बौद्ध शिक्षाओं में ऐसी बहुत सी बातें सुझाई गई हैं जो हमें अपने दैनिक जीवन को जीने के गुर सिखाती हैं। यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं।
जब हमारी नींद खुले
सुबह नींद खुलने पर और बिस्तर से उठने से पहले हमें इस बात के लिए बहुत खुशी मनानी चाहिए और आभार मानना चाहिए कि हम अभी भी जीवित हैं और एक नए दिन का सामना करने के लिए तैयार हैं। हम एक मज़बूत इरादा करें कि:
- हम अपने दिन को सार्थक बनाएंगे
- हमें अपना सुधार करने और दूसरों की भलाई करने का जो बहुमूल्य अवसर मिला है, हम उसे गवांएगे नहीं।
यदि हमें काम पर जाना हो तो हम यह निश्चय करते हैं कि हम अपने ध्यान को केंद्रित रखने और अपने आप को उपयोगी बनाए रखने का प्रयत्न करेंगे। हम अपने सहकर्मियों के साथ क्रोध, अधीरता या चिड़चिड़ेपन का व्यवहार नहीं करेंगे। हम सभी के साथ मित्रवत व्यवहार करेंगे, लेकिन निरर्थक बकबक और गपशप से लोगों का समय बरबाद नहीं करेंगे। हम संकल्प लेते हैं कि हम अपने परिजनों की देखभाल करते समय धैर्य नहीं खोएंगे, बल्कि अपनी पूरी क्षमता से उनकी पदार्थ सम्बंधी और भावनात्मक आवश्यकताओं को स्नेहपूर्वक पूरा करेंगे।
प्रातःकालीन ध्यान साधना
सामान्यतया हम सुबह नाश्ता करने से पहले कुछ समय के लिए ध्यान साधना कर सकते हैं। केवल पाँच या दस मिनट के लिए शांतिपूर्वक श्वास पर ध्यान केंद्रित करना और स्वयं को केंद्रित करना उपयोगी रहेगा।
[देखें: ध्यान साधना कैसे करें]
हम इस बात पर चिंतन करते हैं कि हमारा जीवन किस प्रकार हमारे आस-पास के लोगों के जीवन के साथ घुला-मिला है। वे जैसा अनुभव करते हैं और जैसा व्यवहार करते हैं उसका हमारे ऊपर और दूसरे सभी लोगों के ऊपर प्रभाव पड़ता है और इस प्रकार हम प्रेम का भाव विकसित करते हैं: “वे सभी सुखी हों,” और करुणा का भाव विकसित करते हैं: “वे सभी अपने दुखों और समस्याओं से मुक्त हों।” हम संकल्प करते हैं कि आज हम जैसे भी हमारे लिए संभव हो, दूसरों की सहायता करने का प्रयत्न करेंगे, और यदि ऐसा कर पाना संभव न हो, तो हम कम से कम यह प्रयत्न करेंगे कि हम किसी को किसी प्रकार का नुकसान न पहुँचाएं।
दिन भर की सचेतनता
हम दिन भर इस बात के प्रति सचेत रहने का प्रयत्न करते हैं कि हम किस प्रकार से व्यवहार कर रहे हैं, कैसे वचन बोल रहे हैं, किस तरह से विचार और अनुभव कर रहे हैं। यदि क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, अहंकार आदि जैसे अशांतकारी भाव हमारे व्यवहार में शामिल होते दिखाई दें तो हम उन पर विशेष रूप से ध्यान रखते हैं। हम इस बात पर ध्यान देते हैं कि कहीं हम स्वार्थी या असंवेदनशील तो नहीं हो रहे हैं, या आत्म-दया और पूर्वाग्रह से प्रभावित तो नहीं हो रहे हैं। एक अतिसूक्ष्म स्तर पर हमारा यह उद्देश्य होता है कि हम इस बात के प्रति सजग हों कि हम स्वयं अपने बारे में, या दूसरों के बारे में और सामान्यतया सभी परिस्थितियों के बारे में विवेकहीन कल्पनाएं न करें। हम उन पलों के प्रति सावधान रहते हैं जहाँ हम कल्पना करने लगते हैं कि इतनी लम्बी कतार में हमारी बारी नहीं आ सकेगी, कि हमारे जैसे व्यक्ति से कौन प्रेम करेगा, या जब हम सभी अपने आप को “बेचारा” समझने लगते हैं।
जब हम अपने आप को इनमें से किसी भी बाध्यकारी मनोभाव से प्रभावित होकर व्यवहार, बोलचाल या विचार करता हुआ पाते हैं तो हम सचेतनता के एक और स्तर को प्रयोग में लाते हैं। पहले तो हम अपने आप को ऐसा कुछ भी करने या कहने से रोकने का प्रयास करते हैं जिसके लिए हमें बाद में पछताना पड़े। यदि हम पहले ही वैसा व्यवहार कर चुके हों, तो हम उससे भी बुरा कुछ करने या कहने से पहले अपने आप को तत्काल रोक लेते हैं। यदि हम अपने आप को नकारात्मक विचारों के चक्र में घिरा पाते हैं तब भी हम यही उपाय करते हैं। हम अपने आप को शांत करने और इन मानसिक और भावनात्मक उत्तेजनाओं को निष्प्रभावी बनाने वाले उपायों को ध्यान में रखते हैं, और उन्हें तब तक लागू करते रहते हैं जब तक कि हम अपने मानसिक संतुलन को पुनः प्राप्त न कर लें।
हममें से अधिकांश लोग इस उदाहरण से परिचित हैं जहाँ कार्यस्थल पर या परिवार में कोई न कोई ऐसा व्यक्ति होता है जो कुछ ऐसा व्यवहार करता है जिससे हमें सचमुच चिढ़ होती है। ऐसी स्थिति में:
- हमें याद रखना चाहिए कि उस व्यक्ति पर चीखने-चिल्लाने से कोई लाभ नहीं है, और, जैसा कि हमने सुबह किया था, हम अपने श्वास पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपने आप को शांत करने का प्रयत्न करते हैं।
- इस बात को याद करते हैं कि हर कोई सुख चाहता है और कोई भी दुख नहीं चाहता, किन्तु अधिकांश लोग भ्रमित होते हैं और इस प्रकार से व्यवहार करते हैं जिसके कारण दुख उत्पन्न होता है।
- दूसरों के लिए यह कामना विकसित करते हैं कि वे सुखी हों और उन्हें सुख के साधनों की प्राप्ति हो।
- यदि वह व्यक्ति हमारी सलाह को सुनने के लिए तैयार हो तो उसे उसके व्यवहार के नकारात्मक प्रभाव के बारे में बताएं और वैसा व्यवहार करना बन्द करने के लिए कहें।
- यदि वह व्यक्ति हमारी सलाह के प्रति पूरी तरह से उदासीन हो, तो हम शांत बने रहते हुए उस घटना को अपने धैर्य का एक सबक समझ लें। फिर भी, यदि हम किसी भी प्रकार की अशांति को दूर कर सकते हैं तो हमें तटस्थ नहीं बने रहना चाहिए।
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें अपनी उस प्रवृत्ति को नियंत्रित करना चाहिए जिसके कारण दूसरों से अपनी आलोचना सुनते ही हम बचाव की मुद्रा में आ जाते हैं। हम शांत रहकर ईमानदारी से यह आकलन कर सकते हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे बारे में कही गई बात सही हो – और यदि ऐसा हो, तो फिर हम अपनी गलती के लिए क्षमा मांग कर अपने व्यवहार में सुधार कर सकते हैं। यदि दूसरों के द्वारा हमारे बारे में कही गई बात अनर्गल और अनावश्यक हो तो हम उसे अनदेखा करके भुला देते हैं। यदि वह टिप्पणी किसी महत्वपूर्ण विषय के बारे में हो तो हम कहने वाले का ध्यान उसके विचार के दोष की ओर आकृष्ट करते हैं, लेकिन ऐसा करते समय इस बात का ध्यान रखते हैं कि हमारे व्यवहार में अहंकार या आक्रामकता का भाव न हो।
[देखें: क्रोध को नियंत्रित करने के 8 बौद्ध नुस्खे]
सांध्यकालीन ध्यान साधना
रात को सोने से पहले हम दिन भर के कार्यकलापों के प्रभाव से शांत होने के लिए एक बार पुनः अपने श्वास पर ध्यान केंद्रित करके एक अल्प अवधि की ध्यान साधना कर सकते हैं। हम दिन भर की घटनाओं की समीक्षा करते हैं और इस बात पर ध्यान देते हैं कि इन घटनाओं के समय हमने किस प्रकार से आचरण किया। क्या हमने अपना आपा खोया या कोई अविवेकपूर्ण बात कही? यदि ऐसा हुआ हो तो हम मन ही मन इस बात पर खेद व्यक्त करते हैं कि हम अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख सके, और फिर किसी भी प्रकार के अपराध बोध से मुक्त होकर संकल्प करते हैं कि अगले दिन हम बेहतर व्यवहार करेंगे। हम इस बात पर भी ध्यान देते हैं कि वे कौन-कौन सी स्थितियाँ थीं जहाँ हमने बुद्धिमत्तापूर्वक और सदयतापूर्ण व्यवहार किया। हम उसके बारे में विचार करके आनंदित होते हैं और संकल्प करते हैं कि हम उस दिशा में और आगे बढ़ते रहेंगे। उसके बाद हम अगले दिन आत्मसुधार और दूसरों की सहायता करने की आशा के साथ सो जाते हैं। हम यह विचार करके अपने आप को सचमुच आनंदित अनुभव कर सकते हैं कि हम अपने बहुमूल्य जीवन को सार्थक बना रहे हैं।