एक आध्यात्मिक गुरु का साथ

समस्यामूलक परिस्थितियों से जूझना

हम इस पूरे विषय पर चर्चा कर रहे थे कि मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए और उससे जो भय उत्पन्न होता है, इत्यादि | हमने देखा कि यह पूरा विवाद अपने बारे में भ्रांत धारणा से होता है | हमें परम्परागत, अपने और अपने आसपास हर किसी के सामान्य अस्तित्व, तथा यथार्थ अस्तित्व, जो वास्तव में है ही नहीं, के बीच विभेद करना चाहिए | याद रखें, जब हम शून्यता की बात करते हैं, हम असंभव रूप से अस्तित्वमान होने के अभाव की बात कर रहे हैं, जो विद्यमान है ही नहीं |

परन्तु,वस्तुतः वस्तुओं का अस्तित्व कैसे होता है? बौद्ध-धर्म में, हम कहते हैं कि प्रत्येक वस्तु की अनेक कारकों के आधार पर उत्पत्ति होती है - कारण, अंग, मानसिक झुकाव और उनके सिद्धांत, इत्यादि | हम केवल इस स्तर पर रहेंगे जहाँ घटनाओं की उत्पत्ति और उनका अस्तित्व उनके कारणों और परिस्थितियों पर निर्भर होता है | इस दृष्टिकोण से, हम कह सकते हैं कि घटनाएँ यथार्थ नहीं है - यथार्थ से अभिप्राय है किसी एक कारण से उनकी उत्पत्ति नहीं होती - अपितु, सबकुछ काफी जटिल है और इसलिए अत्यंत जटिल अंतःक्रिया से उद्भूत होता है |

उदाहरण के लिए, जब हम परिस्थितियों का सामना करते हैं, सबकुछ काला और सफ़ेद नहीं होता: "तुम्हें ऐसा करना चाहिए और ऐसा नहीं, " तथा, उसके कारण, केवल एक प्रकार का व्यवहार उचित है और दूसरा अनुचित | वास्तव में, जिस भी समस्याकारी परिस्थिति में हम हैं वह बहुत जटिल है और उसका हम जो भी समाधान निकालेंगे वह कई कारकों पर निर्भर करेगा | इसलिए हमारे समाधान में बहुत संवेदनशीलता और सजगता होनी चाहिए | जब हम विधानों का आँख मूँदकर अनुसरण करने और "होना चाहिए" व "नहीं होना चाहिए" के संलक्षण से उबरने लगेंगे, तो इसका अर्थ यह नहीं होगा कि हमारे निर्णय का कोई महत्त्व नहीं है, क्योंकि यह सब केवल हमारी कल्पना में है | इसका अर्थ यह है कि इन समस्याकारी परिस्थितियों का समाधान ढूंढ़ने की हमारी क्षमता में हठी होने के बजाय: "यह रही नियम पुस्तिका और इसलिए मैं नियम देखकर उसका पालन करूँगा" - जो "होना चहिए" और "नहीं होना चाहिए" शब्दावली में हठी प्रतिक्रिया है - हम अपनी भेद-दृष्टि, अपना विवेक और अपना सारा अनुभव प्रयुक्त करके परिस्थिति का उपयुक्त समाधान ढूँढ़ते हैं | इसके लिए बहुत लचीलेपन की आवश्यकता है | किसी समस्या के समाधान के लिए हम जितने अधिक कारकों को ध्यान में रखेंगे, समझदारी से उसके समाधान की उतनी अधिक संभावना होगी | जब हम अनेक कारकों को ध्यान में नहीं रखते, तो हमारे समाधान से समस्या सुलझती नहीं है |

इसलिए, जब हम कहते हैं कि सबकुछ सफ़ेद या काला नहीं होता, तो इससे इस तथ्य का खंडन नहीं होता कि किसी समस्या का हमारे पास प्रभावी या प्रभावहीन समाधान हो सकता है | यह याद रखना आवश्यक है | साथ ही, हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हम भगवान नहीं हैं | हम चुटकी बजाते ही हर समस्या का समाधान नहीं कर सकते |

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