मंत्र क्या है?

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जब हम तनावग्रस्त होते हैं या जब बाध्यकारी नकारात्मक विचारों के कारण हमारे चित्त में उथल-पुथल होती है तब मंत्रों का जाप करना लाभकारी होता है – और यह अपने चित्त को शांत करने, अपने भीतर के शोर-गुल को शांत करने, और एक अधिक सकारात्मक मानसिक और भावनात्मक चित्तावस्था को विकसित करने का दुष्प्रभाव रहित तरीका है। बौद्ध साधना करते समय चित्त में और अधिक करुणा विकसित करने, अधिक स्पष्टता लाने और अधिक गहन बोध विकसित करने के लिए कुछ विशेष प्रकार के मंत्रों का प्रयोग किया जा सकता है। मंत्र एक ऐसा प्रभावशाली साधन हैं जिनसे आध्यात्मिक साधकों के अलावा आधुनिक जीवन की चुनौतियों का सामना करने वाले किसी भी व्यक्ति को लाभ मिल सकता है।

कुछ लोगों के मन में मंत्र शब्द को सुनकर कुछ ऐसी जादुई उच्चारण इकाइयों की छवि उभरती है जो हमारी इच्छाओं की पूर्ति कर सकती हैं। कुछ अन्य लोग इन्हें पूजा-पाठ या भक्ति का एक स्वरूप मानते हैं। आजकल राजनैतिक दल और व्यावसायिक ब्रांड अपने “मंत्रों” को आकर्षक और ध्यान खींचेने वाले नारों के रूप में प्रचारित-प्रसारित करते हैं। लेकिन बौद्ध साधना में मंत्र का अभिप्रेत अर्थ इनमें से कोई सा भी नहीं है। बौद्ध धर्म में मंत्रों का उपयोग ऐसे उन्नत साधनों के रूप में किया जाता है जो दूसरों के प्रति करुणा भाव, या विचारों की स्पष्टता जैसी लाभकारी चित्तावस्थाओं पर ध्यान केंद्रित रखने में हमारी सहायता करते हैं। [देखें: बौद्ध धर्म क्या है?]

मंत्र शब्दों और शब्दांशों के ऐसे वाक्यांश होते हैं जिनका चित्त को नकारात्मक अवस्थाओं से बचाए रखने के उद्देश्य से किसी लाभकारी चित्तावस्था पर एकाग्रता बनाए रखने में सहायक साधन के रूप में बार-बार सस्वर पाठ किया जाता है।

संस्कृत का मंत्र शब्द मूल शब्द मन यानी “चित्त” में -त्र प्रत्यय यानी “साधन” जोड़कर बनाया गया है – जोकि स्पष्ट तौर पर बताता है कि बौद्ध धर्म में मंत्रों का प्रयोग “चित्त के साधनों” के रूप में किया जाता है। भारत में सभी आध्यात्मिक परम्पराओं और अन्यत्र भी इनका प्रयोग पाया जाता है। तिब्बतियों ने इन्हें चित्त के अशांतकारी विचारों और मनोभावों से बचाव करने के साधन के रूप में समझा है।

ध्यानसाधना के दौरान या उससे अलग मौखिक रूप में या मन ही मन मंत्रों का जाप करने से हमारे चित्त को स्थिर होने में और किसी सकारात्मक चित्तावस्था पर सचेतनता को बनाए रखने में सहायता मिलती है।[देखें: ध्यान साधना क्या है?] यहाँ सचेतनता एक ऐसा मानसिक गोंद है जो मंत्र और उससे जुड़ी चित्तावस्था पर हमारे ध्यान को टिकाए रखती है और हमारे ध्यान को भटकने से या मंद पड़ने से बचाती है।

ऊँ का अक्षर / © tashimannox.com
ऊँ का अक्षर / © tashimannox.com

इससे आगे बढ़कर हम मंत्र साधना का उपयोग अपनी वाणी को अपने शरीर और चित्त के साथ एकीकृत करने के लिए कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि हम किसी की सहायता करने या किसी को ढाढ़स देने के लिए जा रहे हों और उसके लिए प्रबल करुणा भाव (उस व्यक्ति के समस्याओं से मुक्त होने की कामना) विकसित करना चाहते हों तो हम धीमे स्वर में या अपने चित्त में “ऊँ मणि पद्मे हूँ “ मंत्र (जो सम्भवतः बौद्ध मंत्रों में से सबसे सुपरिचित मंत्र है) का जाप कर सकते हैं। इससे हमारा ध्यान करुणा भाव पर केंद्रित रहता है और उस व्यक्ति की सहायता करने का प्रयास करते समय यह जाप हमें करुणायुक्त वाणी बोलने और व्यवहार करने के लिए तैयार करता है।

कुछ मंत्रों में संस्कृत शब्द शब्दांशों के साथ मिले हुए होते हैं, जबकि कुछ मंत्रों में केवल शब्दांश ही होते हैं। ये शब्द और शब्दांश बौद्ध शिक्षाओं के अलग-अलग पक्षों को दर्शाते हैं, जैसा कि हम “ऊँ मणि पद्मे हूँ” के इस उदाहरण में देख सकते हैं:

  • ऊँ – इस शब्दांश में तीन ध्वनियाँ हैं , , तथा , और यह ज्ञानोदय से प्राप्त शरीर, वाणी और चित्त के साथ-साथ हमारे उस साधारण शरीर, वाणी और मन को भी दर्शाता है जिसकी अशुद्धियों को दूर करके शुद्ध किए जाने की आवश्यकता है।
  • मणि – इस शब्द का अर्थ “रत्न” होता है और यह ऊपर बताई गई शुद्धि को करने वाले दो कारकों में से पहले कारक, या विधि पक्ष को दर्शाता है। इस संदर्भ में करुणा विधि है जिसके आधार पर हम सभी जीवों की अधिक से अधिक भलाई करने के लिए बोधिचित्त लक्ष्य निर्धारित करते हैं।
  • पद्मे – इसका अर्थ “कमल” होता है और यह दूसरे कारक ज्ञान, अर्थात शून्यता के बोध को दर्शाता है। असम्भव ढंग से अस्तित्व का पूर्ण अभाव ही शून्यता है। सामान्यतया हम स्वयं अपने, दूसरों के और इस विश्व के अस्तित्व के बारे में तमाम तरह की गलत कल्पनाएं कर लेते हैं, लेकिन ये कल्पनाएं यथार्थ के अनुरूप नहीं होती हैं। हम इन कल्पनाओं को सत्य मानते हैं, और इसलिए हम आत्मकेंद्रित हो जाते हैं और शुद्ध परहितवादी करुणा विकसित नहीं कर पाते हैं।
  • हूँ – यह शब्दांश अविभाज्यता, यहाँ विधि और बोध की अविभाज्यता, को दर्शाता है जिसकी सहायता से सभी की भलाई के लिए ज्ञानोदय की प्राप्ति सम्भव हो सकेगी।

मणि मंत्र: ऊँ मणि पद्मे हूँ / © tashimannox.com
मणि मंत्र: ऊँ मणि पद्मे हूँ / © tashimannox.com

किन्तु, दूसरे अधिकांश मंत्रों की ही तरह इस मंत्र के अर्थ के कई स्तर हैं। मंत्र का जाप करते समय हम अपनी ध्यानसाधना को अलग-अलग समस्याओं से व्यथित लोगों की ओर केंद्रित करके करुणा की साधना को और अधिक प्रभावशाली बना सकते हैं। [देखें: करुणा क्या है?]

मंत्र के प्रत्येक शब्दांश का प्रमुख अशांतकारी मनोभावों के किसी न किसी समुच्चय से सम्बंध है:

  • ऊँ – मिथ्याभिमान और अहंकार
  • – ईर्ष्या और जलन
  • णि – लालसा, लोभ और आसक्ति
  • पद् – अविद्यापूर्ण अज्ञान और हठी अनुउदारचित्तता
  • मे – कंजूसी और कृपणता
  • हूँ – शत्रुता और क्रोध

फिर, इससे अगला कदम यह हो सकता है कि हम अपने चित्त की करुणा अवस्था को और अधिक विस्तार देने के लिए छह व्यापक दृष्टिकोणों (छह पारमिताओं) के प्रति सचेतन रहें, इनका भी मंत्र के छह शब्दांशों से सम्बंध है:

  • ऊँ – उदारता
  • – नैतिक आत्मानुशासन
  • णि – धैर्य
  • पद् – आनन्दपूर्ण लगनशीलता (वीरोचित साहस)
  • मे – मानसिक स्थिरता (एकाग्रता)
  • हूँ – सविवेक बोध (ज्ञान)

मंत्रों का मौखिक उच्चार श्वास की सहायता से किया जाता है, जोकि बौद्ध दृष्टि से शरीर की सूक्ष्म ऊर्जाओं को प्रभावित करता है। मन में ही इन मंत्रों का जाप करने से भी ये ऊर्जाएं प्रभावित हो सकती हैं। श्वास और सूक्ष्म ऊर्जाओं को एक नियमित लय देकर मंत्र जाप बाध्यकारी अशांत करने वाले विचारों और मनोभावों को शांत करने, हमारे चित्त को स्थिर करने, और हमारे चित्त को अधिक कुशाग्र और निर्मल बनाने में सहायक हो सकता है।

और अधिक उन्नत मंत्र साधना में हम श्वास और सूक्ष्म ऊर्जा को नियमित करते हैं जिससे हमें चित्त के सूक्ष्मतम स्तर तक पहुँचने में सहायता मिलती है। जब हमारा यह सूक्ष्म चित्त शून्यता पर केंद्रित होता है तो यह अत्यंत प्रभावशाली हो जाता है – यथार्थ के बारे में हमारी सारी अनभिज्ञता और भ्रम से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्ति दिलाने और हमारे ज्ञानोदय को सम्भव बनाने का सबसे शक्तिशाली साधन बल जाता है। मेरे मुख्य शिक्षक त्सेनझाब सरकांग रिंपोशे अक्सर कहा करते थे, “सभी जीवों की भलाई करने वाली संसार की तीन सबसे शक्तिशाली चीजें हैं: औषध, प्रौद्योगिकी और मंत्र।“ मंत्रों से उनका आशय हृदय सूत्र से था जिसमें कहा गया है कि ज्ञान पारमिता (शून्यता का व्यापक सविवेक बोध) “चित्त की रक्षा करने वाला अद्वितीय मंत्र है...चित्त की रक्षा करने वाला मंत्र समस्त दुखों का पूरी तरह शमन करने वाला है।“

बौद्ध धर्म में मंत्र साधना के व्यापक प्रयोग हैं। पहली बात तो यह है कि ये श्वास और सूक्ष्म ऊर्जाओं को नियमित करके हमारे चित्त को शांत करने में सहायता करते हैं। उसके बाद ये प्रेम और करुणा जैसी सकारात्मक चित्तावस्थाओं और मनोभावों पर ध्यान को केंद्रित बनाए रखने में सहायक होते हैं। उसके अलावा ये हमारे शरीर, वाणी और चित्त को एकीकृत करते हैं और उनमें सामंजस्य स्थापित करते हैं। और अन्त में, गहन साधना के माध्यम से मंत्र हमें अपने चित्त के सूक्ष्मतम स्तर तक पहुँच कर सभी की भलाई के लिए वास्तविक ज्ञानोदय प्राप्ति तक पहुँचने में सहायता करते हैं।

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