बौद्ध धर्म लोगों को अपनी ओर क्यों आकर्षित करता है

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आधुनिक समय में लोग बड़ी संख्या में बौद्ध धर्म की ओर क्यों रुख कर रहे हैं? बेशक इसके कई कारण हैं, क्योंकि लोगों की प्रकृतियाँ अनेक प्रकार की होती हैं और हर व्यक्ति की अपनी अलग शख्सियत होती है, लेकिन मुझे लगता है कि अधिकांश लोग बौद्ध धर्म की ओर इसलिए आकर्षित होते हैं क्योंकि उनके जीवन की समस्याएं बढ़ रही हैं।

वर्तमान समाज के लोगों की समस्याओं के प्रकार

कुछ समस्याएं तो ऐसी हैं जो इस ग्रह पर मनुष्यों के जन्म के समय से ही चली आ रही हैं, और शायद उससे भी पहले से चली आ रही हैं, तब से जब मनुष्यों के आविर्भाव से पहले केवल पशु ही हुआ करते थे: परस्पर सम्बंधों की समस्याएं, क्रोध, आपसी झगड़ों, विवादों के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याएं। ये ऐसी समस्याएं हैं जो हमेशा से हर किसी के सामने रही हैं, इसलिए इस समय आपको या मुझे इस समय क्या या कैसा अनुभव हो रहा हैं इसमें कुछ विशेष नहीं है। इसके अलावा आर्थिक समस्याओं, और युद्ध सम्बंधी समस्यायों आदि जैसी बाद के समय की कुछ दूसरी समस्याएं भी हैं जिनसे परेशानियाँ और अधिक बढ़ी हैं। इसलिए वर्तमान समय में लोग इन समस्याओं से अधिक त्रस्त हो रहे हैं। और उन्हें इन समस्याओं के समाधान मिल नहीं रहे हैं, कि निजी स्तर पर इनका मुकाबला कैसे किया जाए, खास तौर पर अपने मनोभावों, अपने चित्त के स्तर पर कैसे मुकाबला किया जाए। जो समाधान लोगों को अभी उपलब्ध हैं वे इन समस्याओं से जूझने के लिए नाकाफी हैं।

खास तौर पर सूचना के इस युग में संचार माध्यमों की खोज सबसे बड़ी उपलब्धि है, और सोशल मीडिया के इस युग में इन माध्यमों का महत्व और भी अधिक है। इसका मतलब है कि हमें अनेक प्रकार की वैकल्पिक पद्धतियों के बारे में अधिक से अधिक सूचना उपलब्ध है। और परम पावन दलाई लामा जैसे अनेक बौद्ध नेता दुनिया भर में घूम-घूम कर इसके बारे में जानकारी बढ़ाते हैं। और बड़ी संख्या में लोगों ने प्रत्यक्ष देखा और अनुभव किया है कि अपना देश छिन जाने जैसी कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी इन लोगों ने किस तरह अपने आप को इतने असाधारण स्तर तक विकसित किया है वे अपने चित्त को शांत, स्थिर और प्रेमयुक्त बनाए रख सकते हैं। ऐसे जीवंत प्रमाणों से लोगों को और अधिक प्रेरणा मिलती है, जोकि केवल इंटरनेट के माध्यम से या उनके बारे में पुस्तकें पढ़ने से मिलने वाली प्रेरणा को और अधिक प्रगाढ़ बनाती है।

लोग बौद्ध धर्म की ओर रुख मूलतः इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें अपने जीवन में आने वाली समस्याओं के लिए किसी प्रकार के समाधान की तलाश होती है और उन्हें यह आशा होती है कि बौद्ध धर्म उन्हें जीवन की समस्याओं का सामना करने का कोई मार्ग दिखा सकेगा। सभी को यह आशा रहती है, फिर भले ही उनका समाज बौद्ध धर्म से पूरी तरह अनजान रहा हो या वह उनके समाज के लोगों की परम्परागत पद्धति रहा हो।

वीडियो: गेशे ल्हाकदोर – बौद्ध धर्म इतना लोकप्रिय क्यों है?
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बौद्ध धर्म का तर्क सम्बंधी पक्ष

अब, यदि हम बौद्ध धर्म को समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने वाली पद्धति के रूप में देखें, तो अलग-अलग लोगों को इसके अलग-अलग पहलू आकर्षित करेंगे। यदि हम उस पक्ष को देखें जिस पर परम पावन दलाई लामा विशेष बल देते हैं, और बहुत से लोगों को यह बात आकर्षित करती है, तो वह बौद्ध धर्म का तार्किक, विश्लेषणात्मक और व्यावहारिक पहलू है। उनका कहना है कि बौद्ध धर्म का दृष्टिकोण बिल्कुल विज्ञान के दृष्टिकोण जैसा है, यानी हम विभिन्न सिद्धांतों को केवल आँख मूंद कर किए गए विश्वास और आस्था के आधार पर ही स्वीकार नहीं कर लेते हैं, बल्कि तर्क और बुद्धि, गहन विश्लेषण, और स्वयं आज़माइश करने की वैज्ञानिक विधि को अपनाते हैं – प्रयोग करके देखते हैं कि बौद्ध धर्म में सिखाई जाने वाली विधियाँ चित्त को शांति प्रदान करने, समस्याओं को बेहतर ढंग से हल कर पाने की दृष्टि से वास्तव में वैसे परिणाम देने वाली हैं या नहीं जैसा दावा किया जाता है। और हम आदर्शवादी दृष्टिकोण अपनाने के बजाए बहुत ही व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हैं कि व्यावहारिक तौर पर क्या संभव है, हमारे दैनिक जीवन में क्या करना वास्तव में लाभदायक होगा।

और इसके अलावा, यदि पारम्परिक बौद्ध शिक्षाओं में कोई ऐसी बात हो जो गलत सिद्ध हो चुकी हो या वैज्ञानिक निष्कर्षों के अनुरूप न पाई गई हो – जैसे ब्रह्मांड की संरचना – तो फिर परम पावन उसे सहर्ष बौद्ध शिक्षाओं से निकाल कर हटा सकते हैं और उसके स्थान पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को शामिल कर सकते हैं, क्योंकि फिर कोई अन्तर्विरोध नहीं रहेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि बौद्ध धर्म यथार्थ पर बल देता है कल्पना पर नहीं, और बुद्ध हमें भूगोल का ज्ञान देने के लिए नहीं आए थे, बल्कि हमें अपने जीवन की समस्याओं का हल करने के मार्ग के बारे में शिक्षा देने के लिए आए थे। और हमारे इस ग्रह के आकार, पृथ्वी से सूर्य और चंद्रमा तक की दूरी सम्बंधी जो पारम्परिक शिक्षाएं हैं – ये सब बातें तो सिर्फ ढाई हज़ार साल पहले के लोगों को पारम्परिक ढंग से समझाई गई बातें हैं। इसलिए इन विषयों के बारे में पारम्परिक शिक्षाएं दरअसल उतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं; वह सब बुद्ध की शिक्षाओं का मुख्य सार नहीं है। और परम पावन वैज्ञानिकों को चुनौती देते हैं कि वे पुनर्जन्म जैसी बातों का खंडन करें, सिर्फ यह कह कर उन पर विचार करने से खारिज न कर दें कि “मुझे नहीं लगता कि ऐसा होता है।“ “मुझे नहीं लगता कि ऐसा होता है” किसी बात के अस्तित्व को स्वीकार न करने का कोई मान्य कारण नहीं है।

तो यह एक ऐसी बात है जो अधिक तार्किक दृष्टिकोण रखने वाले लोगों को निश्चित तौर पर आकर्षित करती है। और इसके अलावा परम पावन दलाई लामा की अगुवाई में बौद्ध पक्ष और वैज्ञानिकों के बीच भी बहुत वैचारिक आदान प्रदान हुआ है। विशेषतः चिकित्सा के क्षेत्र में, क्योंकि इस सम्बंध में बौद्ध शिक्षाओं में कही गई प्रमुख बातों में से एक बात यह है कि हमारे चित्त की अवस्था हमारे स्वास्थ्य को बहुत प्रभावित करती है। यदि हम बहुत निराशावादी हों – बहुत नकारात्मक सोच रखते हों, और हमेशा मैं, मैं, मैं आदि की ही फिक्र में लगे रहते हों – तो इससे हमारी रोगों से लड़ने की प्रणाली कमज़ोर हो जाती है और हमारे रोग और भी बढ़ जाते हैं और हमारी बीमारी जल्दी ठीक नहीं होती है। वहीं दूसरी ओर यदि हम आशावादी हों, यदि हम अपने जैसे दूसरे सभी रोगियों और अपने परिजन आदि के बारे में सोचें तो उससे हमारी हर समय शिकायत करते रहने की प्रवृत्ति नियंत्रित होती है। हमारा चित्त अधिक शांत होता है और हम इससे रोगों के प्रति हमारी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। वैज्ञानिकों ने इन बातों की अनेक प्रकार से जाँच की है और इन्हें सही पाया है, इसलिए कई अस्पतालों में अब इन तरीकों को अपनाए जाने की सिफारिश की जाने लगी है।

इसके अलावा बौद्ध धर्म में ऐसी बहुत सी विधियाँ बताई गई हैं जो दर्द को नियंत्रित करने में बड़ी कारगर होती हैं। दर्द अपने आप में ही बुरी चीज़ है, लेकिन यदि इसमें भय भी जुड़ जाए, व्यक्ति भावनात्मक दृष्टि से बहुत तनावग्रस्त हो जाए तो स्थिति और भी खराब हो जाती है। बौद्ध धर्म में श्वास की ध्यानसाधना में ऐसी विभिन्न विधियाँ बताई गई हैं जो दर्द को बेहतर ढंग से नियंत्रित करने में सहायक होती हैं, और इनकी भी जाँच करने के बाद विभिन्न अस्पतालों में इनके प्रयोग को बढ़ावा दिया जाता है। इन विधियों का उपयोग करने के लिए समग्र बौद्ध धर्म को जानने या समझने की आवश्यकता नहीं है। इन विधियों का प्रयोग करने के लिए लोगों को विस्तार से बौद्ध शिक्षाओं के बारे में बताए जाने की आवश्यकता नहीं है। ये तो सार्वभौमिक स्तर पर उपलब्ध ऐसी विधियाँ हैं जिन्हें किसी भी मान्यता वाला कोई भी व्यक्ति अपना सकता है। लेकिन चूँकि ये विधियाँ बौद्ध शिक्षाओं से ली गई हैं, इसलिए लोगों को यह जानने में भी थोड़ी रुचि हो जाती है कि वे इन बौद्ध शिक्षाओं को और विस्तार से जानें। विभिन्न प्रकार की युद्ध कलाओं को सीखने वाले लोगों में भी इसी प्रकार की रुचि पाई गई है। बौद्ध समाजों में विभिन्न प्रकार की युद्ध कलाएं विकसित हुईं, और इसलिए उनका अभ्यास करने वाले बहुत से लोगों ने इन शिक्षाओं की बौद्ध पृष्ठभूमि को जानने में रुचि दिखाई है।

वीडियो: डा. ऐलन वॉलेस – बौद्ध धर्म का अध्ययन क्यों आवश्यक है?
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आध्यात्मिक गुरुजन से मिलने वाली प्रेरणा

लेकिन बहुत से ऐसे लोग भी होते हैं जिनका तर्क की ओर इतना अधिक रुझान नहीं होता है, जो जीवन के प्रति बहुत वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं रखते हैं, इसलिए बौद्ध धर्म के विभिन्न पहलुओं ने उन्हें आकर्षित किया है। एक पहलू का ज़िक्र मैं महान आध्यात्मिक आचार्यों से मिलने वाली प्रेरणा के बारे में चर्चा के समय कर चुका हूँ: इन महान आध्यात्मिक आचार्यों गे अधिक से अधिक विश्व दौरों, और उनकी शिक्षाओं के पुस्तकों और इंटरनेट पर ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग्स के रूप में उपलब्ध होने के कारण धार्मिक रुझान रखने वाले लोगों को बहुत प्रेरणा मिली है। ऐसे समय में जब लोग आर्थिक, राजनैतिक या दूसरे क्षेत्रों में अपने विभिन्न नेताओं से निराश हो चुके हैं, तब वे इन बौद्ध आचार्यों की ओर बड़ी आशा के साथ मुड़ते हैं कि उन्हें कोई ऐसा पथप्रदर्शक मिलेगा जो दूसरों से अधिक खरा हो।

और निःसंदेह हमें यथार्थवादी होना चाहिए: बौद्ध पृष्ठभूमि से आने वाला हर आध्यात्मिक शिक्षक पूरी तरह खरा हो यह आवश्यक नहीं है। वे भी हमारी तरह इंसान ही हैं। इसलिए उनमें अच्छाइयाँ होती हैं, तो कमियाँ भी होती हैं। लेकिन उनमें से बड़ी संख्या में गुरुजन असाधारण रूप से योग्य होते हैं। और इसलिए लोग बहुत प्रेरित हुए हैं – यदि मैं कहूँ तो कुछ लोग इन आचार्य जन से बहुत प्रभावित हुए हैं, और जैसाकि मैंने पहले कहा, परम पावन दलाई लामा इनमें सबसे अग्रणी हैं। इसलिए उनके मन और हृदय में यह भाव जाग्रत होता है: “काश मैं भी इनके जैसा बन पाता।“ वे हमारे लिए आदर्श प्रस्तुत करते हैं कि हममें से प्रत्येक व्यक्ति भी उनके जैसी उपलब्धियों को हासिल कर सकता है। क्योंकि परम पावन दलाई लामा होते हुए भी वे हमेशा यही कहते हैं, “मैं किसी भी दृष्टि से विशेष नहीं हूँ।“ दरअसल बुद्ध ने भी यही कहा था, “मैं किसी भी प्रकार से विशेष नहीं हूँ। मैंने भी आप लोगों की ही तरह से शुरुआत की थी। मुझे भी वही साधन उपलब्ध थे और हैं जो आप लोगों को उपलब्ध हैं – चित्त, हृदय, दूसरों का खयाल रखने जैसे बुनियादी मानव-मूल्य आदि। और मैंने इन्हें विकसित करने के लिए बहुत कड़ा परिश्रम किया है, और यदि आप भी कड़ा परिश्रम करें तो फिर आप भी इन्हें विकसित कर पाएंगे।“ इसलिए परम पावन दलाई लामा जैसे आध्यात्मिक आचार्य यह प्रयास करते हैं कि लोग उन्हें इतना ऊँचा पद और स्थान न दें जैसे वे अति-पवित्र हों और उन्हें समझ पाना या उनके जैसा बन पाना असंभव हो। और यह बात ऐसे लोगों को बहुत आकर्षित करती है जो अधिक धार्मिक रुझान रखते हैं, और जीवन के प्रति बहुत ज्यादा वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं रखते हैं।

बौद्ध साधना की परंपरा का पुनरुज्जीवन

पारंपरिक तौर पर बौद्ध रह चुके ऐसे स्थानों पर जहाँ विभिन्न परिस्थितियों के कारण बौद्ध साधना का प्रचलन घटा है, बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षण का एक और कारण बौद्ध परंपरा को पुनर्जीवित करने की इच्छा है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और पुख्ता दृष्टिकोण है क्योंकि जैसे-जैसे हमारे सामने आधुनिकीकरण की चुनौतियाँ बढ़ रही हैं, आत्म-विश्वास और आत्म-सम्मान के भाव को बनाए रखना आवश्यक हो जाता है। यदि हमें कहा जाये कि हमारे पूर्वज जो कुछ भी मानते थे वह सब बिल्कुल निरर्थक था और यदि हम सचमुच आधुनिक युग में प्रवेश करना चाहते हैं तो हमें उन सब बातों को भुलाना होगा, तो उस स्थिति में हम स्वयं अपने आप को और अपने पूर्वजों को बड़ी हीनता की दृष्टि से देखेंगे। इससे हमारे मन में यह भाव जागता है कि हम निकम्मे हैं, मूर्ख हैं। और यदि अपने बारे में हमारी ऐसी मान्यता हो, भावनात्मक मान्यता हो, तो फिर हमारे भीतर आत्म-सम्मान या आत्मविश्वास को कोई भाव नहीं होगा; हमारे पास ऐसा कुछ नहीं होगा जिस पर हम गर्व कर सकें, जिसके आधार पर अपना विकास कर सकें। इसलिए मैं मानता हूँ कि उत्तरोत्तर विकास और आधुनिकीकरण के लिए अपनी परंपराओं और मान्यताओं की ओर लौटना और उन्हें पुनर्जीवित करना बहुत महत्वपूर्ण है।

अब इसमें संदेह नहीं है कि किसी भी परंपरा में कुछ अच्छाइयाँ होगीं और कुछ कमियाँ भी होंगी जिनका संभवतः दुरुपयोग किया गया हो, और उस परंपरा की अच्छाइयों पर बल देते हुए उन्हें सामने लाना बहुत महत्वपूर्ण होता है। आधुनिक मनोविज्ञान की एक पद्धति में निष्ठा के सिद्धांत पर विशेष तौर पर बल दिया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने परिवार, अपनी जाति, अपने धर्म आदि के प्रति निष्ठा के भाव से प्रेरित होता है। और यह निष्ठा दो अलग-अलग दिशाओं में जा सकती है, या तो सकारात्मक गुणों के प्रति निष्ठा हो सकती है या फिर व्यक्ति नकारात्मक गुणों के प्रति निष्ठावान हो सकता है।

बौद्ध धर्म का अद्भुत पहलू

लोगों का एक और समूह है जिन्हें अपनी कल्पनाओं के कारण बौद्ध धर्म आकर्षक लगता है। वे अपने जीवन में समस्याओं से जूझ रहे होते हैं और उन समस्याओं के लिए किसी प्रकार के जादुई, विदेशज समाधान की तलाश में होते हैं, और बौद्ध धर्म – विशेष तौर पर अपने तिब्बती/ मंगोलियाई/ काल्मिक स्वरूप में – सभी प्रकार की अद्भुत बातों से भरा हुआ है: तरह-तरह के चेहरों और हाथ-पैरों वाले अनेक प्रकार के देवी-देवता, कई प्रकार के मंत्र आदि से भरा है। वे मंत्र जादू के मंत्रों जैसे प्रतीत होते हैं जिनका बस कुछ लाख बार उच्चारण करने की आवश्यकता होती है और जैसे हमारी सभी समस्याएं काफूर हो जाएंगी। और लगता है कि जैसे हाथ-पैरों वाली इन आकृतियों में कोई जादुई शक्ति है। और इसलिए ये लोग, जैसाकि मैंने पहले कहा, इन जादुई किस्म की विधियों की सहायता से सुख आदि की प्राप्ति के लिए बौद्ध धर्म को एक साधन के रूप में देखते हैं।

हालाँकि उन लोगों को इन विधियों की साधना करने से कुछ लाभ प्राप्त हो सकता है (इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि हम बौद्ध धर्म के प्रति इस प्रकार का आदर्शवादी, अव्यावहारिक दृष्टिकोण रखते हुए भी उसे अपनाएं तो कुछ लाभ अवश्य होता है), किन्तु परम पावन दलाई लामा हमेशा इस बात पर बल देते हैं कि ऐसा दृष्टिकोण सही मायने में यथार्थवादी नहीं है। इसके कुछ लाभ हो सकते हैं, लेकिन लम्बी अवधि में इससे आपको निराशा ही हाथ लगेगी क्योंकि दुर्भाग्य से जादुई समाधान दरअसल होते ही नहीं हैं। यदि हम सचमुच चित्त की शांति और अपने जीवन की समस्याओं पर विजय पाना चाहते हैं तो हमें अपने व्यक्तित्व के उन पहलुओं से रूबरू होना पड़ेगा जिनका सामना करना हमें पसंद नहीं होता है या सुविधाजनक नहीं लगता है। हमें अपने क्रोध, अपनी स्वार्थपरायणता, लोभ, आसक्तियों आदि का सामना करना पड़ेगा और उन्हें नियंत्रित करना होगा। और इन व्यक्तिगत समस्याओं को नज़रअंदाज करते हुए सिर्फ जादुई समाधान तलाश करना बहुत लाभदायक साबित नहीं होने वाला है। लेकिन फिर भी ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें इन विदेशज विशेषताओं के कारण बौद्ध धर्म अपनी ओर आकर्षित करता है।

वीडियो: डा. अलेक्ज़ेंडर बर्ज़िन – विश्व भर में उपदेश
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सारांश

संक्षेप में कहा जाए तो बौद्ध धर्म के कई ऐसे पहलू हैं जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, लेकिन बौद्ध धर्म के प्रति उनके आकर्षण के मूल में उनकी यह बुनियादी इच्छा होती है कि वे बौद्ध धर्म में ऐसी विधियाँ तलाश कर सकें जिनकी सहायता से जीवन की समस्याओं और दुखों पर विजय प्राप्त की जा सके। और बुद्ध धर्म की सहायता से जीवन की समस्याओं को नियंत्रित करने का मार्ग तलाशने के लिए हमें जो भी बात आकर्षित करती हो, बुद्ध की शिक्षाओं के बारे में सभी को पसंद आने आने वाली एक बात यह है कि इसमें ऐसी वास्तविक विधियाँ सुझाई गई हैं जिनका पालन करके समस्याओं पर विजय पाई जा सकती है। यह ढाई हज़ार सालों के अनुभव वाली एक जीवंत परंपरा है, और अभी भी ऐसे लोग हैं जो इसकी साधना करते हैं और परिणाम हासिल करते हैं। और इसलिए बात केवल इन विधियों का वास्तविक अर्थ में पालन करने भर की है; विधिकर्म को व्यवस्थित ढंग से निर्धारित किया गया है। और केवल कोई एक विधि ही नहीं सुझाई गई है, बुद्ध ने इस बात को समझते हुए कि प्रत्येक व्यक्ति दूसरे सभी लोगों से अलग होता है और अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग विधियाँ कारगर होती हैं, अनेकानेक प्रकार की विधियों की शिक्षा दी है। लोगों को यह बात बहुत अच्छी लगती है क्योंकि बौद्ध विधियों की इतनी विविधता की स्थिति वैसी ही होती है जैसे किसी रेस्तरां के मेन्यू में बहुत सारे व्यंजन उपलब्ध हों तो हमें अपनी पसंद और जरूरत के अनुसार कुछ न कुछ खाने के लिए मिल ही जाता है; और यदि हम किसी व्यंजन को आजमाने के बाद उससे संतुष्ट न हों, तो फिर उसके बाद भी बहुत से दूसरे व्यंजन खाने के लिए उपलब्ध बने रहते हैं। और चूँकि हम इस सूचना के युग में जी रहे हैं, इसलिए हम कहीं भी रहते हों, बौद्ध धर्म की अधिक से अधिक विधियों की जानकारी हमें उपलब्ध रहती है।

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