अध्ययन भी करना चाहते हैं। आप उन्हें सबसे अच्छी सलाह क्या देना चाहेंगे?

सेरकोँग रिंपोछे: देखिए, उन्हें अभी थोड़ा और अध्ययन करने की आवश्यकता है। मैं जानता हूँ कि पश्चिम के लोगों की एक अद्भुत आदत होती है कि वे कहीं भी हों – हवाई जहाज़ से यात्रा कर रहे हों या रेल में हों – वे पुस्तकें पढ़ना पसंद करते हैं। इसलिए वे बौद्ध धर्म के बारे में कुछ पुस्तकें पढ़ सकते हैं। यदि आपको पढ़ी हुई बातों के बारे में कोई शंका हो तो किसी शिक्षक से पूछकर या इंटरनेट पर देखकर उसका समाधान करने का प्रयास कर सकते हैं।

और इस प्रकार जब आप कुछ सीख जाएं तो उसे अपने दैनिक जीवन में उतारने का प्रयास करें। धीरे-धीरे आप एक बड़े लक्ष्य तक पहुँचेंगे। निःसंदेह आपका लक्ष्य जितना बड़ा होगा, आपको मिलने वाले परिणाम भी उतने ही बड़े होंगे। 

स्टडी बुद्धिज़्म: बहुत सारी प्रतिज्ञाएं होती हैं। कुछ लोग इन प्रतिज्ञाओं को बंधन के रूप में देखते हैं जो हमें आमोद-प्रमोद का आनन्द उठाने से रोकती हैं। इसके बारे में आपकी क्या राय है?

सेरकोँग रिंपोछे: बेशक, यदि आपको ऐसा महसूस होता है कि कोई प्रतिज्ञा आपको कुछ ऐसा करने से रोक रही है जो आप करना चाहते हैं, तो आपको बंदीगृह में बंद होने जैसा तो महसूस होगा ही। लेकिन कोई हमें इन प्रतिज्ञाओं को लेने के लिए धकेल नहीं रहा है और न ही बाध्य कर रहा है। हम इन्हें स्वेच्छा से लेते हैं, और ये हमारी बौद्ध साधना के लिए बड़ी उपयोगी साबित होती हैं।

स्टडी बुद्धिज़्म: पश्चिम जगत के युवा लोगों को अल्प अवधि की साधनाओं के बारे में कोई सलाह देना चाहेंगे?

सेरकोँग रिंपोछे: मैं तो यही कहूँगा कि आप करुणा और सचेतनता के बारे में अधिक चिंतन करें। करुणा के बिना हम कुछ नहीं हासिल कर सकते हैं। हमें स्वयं अपने लिए और दूसरों के लिए भी करुणा की आवश्यकता है। 

स्टडी बुद्धिज़्म: आशीष क्या हैं?

सेरकोँग रिंपोछे: यह सचमुच बड़ा अच्छा प्रश्न है! एशिया में लोग किसी न किसी चीज़ को पवित्र मानते हैं, इसलिए ऐसा माना जाता है कि आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे खाना चाहिए। मैं मानता हूँ कि आशीष इस प्रकार नहीं फलते हैं – उसके लिए आस्था का होना आवश्यक है।

मेरे एक मित्र थे जिनके पिता लम्बे समय से अस्पताल में भर्ती थे। उन्हें नींद नहीं आती थी और डॉक्टर ने उन्हें कई सप्ताह तक कुछ गोलियाँ खाने के लिए दी थीं। फिर डॉक्टर ने उनसे कहा कि वे ठीक हो चुके हैं और अब उन्हें गोलियाँ लेने की आवश्यकता नहीं है, वे सामान्य तौर पर नींद ले सकते हैं। उन्होंने बहुत कोशिश की, लेकिन दवाओं के बिना वे सो नहीं सके। उन्होंने डॉक्टर से सम्पर्क किया और आग्रह किया कि उन्हें दवा देने का आग्रह किया, इसलिए डॉक्टर ऐसा करने के लिए सहमत हो गए। अगले दिन डॉक्टर ने उनसे पूछा कि उन्हें कैसी नींद आई, और मेरे मित्र के पिता ने बताया कि वे अच्छी तरह से सोए। तब डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उसने उन्हें दवा नहीं बल्कि उनकी मानसिक संतुष्टि के लिए दिखावटी दवा दी थी।

मैं मानता हूँ कि यह घटना हमें बताती है कि जब हमें किसी चीज़ पर आस्था होती है, तो फिर उसमें कुछ शक्ति आ जाती है। तब वह चीज़ आशीर्वाद बन जाती है।

डा. अलेक्ज़ेंडर बर्ज़िन और त्सेनशाब सेरकोँग रिंपोछे द्वितीय
डा. अलेक्ज़ेंडर बर्ज़िन और त्सेनशाब सेरकोँग रिंपोछे द्वितीय

त्सेनशाब सेरकोँग रिंपोछे द्वितीय के साथ और अधिक वीडियो देखें। 

Top