बौद्ध विज्ञान, मनोविज्ञान, तथा धर्म

आज शाम आप लोगों के बीच उपस्थित होकर मुझे बहुत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। मुझे आज शाम “बौद्ध धर्म क्यों?” विषय पर व्याख्यान देने के लिए कहा गया है जो कि एक मान्य प्रश्न है, विशेषतया पाश्चात्य जगत में, जहाँ पहले ही हमारे अपने धर्म मौजूद हैं, तो फिर बौद्ध धर्म की क्या आवश्यकता है?

मेरा विचार है कि यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि जब हम बौद्ध धर्म की बात करते हैं, तो उससे अनेक पहलू जुड़े हुए हैं। बौद्ध विज्ञान, बौद्ध मनोविज्ञान, और बौद्ध धर्म जैसे पहलू इनमें शामिल हैं:

  • जब हम बौद्ध विज्ञान की बात करते हैं, तो हमारा आशय तर्क जैसे विषयों से होता है, हम किस प्रकार विषयों को समझ पाते हैं, और मूलतः वास्तविकता को कैसे समझ पाते हैं ─ ब्रह्मांड की उत्पत्ति किस प्रकार हुई, आदि जैसे विषय ─ चेतन और जड़ पदार्थ के बीच का सम्बंध। इन सभी विषयों का सम्बंध विज्ञान से है, और बौद्ध धर्म इन सभी विषय क्षेत्रों पर बहुत प्रकाश डालता है।
  • बौद्ध मनोविज्ञान विभिन्न अशांतकारी अवस्थाओं, विशेषेतया हमारे लिए ढेरों दुख उत्पन्न करने वाले अशांतकारी मनोभावों (क्रोध, ईर्ष्या, लोभ, आदि) के विषय की विवेचना करता है। और बौद्ध धर्म में इन अशांतकारी मनोभावों से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान करने के लिए विधियों की एक समृद्ध परम्परा है।
  • वहीं दूसरी ओर, बौद्ध धर्म विभिन्न आनुष्ठानिक पहलुओं, प्रार्थनाओं से सम्बंध रखता है; इसमें पुनर्जन्म जैसे विषयों पर चर्चा की जाती है। और यह भी एक बहुत समृद्ध पक्ष है।

इसलिए जब हम यह प्रश्न पूछते हैं कि “बौद्ध धर्म क्यों? समकालीन विश्व में पश्चिम में हमें बौद्ध धर्म की क्या आवश्यकता है?” तो मुझे लगता है कि हमें विशिष्टतया बौद्ध विज्ञान और बौद्ध मनोविज्ञान के बारे में विचार करने की आवश्यकता है। यदि इसके अलावा लोगों की दिलचस्पी बौद्ध धर्म के और अधिक धार्मिक पहलुओं में हो, तो अच्छी बात है, इसमें कोई समस्या नहीं है। लेकिन यदि आपका लालन-पालन किसी एक धर्म के अनुसार हुआ हो तो सामान्य तौर पर किसी और धर्म को अपनाना कोई बहुत आसान काम नहीं होता है, और अधिकांश लोगों के मामले में इससे उनके भीतर अन्तर्द्वंद्व उत्पन्न हो जाता है, निष्ठा का द्वंद्व, और विशेष तौर पर इससे मृत्यु की घड़ी में समस्याएं खड़ी हो सकती हैं ─ व्यक्ति बहुत दुविधा में फँस जाता है कि वह दरअसल किस धर्म में अपनी आस्था रखे।

इसलिए हमें पाश्चात्य परम्पराओं में पले-बढ़े और बौद्ध धर्म के धार्मिक पहलुओं की ओर आकृष्ट होने वाले पाश्चात्य लोगों के मामले में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि इससे अंधविश्वास और बौद्ध अनुष्ठानों से चमत्कारों की अपेक्षा रखने जैसी अतिरिक्त समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए यही बेहतर है और यही सिफारिश की जाती है कि कम से कम शुरुआत में तो बौद्ध विज्ञान और बौद्ध मनोविज्ञान पर ही ध्यान केन्द्रित किया जाए। ये कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें बिना किसी विरोध के आसानी के साथ हमारी पाश्चात्य परम्पराओं में समाहित किया जा सकता है। इसलिए अब हम बौद्ध विज्ञान और मनोविज्ञान के कुछ पहलुओं के बारे में चर्चा करेंगे।

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