पारम्परिक कथाएं: कर्म तथा शरणागति

विभाजनकारी भाषा के प्रयोग से बचने के सम्बंध में और आगे

कल हम पाँचवें प्रकार के विनाशकारी कृत्य, यानी विभाजनकारी भाषा के प्रयोग के बारे में चर्चा कर रहे थे। हम शरीर के स्तर पर तीन विनाशकारी कृत्यों और वाणी सम्बंधी पहले विनाशकारी कृत्य के बारे में पहले ही बात कर चुके हैं। हम वाणी के दूसरे विनाशकारी कृत्य, यानी फूट डालने वाली भाषा के प्रयोग के बारे में चर्चा कर रहे थे।

फूट डालने वाली भाषा का आधार ऐसे व्यक्तियों का समूह होता है जिनके बीच आपसी समरसता या तो होती है या फिर नहीं होती है। इसके दो आधार इसलिए हैं क्योंकि आप मैत्रीपूर्ण ढंग से रह रहे लोगों के समूह में फूट डालकर समूह के सदस्यों को एक-दूसरे से अलग कर सकते हैं, और इसी प्रकार किसी ऐसे समूह, जिसमें पहले ही समरसता न हो, उसकी स्थिति और भी बदतर हो सकती है। इससे सम्बंधित संकल्प में एक प्रेरणा, एक अशांतकारी दृष्टिकोण, और एक बोध शामिल होते हैं। बोध दरअसल उन लोगों की स्थिति का ठीक-ठीक ज्ञान है जिनसे आप बात कर रहे होते हैं। अशांतकारी मनोभाव मोह, क्रोध, या बौद्धिक संकीर्णता आधारित अज्ञान हो सकता है। यहाँ प्रेरणा यह होगी कि जिन लोगों के बीच समरसता नहीं है, उनके बीच एकता स्थापित न होने दी जाए, या जिन लोगों के बीच समरसता है, वे एक-दूसरे से अलग-अलग हो जाएं।

कृत्य किसी भी प्रकार की वाणी के रूप में हो सकता है, चाहे वह सत्य हो या असत्य हो। आप कोई अच्छी बात कह सकते हैं या फिर कुछ अप्रिय कह सकते हैं। ऐसा करने के कई तरीके हो सकते हैं। इस कृत्य की परिणति इस रूप में होती है कि आप उन लोगों को आपस में बांट कर एक बड़ी दीवार खड़ी कर देते हैं; उन लोगों के बीच आपस में एक बड़ी दूरी या अन्तर पैदा हो जाता है।

Top