परिचय
हज़ारों वर्ष पहले भारत में कुछ विशेष प्रकार की हिंदू और बौद्ध ध्यानसाधनाओं के लिए सहायक साधन के रूप में मंडलों के प्रयोग की शुरुआत हुई, और आज वे जनचेतना का हिस्सा बन चुके हैं। 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में स्विस मनोविश्लेषक कार्ल युंग ने अचेतन मन की जाँच करने के लिए उपचार के साधन के रूप में पाश्चात्य दर्शन में मंडलों के प्रयोग की शुरुआत की। विगत वर्षों में पॉप संस्कृति ने “मंडल” शब्द का प्रयोग नए युग की अवधारणाओं के लिए करने के अलावा होटलों, स्पा, नाइटक्लबों, पत्रिकाओं आदि के ब्रांड नाम के रूप में भी करना शुरू किया है। हाल के समय में तिब्बती भिक्षुओं ने तिब्बत की उन्नत संस्कृति को प्रदर्शित करने के लिए दुनिया भर के संग्रहालयों में चटकीले रंगों वाले रेत के मंडलों का निर्माण किया है। तो आखिर यह मंडल है क्या?
मंडल ब्रह्मांड का एक गोल प्रतीक होता है जिसका उपयोग एक गहरे अर्थ को दर्शाने के लिए किया जाता है।
कई प्रकार की बौद्ध ध्यानसाधनाओं और अभ्यासों में मंडलों का प्रयोग किया जाता है [बौद्ध ध्यानसाधना के बारे में यहाँ और अधिक पढ़ें]। इस लेख में हम प्रमुख प्रकार के मंडलों की चर्चा करेंगे।
तंत्र में प्रयोग किए जाने वाले मंडल
“तंत्र” की उन्नत साधनाओं में साधक अपनी मूर्त [तंत्र के बारे में यहाँ और अधिक पढ़ें], स्थायी “मैं” की सामान्य आत्म-छवि को विलीन कर देते हैं और उसके स्थान पर स्वंय को एक बुद्ध-रूप, जिसे तिब्बती भाषा में यिदम कहा जाता है, के रूप में देखने की कल्पना करते हैं। ये मंडल किसी पूर्ण ज्ञानोदय प्राप्त बुद्ध, जैसे करुणा के मूर्त रूप अवलोकितेश्वर के किसी एक या एक से अधिक पक्षों को दर्शाते हैं। तांत्रिक साधक अवलोकितेश्वर के रूप में स्वयं की कल्पना करते हैं, और यह महसूस करते हैं कि वे स्वयं उसी प्रकार करुणा की प्रतिमूर्ति हैं जैसे अवलोकितेश्वर करुणा का मूर्त रूप हैं। यह कल्पना करते हुए कि हम उस अवस्था में पहुँच चुके हैं जहाँ हम बौद्ध रूप की भांति दूसरों की सहायता कर सकते हैं – जबकि हमें पूरी तरह यह बोध होता है कि हम अभी पूरी तरह वहाँ तक नहीं पहुँचे हैं – तो हम अधिक कुशलतापूर्वक और अधिक प्रभावी ढंग से स्वयं अपने ज्ञानोदय के साधनों को तैयार कर सकते हैं।
बुद्ध-रूप पूर्ण निर्मल जगतों में वास करते हैं जिन्हें मंडल भी कहा जाता है, यहाँ “मंडल” शब्द से आशय केवल जगत के वातावरण से ही नहीं होता है बल्कि उसमें वास करने वाले सभी जीवों से भी होता है। प्रत्येक जगत थोड़ा अलग होता है, लेकिन सामान्य तौर पर उन्हें एक सुंदर भूदृश्य के बीच एक सजावटी वर्गाकार से दर्शाया जाता है जो ध्यान साधना के अभ्यास में आने वाले विघ्नों से बचाव करने वाले सुरक्षा घेरे से घिरा हुआ होता है। मुख्य आकृति किसी पुरुष या महिला की एकल आकृति या फिर युगल रूप में हो सकती है जिसे मुख्य स्थान के बीच में बैठे या खड़े हुए दर्शाया जाता है। ये आकृतियाँ अक्सर दूसरी आकृतियों से घिरी हुई होती हैं, और कभी कभी वास-स्थान के बाहर कुछ अतिरिक्त आकृतियाँ भी बनाई जाती हैं। इनमें से बहुत सी आकृतियों के एक से अधिक मुख, भुजाएं और पैर होते हैं, और उनके हाथों में अलग-अलग प्रकार के उपकरण होते हैं।
इस प्रकार की तंत्र साधना करने के लिए अभिषेक लेने की आवश्यकता होती है [अभिषेकों के बारे में यहाँ और अधिक पढ़ें], जोकि एक भव्य और व्यापक अनुष्ठान होता है जिसे किसी पूर्ण योग्यताप्राप्त तंत्र के आचार्य द्वारा सम्पादित किया जाता है। अभिषेक अनुष्ठान के समय बुद्ध-रूप के मंडल के द्विआयामी चित्र को आचार्य के नज़दीक व्यवस्थित करके रखा जाता है, इस मंडल के चित्र को सामान्यतया किसी कपड़े पर बनाया जाता है या फिर रेत से बनाया जाता है , और फिर उसे वास-स्थान के सरल रूप वाले लकड़ी के फ्रेम में जड़ कर रखा जाता है। किन्तु, यदि हमें मंडलों का मानसदर्शन करना हो, तो हम हमेशा इन्हें त्रिआयामी चित्रों के रूप में ही देखते हैं।
अनुष्ठान की क्रिया के दौरान आचार्य नवदीक्षितों को संवर प्रदान करते हैं और उन्हें वास-स्थान में प्रवेश करने की अनुमति प्रदान करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे कल्पना करते हैं कि वे वास-स्थान में प्रवेश कर रहे हैं। विभिन्न प्रकार के मानसदर्शनों के माध्यम से उनकी साधनाओं के माध्यम से ज्ञानोदय हासिल करने की तथाकथित “बुद्ध धातु” क्षमताएं सक्रिय हो जाती हैं। यदि मंडल रेत से बनाया गया हो तो समापन अनुष्ठान में रेत को नश्वरता को दर्शाने वाले एक ढेर के रूप में झाड़ कर इकट्ठा कर दिया जाता है, और बाद में उसे किसी जलाशय में विसर्जित कर दिया जाता है।
इसके बाद नवदीक्षितों को अपनी दैनिक साधना में स्वयं बुद्ध-रूपों में देखने और मंडल का मानसदर्शन करने की अनुमति प्राप्त हो जाती है। प्रत्येक बुद्ध रूप और उसके हाथ में थामा हुआ उपकरण ध्यानसाधना के किसी न किसी पक्ष को दर्शाता है। उदाहरण के लिए किसी आकृति की छह भुजाएं छह पारमिताओं को दर्शा सकती हैं।
साधक यह कल्पना तो करते ही हैं कि वे वास-स्थान के भीतर और बाहर की सभी आकृतियाँ हैं, लेकिन साथ ही वे यह कल्पना भी करते हैं कि वे स्वयं वास-स्थान ही हैं, और मंडल के वास-स्थान की सभी वास्तुशिल्पीय विशेषताओं और ध्यानसाधना के अभ्यास के सभी विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित करते हैं। कुछ मंडलों में चार दीवारें चार आर्य सत्यों को दर्शा सकती हैं, जबकि वास-स्थान को समबाहु वर्ग के रूप में बनाया जाना यह दर्शाता है कि शून्यता की दृष्टि से बुद्धजन और जिन्हें अभी ज्ञानोदय प्राप्त नहीं हुआ है, वे सभी एक बराबर हैं।
कुछ बहुत ही उन्नत तांत्रिक ध्यानसाधनाओं में शरीर के अंगों का मानसदर्शन वास-स्थान के हिस्सों, या साधक के अपने शरीर में स्थित वास-स्थान की विभिन्न आकृतियों के रूप में किया जाता है। इसे “कायिक मंडल” कहा जाता है, और यह कठिन होता है क्योंकि इसके लिए बहुत अच्छी एकाग्रता और बौद्ध दर्शन की विस्तृत जानकारी होनी चाहिए।
सामान्य साधना में मंडलों का प्रयोग
किसी बौद्ध शिक्षक से किसी प्रकार की शिक्षा – तांत्रिक या सामान्य – ग्रहण करने से पहले छात्र एक अनुनय मंडल प्रस्तुत करते हैं और अन्त में धन्यवाद ज्ञापन के लिए पुनः एक और मंडल प्रस्तुत करते हैं। यहाँ यह मंडल एक परिपूर्ण, निःशेष ब्रह्मांड को दर्शाता है जो मूल्यवान पदार्थों से युक्त है। क्योंकि छात्र शिक्षा को दुनिया की दूसरी किसी भी चीज़ से अधिक महत्व देते हैं, इसलिए मंडल अर्पित करना दर्शाता है कि वे शिक्षा को हासिल करने के लिए कुछ भी देने के लिए तत्पर हैं।
मंडल का चढ़ावा किसी सपाट तल वाले गोल कटोरे के रूप में हो सकता है, जिसमें ऊपर की ओर क्रमशः छोटे आकार वाले संकेंद्रित कटोरों में अनाज या रत्न भरकर उन्हें एक-दूसरे के ऊपर रखा जाता है। और फिर उसके ऊपर आभूषणों से सजा एक मुकुट रखा जाता है। वैकल्पिक तौर पर इसे हाथ की “मुद्रा” से भी बनाया जा सकता है जहाँ उँगलियाँ एक विशेष प्रकार के पैटर्न में आपस में गुँथी हुई होती हैं। दोनों ही स्थितियों में मंडल ब्रह्मांड के उस आदर्श स्वरूप को प्रदर्शित करता है जिसका उल्लेख पारम्परिक बौद्ध साहित्य में मिलता है। मंडल निवेदित करते समय छात्र ऐसे छंदों का उच्चार करते हैं जिनका आशय होता है कि दुनिया भर में समस्त स्थितियाँ शिक्षाएं ग्रहण करने के अनुरूप हों, और सभी सत्व ऐसे ही आदर्श विश्व में जी सकें और इन अद्भुत शिक्षाओं को ग्रहण कर सकें।
बहुत से बौद्ध साधक उन्नत प्रकार की साधनाएं शुरू करने से पहले “प्रारम्भिक साधनाएं” करते हैं जिनमें कुछ विशेष प्रकार के अभ्यासों को 100,000 बार दोहराया जाता है। ये प्रारम्भिक साधनाएं भावनात्मक अवरोधों को दूर करने और ध्यान साधना में सफलता सुनिश्चित करने के लिए सहायक सकारात्मक बल उत्पन्न करने में सहायक होती हैं। 100,000 बार मंडल निवेदित करना एक प्रारम्भिक अभ्यास है, और यह साधकों को ध्यान साधनाओं में अपने पूरा समय और प्रयास लगाने की दृष्टि से अपने संकोच को त्यागने में सहायक होती हैं। साथ ही इससे सफलता पाने के लिए सब कुछ त्यागने की दृष्टि से इच्छाशक्ति भी दृढ़ होती है।
सारांश
जैसाकि हम देख चुके हैं कि विभिन्न प्रकार की बौद्ध साधनाओं में मंडलों का उपयोग केवल ब्रह्मांड को दर्शाने के लिए ही नहीं, बल्कि बौद्ध मार्ग के अनेक पक्षों को भी प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। तिब्बती भिक्षु दुनिया भर में अलग-अलग स्थानों पर तिब्बत की स्थिति के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए रेत के सुंदर मंडलों का निर्माण कर रहे हैं, वहीं यह बात भी महत्वपूर्ण है कि इन्हें केवल विदेशी कलाकृतियों के रूप में ही नहीं देखा जाना चाहिए। मंडल ध्यानसाधना के उन्नत साधन हैं जो सामान्य और उन्नत तंत्र साधना, दोनों ही प्रकार की साधनाओं में एक केंद्रीय भूमिका निभाते हैं और ज्ञानोदय की प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ़ने में हमारी सहायता करते हैं।