चित्त साधना के माध्यम से आत्म-रूपांतरण

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जब हम कठिन स्थितियों का सामना करते हैं और हमारे जीवन में कोई बात बनती नज़र नहीं आती, तो यदि हम उनके प्रति अपनी मनोदृष्टि बदलने में समर्थ हो सकें तो हम इन अनुभवों को इस प्रकार रूपांतरित कर सकेंगे जिससे हमारी आध्यात्मिक प्रगति में वृद्धि होगी। तिब्बती परम्परा में “लोजोंग” चित्त साधना में ऐसी हितकारी मनोदृष्टियों का उल्लेख है जिनको विकसित करने का अभ्यास करके हम जीवन की चुनौतियों का बेहतर ढंग से सामना कर सकते हैं।

“चित्त साधना” का अभिप्राय ऐसी पद्धतियाँ हैं जिनसे हम किसी व्यक्ति अथवा परिस्थिति को देखने की शैली बदल सकते हैं। यद्यपि, हमें “चित्त साधना” शब्दावली के विषय में सचेत रहना होगा क्योंकि इससे ऐसी ध्वनि निकलती है मानो इसमें एकाग्रता एवं स्मृति का अभ्यास भी सम्मिलित है। वास्तव में यहाँ उनकी चर्चा नहीं हो रही। तिब्बती भाषा में चित्त साधना के लिए  स्ब-ब्लोयोंग पदावली का प्रयोग होता है। ब्लो शब्द का अर्थ केवल “चित्त” नहीं है। इस शब्द में “मनोदृष्टि” का ध्वन्यर्थ अधिक है। तिब्बती भाषा में “साधना, स्ब-ब्लोयोंग ” शब्द के दो अर्थ हैं :“शुद्ध करना”, तो आप नकारात्मक मनोदृष्टि का प्रक्षालन करते हैं और “प्रशिक्षण देना” जिसका अर्थ है अधिक सकारात्मक रूप से अभ्यास करवाना। इसलिए संभवत: चित्त साधना को “मनोदृष्टि साधना” के रूप में समझना इस अवधारणा को अधिक स्पष्ट करता है। 

सर्वाधिक नकारात्मक मनोदृष्टि है आत्म-पोषण जिसका प्रक्षालन करना होता है जिसमें आत्म-केन्द्रित और स्वार्थी मनोदृष्टि सम्मिलित होती है जिसमें हम केवल अपने विषय में सोचते हैं। हमें अभ्यास करना होता है सकारात्मक मनोदृष्टि विकसित करने का जिसमें हम दूसरों को ह्रदय में पोषित करते हैं, मुख्यत: दूसरों के प्रति प्रेम तथा करुणा सहित उनके कल्याण के विषय में सोचते हैं। चित्त साधना तकनीकों में अपनायी गयी पद्धति, जिसे “चार आर्यसत्य” कहते हैं बुद्ध के सामान्य दृष्टिकोण से मेल खाती हैं।

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