गैर-बौद्ध देशों में बौद्ध धर्म की साधना

हम अक्सर यह सोचते हैं कि हम अपने पूर्वजों की तुलना में कहीं अधिक व्यस्त और तनाव भरा जीवन जीते हैं; गैर-बौद्ध देशों में हम लोग यह भी सोचते हैं कि सांस्कृतिक भिन्नताओं के कारण बौद्ध धर्म के आने से हमारे लिए विशेष प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। यहाँ हम चर्चा करेंगे कि क्या कुछ बदला है, क्या कुछ जैसे का तैसा है, किस तरह हम समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, और कौन सी ऐसी शाश्वत परम्पराएं हैं जो हर युग और हर संस्कृति के अनुरूप हैं।

क्या आधुनिक युग में बौद्ध साधकों के सामने कोई विशेष कठिनाइयाँ हैं?

क्या आधुनिक विश्व में बौद्ध साधना से जुड़ी कोई ऐसी विशेष बात है जो और कहीं भी किसी भी युग में बौद्ध धर्म की साधना से अलग हो? क्या हम कुछ विशेष हैं? यदि हममें कुछ विशेष है भी तो उसे जानने में हमारी रुचि भला क्यों होनी चाहिए?

इसके कई कारण हो सकते हैं। हो सकता है कि कुछ लोगों के सामने कुछ ऐसी कठिनाइयाँ हों जो उनके विचार से विशेष तौर पर हमारे युग से ही जुड़ी हों, और वे जानना चाहते हैं कि उन कठिनाइयों का मुकाबला कैसे करें। कुछ दूसरे लोग कोई बहाना ढूँढ रहे हो सकते हैं ताकि उन्हें उतनी कठोर साधना न करनी पड़े जैसी लोगों ने दूसरे कालखंडों में की है; ऐसे लोग सौदा करना चाहते हैं, वे चाहते हैं कि उन्हें सस्ते में ही ज्ञानोदय की प्राप्ति हो जाए। इस बात को दरकिनार करते हुए अब हम और अधिक गम्भीरता से विचार करें कि क्या हमारे सामने किसी प्रकार की विशेष कठिनाइयाँ हैं।

यदि हम बौद्ध मार्ग से जुड़े हैं तो सबसे बुनियादी बात यह है कि हमें इस बोध को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए कि हम किसी भी दृष्टि से विशेष नहीं हैं। उदाहरण के तौर पर, हम यह नहीं कह सकते हैं कि आधुनिक विश्व में वर्तमान समय में क्रोध, लोभ या स्वार्थपरायणता दुनिया के दूसरे हिस्सों के लोगों, या पुराने समय के लोगों से अधिक है। दुनिया भर में और हर युग में लोग उन्हीं अशांतकारी मनोभावों से जूझते आए हैं, इसलिए “वर्तमान” समय किसी भी दृष्टि से विशेष नहीं है।

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