समीक्षा, एवं अर्हत क्या है?

लाम-रिम के चरणों का क्रमानुसार पालन

हम लाम-रिम पर चर्चा कर रहे हैं जो मूलभूत सूत्र शिक्षाओं को संकलित करने की योजना है। यह प्रेरणा के तीन विषय-क्षेत्रों को प्रस्तुत करता है जो श्रेष्ठ पुनर्जन्म, संसार से विमुक्ति, तथा ज्ञानोदय प्राप्ति के मार्ग का काम करता है। ज्ञानोदय प्राप्ति वह क्षमता है जो लोगों को संसार से विमुक्ति दिलाने में सहायता करती है। ये तीन विषय-क्षेत्र क्रमिक हैं परन्तु ऐसा नहीं जैसे किसी सीढ़ी के पायदान हों, अपितु किसी भवन की तीन मंज़िलों की तरह हैं। प्रत्येक मंज़िल अपनी नीचे की मंज़िल पर टिकी हुई है।

लाम-रिम पुनर्जन्म की परिकल्पना पर आधारित है जिसका अभिप्राय है व्यक्तिगत अनादि एवं अनंत मानसिक समतान। पश्चिम में हममें से कई लोग लाम-रिम के सरलीकृत रूप को मानते हैं जहाँ हम केवल अपने वर्तमान जीवनकाल को सुधारना चाहते हैं। यद्यपि सरलीकृत धर्म अपनेआप में ज्ञानोदय प्राप्ति नहीं करवा सकता, वह एक महत्त्वपूर्ण आरम्भिक चरण है। कालांतर में हम तीनों विषय-क्षेत्रों को प्राप्त कर ज्ञानोदय प्राप्ति की ओर अग्रसर हो सकते हैं। इसका यह अर्थ नहीं है कि केवल सरलीकृत धर्म का पालन करना निरर्थक है, क्योंकि यह निश्चित रूप से उपयोगी है। परन्तु इसे यदि हम उन्नत स्तरों के सोपान के रूप में मानते हैं तो यह वास्तविक बौद्ध-धर्मी पद्धति के रूप में कहीं अधिक शक्तिशाली होगा।

हमने यह भी देखा कि हमें लाम-रिम को बार-बार पढ़ना होगा। जैसे-जैसे हम धर्म की शिक्षाओं के बारे में क्रमशः और अधिक सीखते हैं, हमें पिछली शिक्षाओं को दोबारा समझने की आवश्यकता होगी ताकि हम लाम-रिम के सभी तथ्यों को एक-दूसरे से जोड़ सकें, क्योंकि वे सब मिलकर एक संजाल बनते हैं और एक-दूसरे की पुनःपुष्टि करते हैं। इस प्रकार हम अपने बोध एवं विकास में अधिक गहनता प्राप्त कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, यदि हम प्रत्येक क्रमिक चरण पर उन्नत विषय-क्षेत्र से प्रेम और करुणा के प्रेरक मनोभावों को उस विषय-क्षेत्र की शिक्षाओं में निर्दिष्ट प्रेरक मनोभाव के संपूरक के रूप में समाविष्ट करते हैं तो हमारी सम्पूर्ण साधना महायान की परिधि में ठीक बैठेगी।

परन्तु मैं इसे "महाकरुणा" नहीं कहूँगा। सामान्यतया करुणा दूसरों के प्रति वह कामना है कि वे अपने दु:ख और उसके कारणों से मुक्त हो जाएँ। यहाँ तक तो यह ठीक है। परन्तु महाकरुणा वह है जहाँ हम यह चाहते हैं कि हर कोई गहनतम दु:खों, अर्थात स्कन्धों की पुनरावृत्ति से जनित सर्वव्यापी प्रभावकारी दुःखों, से मुक्त हो जाए। यह इस मायने में महान है कि यह सभी सीमित सत्त्वों के प्रति उतना गहन करुणा-भाव रखता है जैसा कि एक ममतामयी माता अपनी एकमात्र संतान के प्रति। हो सकता है कि लाम-रिम के विकास के इस स्तर पर समाविष्ट करने के लिए यह कुछ भारी पड़े। 

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