स्टडी बुद्धिज़्म: अपने बारे में कुछ बताएं।
तेंज़िन पाल्मो: मेरा जन्म इंग्लैंड में और लालन-पालन लंदन में हुआ। जब मैं 18 वर्ष की थी तब मैंने एक किताब पढ़ी थी और तब मुझे धर्म के बारे में पता चला। जब मैंने वह किताब आधी ही पढ़ी थी तब मैंने अपनी माँ से कहा कि “मैं एक बौद्ध हूँ,” जिसके जवाब में मेरी माँ ने कहा, “क्या सचमुच? पहले किताब को पूरा पढ़ लो, फिर इसके बारे में मुझे बताना।“ मैंने जाना कि मैं तो हमेशा से ही बौद्ध थी, लेकिन मुझे इसका पता नहीं था क्योंकि उन दिनों “बुद्ध” शब्द का प्रयोग तक नहीं किया जाता था। यह 1960 के दशक की बात है, और तब लंदन में भी इस सम्बंध में ज़्यादा सामग्री उपलब्ध नहीं थी। कालांतर में मैंने महसूस किया कि मेरा झुकाव तिब्बती परम्परा की ओर अधिक था, और जब मैं 20 वर्ष की हुई तो मैं भारत चली गई। मेरे 21वें जन्मदिन पर मेरी भेंट मेरे लामा खामत्रुल रिंपोशे से हुई, और उसके तीन सप्ताह बाद मैंने भिक्षुणी के रूप में अपनी पहली दीक्षा ली और उनके साथ काम पर चली गई।
उसके बाद उन्होंने मुझे लाहौल जाने के लिए कहा, जहाँ मैं अगले 18 वर्षों तक रही। उसके बाद मैंने अगले कुछ साल भारत में गुज़ारे। जब मुझे भिक्षुणियों के लिए एक मठ शुरू करने के लिए कहा गया तो मैं भारत लौटी हूँ, और तब से मैंने अपना समय वहाँ बिताया है और दुनिया भर में दौरे करके धर्म के बारे में व्याख्यान देते हुए बिताया है।
स्टडी बुद्धिज़्म: बौद्ध धर्म की वह कौन सी ऐसी बात है जिसने आपको विशेष तौर पर आकर्षित किया?
तेंज़िन पाल्मो: जब मैं एक छोटी बच्ची थी, तभी से मैं मानती थी कि हम स्वभावतः परिपूर्ण होते हैं, और हमें लौट-लौट कर इस बात पर तब तक आते रहना चाहिए जब तक कि हम अपनी इस स्वभावजन्य परिपूर्णता को पहचान न लें। सवाल दरअसल यह था कि वह परिपूर्णता दरअसल है क्या, और उसे कैसे हासिल किया जाए। मैंने पाया कि ज़्यादातर आध्यात्मिक परम्पराएं ईश्वरवादी थीं और यह विचार मुझे जमा नहीं कि कोई बाहरी ईश्वर सब कुछ नियंत्रित करता है। तब मुझे बौद्ध धर्म के बारे में पता चला और मुझे सर्वोत्तम मार्ग मिल गया। मैंने बुद्ध का बहुत आभार माना कि उन्होंने हमें यह मार्ग दिया, और सिर्फ अंतिम परिणाम की व्याख्या करने के बजाए हमें स्पष्ट तौर पर यह बताया कि वहाँ तक कैसे पहुँचा जाए।
स्टडी बुद्धिज़्म: क्या आपको कभी यह बात अजीब लगी कि लंदन की रहने वाली कोई लड़की कभी दूर-दराज़ के हिमालय के पहाड़ों में आकर रहेगी?
तेंज़िन पाल्मो: मैंने दरअसल कभी लंदन छोड़ कर लाहौल जाने के बारे में अचरज नहीं किया। यह सब कुछ बहुत सहज ढंग से आगे बढ़ता चला गया। लंदन में मुझे लगता था कि मैं गलत जगह पर हूँ और वहाँ से निकलना चाहती थी। मैंने ऑस्ट्रेलिया या न्यूज़ीलैंड जाने के बारे में सोचा था। मेरे मन में इंग्लैंड के खिलाफ कुछ नहीं था, लेकिन मुझे मालूम था कि मैं वहाँ रहने के लिए नहीं बनी हूँ। लेकिन एक बार जब मैं धर्म की शरण में आ गई, तो मैंने समझ लिया कि मुझे वहाँ जाना चाहिए जहाँ गुरुजन हों। उस समय वह जगह भारत थी।
स्टडी बुद्धिज़्म: आज की दुनिया में क्या पूरी जानकारी के लिए क्या इंटरनेट पर निर्भर रहना सही है, या हमें वास्तविक शिक्षकों से जुड़ना चाहिए?
तेंज़िन पाल्मो: इंटरनेट बहुत ही उपयोगी साबित हो सकता है, जैसे पुस्तकें बहुत उपयोगी हो सकती हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि वह सही मायने में बौद्ध धर्म का अभ्यास करने का एकमात्र उपाय है। जैसा कि किसी भी कौशल को सीखने की प्रक्रिया में होता है, एक स्थिति ऐसी आती है जब हमें किसी ऐसे व्यक्ति से व्यक्तिगत तौर पर मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है जो उस कौशल को हमसे बेहतर जानता हो। यदि हम संगीतज्ञ, नर्तक या खिलाड़ी बनना चाहते हैं तो हम एक सीमा तक जानकारी को डाउनलोड कर सकते हैं और उस विषय से सम्बंधित डी.वी.डी. देख सकते हैं और पुस्तकें पढ़ सकते हैं, लेकिन अंत में हमें किसी ऐसे व्यक्ति के मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ती है जो हमारा मूल्यांकन कर सके और व्यक्तिगत स्तर पर हमें हिदायत दे सके। दोनों बातें साथ-साथ चलती हैं। हमें हमेशा गुरु के चरणों में बैठकर सीखने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन हमें समय-समय पर किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती है जो हमारा पर्यवेक्षण कर सके और हमारा मार्गदर्शन कर सके।
स्टडी बुद्धिज़्म: हम गुरु को कैसे तलाश कर सकते हैं?
तेंज़िन पाल्मो: भारत में कई लोग बहुत सी चीज़ों के बारे में चर्चा करने के लिए मेरे पास आते हैं। मैं कभी-कभी कहती हूँ उनमें से आधे लोग यह कहते हैं, “मेरी एक समस्या है, मुझे अपने लिए एक शिक्षक की तलाश है।“ बाकी के आधे लोग कहते हैं, “मुझे यह समस्या है कि मेरा एक शिक्षक है!” तो यह विषय उतना आसान नहीं है।
बहुत सारे योग्य शिक्षक उपलब्ध हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि एक ही व्यक्ति के लिए उनमें से प्रत्येक शिक्षक योग्य है, ठीक वैसे ही जैसे सभी लोग एक ही व्यक्ति से प्रेम नहीं कर सकते। हमारा सब का अलग-अलग कर्म है, इसलिए अलग-अलग शिष्यों के लिए अलग-अलग शिक्षक उपयुक्त होंगे।
कुछ ऐसे शिक्षक भी हैं जिन्हें शिक्षक होना ही नहीं चाहिए। लेकिन यहाँ खास बात यह है कि हमें बहुत नासमझ नहीं होना चाहिए, न ही व्यक्तिगत आकर्षण में फंसना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति बहुत आकर्षक है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह व्यक्ति वास्तव में योग्य है। ग्रंथों में ऐसा कहा गया है और दलाई लामा भी हमें इस बात का स्मरण कराते हैं कि हमें व्यक्ति की परख उस समय नहीं करनी चाहिए जब वह किसी बड़े सिंहासन पर बैठा हो बल्कि तब करनी चाहिए जब वह पर्दे के पीछे हो। वह साधारण लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है – बड़े-बड़े यजमानों के साथ नहीं – बल्कि उन साधारण लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है जो उसके लिए विशेष महत्व नहीं रखते। मैंने स्वयं अपने लामा से एक ऐसे लामा के बारे में पूछा था जो काफी विवादास्पद थे जिन्हें मेरे लामा भली प्रकार से जानते थे, और उन्होंने कहा कि इस प्रश्न का उत्तर देना कठिन है, और हमें बीस साल पीछे जाकर देखना होगा कि आगे चलकर उनके शिष्यों ने कितनी प्रगति की।
जहाँ तक मेरी बात है, मैंने जैसे ही अपने लामा का नाम सुना, मैंने मान लिया कि यही मेरे लामा हैं। तो, इस मामले में मैंने खुद अपनी सलाह का उल्लंघन किया था! लेकिन वे एक बुद्ध थे और इसलिए मैं इस दृष्टि से भाग्यशाली रही। दूसरों के लिए मैं यही सलाह दूँगी कि आप शिक्षक के छात्रों का मूल्यांकन करें। क्या आप उनके जैसा बनना चाहेंगे? यदि आपको दिखाई दे कि उनका संघ भला और सामंजस्यपूर्ण है, और यदि वे अच्छे ढंग से अभ्यास कर रहे हैं और भले और नेकदिल लोग हैं, तो आप भरोसा कर सकते हैं।
स्टडी बुद्धिज़्म: असंख्य दर्शनों और विचारों के इस युग में बौद्ध धर्म का ही अध्ययन क्यों किया जाए?
तेंज़िन पाल्मो: बौद्ध धर्म के बारे में खास बात यह है कि वह आपको सिर्फ अच्छा बनने के लिए ही नहीं कहता है, बल्कि आपको बताता है कि अच्छा कैसे बना जाए। वह केवल इनता ही नहीं कहता है कि “क्रोध मत करो,” बल्कि वह हमें तरीके बताता है कि हम कैसे क्रोध को नियंत्रित करें। वह हमें उन सभी गुणों को विकसित करने की तकनीकें बताता है जिन्हें वह हमें विकसित करने के लिए कहता है, और उन सभी नकारात्मक प्रवृत्तियों को नियंत्रित करने के तरीके बताता है जिन पर विजय पा कर वह हमें अपने आप को बदलने की नसीहत देता है।
यह बात बहुत ही उपयोगी है क्योंकि यदि हम समर्पित बौद्ध न भी हों, तब भी हमें इससे बेहतर इन्सान बनने में मदद तो मिलती ही है। मैं ऐसे कई कैथोलिक पादरियों और मठवासिनियों को जानती हूँ जो बेहतर कैथोलिक बनने के लिए बौद्ध शिक्षाओं का उपयोग करते हैं, और ऐसे यहूदियों को जानती हूँ जो बेहतर यहूदी बनने के लिए इन शिक्षाओं का उपयोग करते हैं। क्यों न करें? इससे हमें अपने मूल स्वभाव को अधिक गहराई से समझने में मदद मिलती है, और यह तो हम सभी चाहते हैं।
स्टडी बुद्धिज़्म: पिछले कुछ वर्षों में सचेतनता की अवधारणा बहुत लोकप्रिय हुई है। इसके बारे में आप क्या सोचती हैं?
तेंज़िन पाल्मो: आजकल सचेतनता एक फैशनेबल मूलमंत्र बन गया है, लेकिन अपने दैनिक जीवन में और अधिक सचेत और जागरूक बने रहने का प्रयास करने का सामान्य सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही यह चित्त के अभ्यास के कुछ ऐसे छंदों का मनन करने के लिए भी उपयोगी है जो हमारी सभी समस्याओं को रूपांतरित करने के लिए तैयार किए गए हैं। सभी प्रकार की बाहरी परिस्थितियों और हमें मिलने वाले अशिष्ट और ज़िद्दी लोगों के व्यवहार के बावजूद हम क्रोधित, परेशान या हताश नहीं होते, बल्कि हम यह समझ लेते हैं कि हम उनका साथ लेकर चल सकते हैं और मार्ग की साधना में उनका उपयोग इस प्रकार कर सकते हैं कि उससे हमें उल्टे शक्ति मिलती है और हम पराजित होने के बजाए मज़बूत होते हैं। इसमें बहुत व्यावहारिक सलाह दी जाती है, इसलिए मैं इस बारे में बहुत चर्चा करती हूँ कि हम अपने दैनिक जीवन में धर्म के अभ्यास को किस प्रकार शामिल कर सकते हैं, नहीं तो व्यक्ति अपने आप को निराश और असहाय महसूस करता है।
चाहे हम एकांतवास में हों या दुनिया के बीच में हों, हमें जितना अधिक हो सके सचेतनता को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। ध्यान का भटकाव ही हम सभी के लिए सबसे बड़ी समस्या है – जिसे बुद्ध ने मर्कट मनस्कता कहा है। हमें इस मर्कट मनस्कता को वश में करने की आवश्यकता है। हम जहाँ भी हों, जो कुछ भी कर रहे हों, हम उसके प्रति या तो सचेतन होते हैं, या नहीं होते हैं। या तो हम जाग्रत और उपस्थित होते हैं, या नहीं होते हैं। इसमें कोई बीच की स्थिति नहीं होती है। मुझे इसके बारे में सबसे अच्छी सलाह हमारे मठ के योगियों से मिली थी जिन्होंने हर घंटे में तीन बार चित्त पर ध्यान देने की सलाह दी थी। हम यह प्रतिज्ञा करते हैं कि हम एक क्षण के लिए रुकेंगे और देखेंगे कि हमारा चित्त क्या कर रहा है, हम किस मनोदशा में हैं। हम उसके उचित-अनुचित होने का निर्णय नहीं करते, बस उसके प्रति सजग होते हैं। धीरे-धीरे हम हम अपने विचारों के प्रति और अपनी सकारात्मक और नकारात्मक मनोदशाओं के प्रति अधिक सचेतन रहने के अधिक अभ्यस्त हो जाते हैं। इस तरह हम अपने चित्त के गुलाम बनने के बजाए उसके स्वामी बनते चले जाते हैं।
स्टडी बुद्धिज़्म: अक्सर धर्म के अभ्यास के लिए उत्साह और उल्लास को बनाए रखना कठिन हो सकता है। उसे बनाए रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
तेंज़िन पाल्मो: सबसे पहले तो यह बहुत आवश्यक है कि हम अपने आपको थोड़ा हल्का करें! मैं अक्सर कहती हूँ कि हास्य बोध को सातवीं पारमिता समझा जाना चाहिए, ताकि हम अपने आप पर भी हँस सकें। हमें अपनी साधना पूरी ईमानदारी के साथ करनी चाहिए, लेकिन साथ ही हमें अपने आप पर हँसना भी आना चाहिए।
यहाँ, मैं मानती हूँ कि यह समझना महत्वपूर्ण है कि हम कितने भाग्यशाली हैं कि हमें मनुष्य के रूप में जन्म मिला है और हम जिसकी चाहें, साधना कर सकते हैं, किताबों को न केवल पढ़ सकते हैं बल्कि उन्हें समझ भी सकते हैं। इतिहास में इस तरह की शिक्षा शायद ही देखने के लिए मिलती है, इसलिए हमें इसके महत्व को समझना चाहिए। जो कुछ हमारे पास है, हमें उसके महत्व को गहराई से समझना चाहिए और उसे व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। नहीं तो अन्तिम समय में हमें पछतावे कि सिवा और कुछ हासिल नहीं होगा।
उसके अलावा, हमारी स्थिति भी प्रौद्योगिकी के जैसी ही है, हमें अपनी बैटरी को रीचार्ज करते रहना चाहिए। एकांतवास करते रहना, प्रेरणादायी शिक्षकों से निजी स्तर पर उपदेश प्राप्त करना – यह सब हमें तरोताज़ा करता रहता है। ऐसा करने से हमें प्रेरणा मिलती है और जीवन में हमने जो कुछ हासिल किया है उसे हम संभाल पाते हैं, जोकि बहुत आवश्यक है।
और अंत में, बुद्ध हमेशा अच्छे मित्रों के महत्व पर बल देते थे। हम एक ऐसे समाज में जीते हैं जो एक निश्चित दिशा में बढ़ रहा है, इसलिए कम से कम कुछ ऐसे मित्रों का होना आवश्यक है जो हमारे सिद्धांतों को मानते हों और हमें प्रोत्साहित कर सकें और हमें यह याद दिलाते रहें कि हम अकेले या अनूठे नहीं है, बल्कि जो हम कर रहे हैं वह जीवन जीने का एक उचित तरीका है। इससे हमें धर्म को जीवन के केंद्र में रखने के लिए प्रेरणा मिलेगी, वह हमारे लिए गौण नहीं बनेगा, और हम अपने दैनिक जीवन का उपयोग धर्म की साधना के लिए कर सकेंगे।
स्टडी बुद्धिज़्म: कई बार लोग कहते हैं कि बौद्ध धर्म बड़ा ही निष्क्रिय धर्म सिद्धांत है, इस विषय पर आपकी क्या राय है?
तेंज़िन पाल्मो: बौद्ध धर्म तो सबसे अधिक सक्रिय है! हम हर समय चित्त को साधने का अभ्यास करते हैं कि
किस प्रकार हम अपने सामान्य रूढ़िगत चित्त को नियंत्रित करें और उसे ऊँचा उठाएं। ऐसा करने के लिए असाधारण संकल्प और अध्यवसाय की आवश्यकता होती है। इसके लिए तनावग्रस्त और थकानग्रस्त रहने के बजाए एक चिंतामुक्त और व्यापक दृष्टिकोण की भी आवश्यकता होती है। निश्चित तौर पर यह ऐसा नहीं है कि आप आराम से बैठ कर यह सोचें कि सब कुछ अपने आप हो जाएगा। यदि आप इसके लिए परिश्रम नहीं करेंगे, तो यह सम्भव नहीं हो सकेगा!
स्टडी बुद्धिज़्म: क्या आप बौद्ध धर्म में महिलाओं की भूमिका के बारे में कुछ बता सकती हैं?
तेंज़िन पाल्मो: पारम्परिक तौर पर बौद्ध धर्म में महिलाओं की कोई विशेष भूमिका नहीं थी। सभी ग्रंथ भिक्षुओं द्वारा दूसरे भिक्षुओं के लिए लिखे गए थे। इस प्रकार सामान्य दृष्टिकोण नारी-द्वेषी था जहाँ महिलाओं को वर्जित अन्य के रूप में देखा जाता था जो भोले-भाले भिक्षुओं पर झपटने के लिए तैयार रहती थीं। उस समाज में महिलाओं के लिए शिक्षा हासिल करना और गहन शिक्षाएं हासिल करके सच्चे अर्थ में सुशिक्षित होना बहुत कठिन था।
आजकल स्थिति बहुत बदल चुकी है। लड़कियाँ लड़कों के साथ स्कूल जाती हैं, और उच्च शिक्षा हासिल कर रही हैं। इस साल गेशेमाओं या धर्मशास्त्र आचार्यों का पहला दस्ता तैयार होगा जिनकी योग्यता को परम पावन दलाई लामा द्वारा प्रमाणित किया जाएगा। भिक्षुणियाँ सचमुच तरक्की कर रही हैं और गहन आध्यात्मिक साधनाएं कर रही हैं और हर दृष्टि से अपनी पूरी क्षमताओं को विकसित कर रही हैं। इस बात का श्रेय देना होगा कि एक बार जब उन्हें जब यह बात समझ में आ गई कि भिक्षुणियाँ भी अध्ययन कर सकती हैं, उसके बाद इसमें मुख्य सहयोग भिक्षुओं का रहा है। वे शिक्षक बने और उन्होंने भिक्षुणियों को उत्साहपूर्वक प्रोत्साहन दिया। उनका विरोध भिक्षुणियों को पूर्ण दीक्षा दिए जाने के लिए रहा है और पिछले 30 सालों से उन्होंने इसके विरुद्ध प्रतिरोध की एक दीवार खड़ी कर रखी है।
स्टडी बुद्धिज़्म: भिक्षुणियों द्वारा की जा रही प्रगति के बारे में सुन कर बहुत अच्छा लगा। क्या यह सब सहज रूप से हो गया या इसे शुरू करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
तेंज़िन पाल्मो: यदि आप भिक्षुणियों के किसी मठ में जाकर उनसे पूछें कि उनकी प्रमुख समस्या क्या है, तो हर बार उनका जवाब होगा कि आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास की कमी होना ही उनकी सबसे प्रमुख समस्या है। इसे ठीक होने में समय लगेगा। लेकिन लद्दाख से पहली बार भिक्षुणियाँ बनने वाली लड़कियों और आज हमारे यहाँ की लड़कियों के बीच का फर्क उत्साह जगाने वाला है। नए ज़माने की भिक्षुणियों को यह मालूम ही नहीं है कि उनसे आज्ञाकारी और दब्बू बनने की ‘अपेक्षा’ की जाती है। और इसलिए कई दृष्टियों से वे ऐसा मानती हैं कि वे कुछ भी कर सकती हैं क्योंकि उन्होंने अपने से पहले की भिक्षुणियों को ऐसा करते हुए देखा है। इसलिए उनके सामने किसी संदेह या दुविधा की स्थिति नहीं है।
हमारे यहाँ भिक्षुणियों के पहले समूह में शामिल भिक्षुणियों से मैंने पूछा था कि क्या वे ऐसा मानती हैं कि क्या पुरुष पैदायशी तौर पर महिलाओं से अधिक बुद्धिमान होते हैं और उन सभी ने इसका उत्तर हाँ में दिया। मैंने कहा, “नहीं, इसका कारण यह है कि उन्हें अधिक अवसर मिले हैं। जब आपको समान अवसर दिए जाते हैं तो आप दोनों ही अच्छा प्रदर्शन करते हैं। कुछ पुरुष बुद्धिमान होते हैं तो कुछ कमअक्ल होते हैं। वैसे ही कुछ स्त्रियाँ बुद्धिमान होती हैं तो कुछ कमअक्ल होती हैं। हम सभी इन्सान हैं, कोई किसी से बढ़कर नहीं है।“ आज की स्थिति में यदि मैं उसी प्रश्न को पूछूँ तो लड़कियाँ इस प्रश्न से ही हैरान हो जाएंगी! तो यह स्थिति बदल रही है।
स्टडी बुद्धिज़्म: क्या भिक्षुणियों को पूर्ण दीक्षा दिए जाने के बारे में किसी प्रस्ताव को पारित किए जाने की सम्भावना है?
तेंज़िन पाल्मो: अभी हमारी निगाहें परम पावन कर्मापा पर टिकी हैं, उन्होंने कहा है कि ऐसा किया जाएगा। इसलिए हमें प्रतीक्षा करनी होगी और देखना होगा कि वे इस काम को किस प्रकार करना चाहते हैं, क्योंकि सभी की निगाहें उनके फैसले पर टिकी होंगी। यह ज़रूरी है कि वे इसे न्यायोचित ढंग से किया जाए ताकि सभी इस बात को स्वीकार करें कि दी गई दीक्षा मान्य है क्योंकि उस स्थिति में सभी के लिए अवसरों के दरवाज़े खुलेंगे।
स्टडी बुद्धिज़्म: और अंत में, जो लोग अकेले और खिन्नचित्त हों, उन्हें क्या करना चाहिए?
तेंज़िन पाल्मो: अवसाद, आत्महीनता और अकेलेपन आदि जैसी समस्याओं से तनावमुक्ति का एक प्रमुख उपाय सम्भवतः यह है कि हम इस बात को समझें कि हम सभी के भीतर बुद्ध धातु है। क्रोध, ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा आदि जैसी दूसरी समस्याएं सिर्फ स्वभाव या आदतें हैं जिन्हें हमने सीख लिया है, लेकिन ये हमारी अन्तर्जात प्रकृति का हिस्सा नहीं हैं।
हम अधम पापी नहीं हैं, हम निरर्थक प्राणी नहीं हैं। हम किसी रत्न की भांति बहुमूल्य और सुंदर हैं।
हमें हमेशा यही बताया जाता है कि हमारी क्षमताएं बहुत सीमित हैं, जोकि बहुत दुखद है। दरअसल हमारी क्षमताएं असीमित हैं। चित्त की प्रकृति आश्चर्यजनक ढंग से असाधारण है। हम अधम पापी नहीं हैं, हम निरर्थक प्राणी नहीं हैं। हम किसी रत्न की भांति बहुमूल्य और सुंदर हैं।
बौद्ध धर्म हमें अपने असीम तौर पर अहम को पकड़ने वाले चित्त को नियंत्रित करने और व्यापक तथा अर्थपूर्ण बातों के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाने में सहायक होता है। ध्यान साधना एक ऐसा माध्यम है जो हमें सचेतनता के गहरे स्तर तक ले जाता है। सामान्यतया हम अपने विचारों, भावनाओं और मनोभावों के प्रवाह में फँसे रहते हैं। सचेतन होकर हम इस सब को देख सकते हैं लेकिन उसके प्रवाह में नहीं बह जाते। इससे हमें अपने संकुचित चित्त से कहीं अधिक व्यापक और गहन स्तर पर पहुँचने में सहायता मिलती है। हम सभी इस स्तर को छू सकते हैं। यह इतना मुश्किल भी नहीं है। थोड़े मार्गदर्शन और अभ्यास से कोई भी ऐसा कर सकता है।