नैतिक आत्मानुशासन के दो अन्य स्तर

पुनरावलोकन

आध्यात्मिक विकास के आरम्भिक स्तर पर हम विनाशकारी व्यवहार से बचने के लिए नैतिक आत्मानुशासन का पालन करते हैं। हमारा लक्ष्य होता है कि हम न केवल इस जीवनकाल में, बल्कि आने वाले जन्मों में भी अपनी स्थिति को बदतर होने से रोक सकें। हम बेहतर गतियों में पुनर्जन्म प्राप्त करने और उन जन्मों में हमें मिलने वाले सामान्य सुखों से अधिक उत्कृष्ट सुखों को प्राप्त कर सकें। हम और अधिक दुख और कष्ट भोगने की आशंका के कारण इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित होते हैं। लेकिन हमें यह बोध हो चुका होता है कि इससे बचने का एक मार्ग उपलब्ध है, यानी आत्मनियंत्रण रखते हुए और विनाशकारी व्यवहार से दूर रहकर हम ऐसी नियति से बच सकते हैं। जब भी लोभ या क्रोध जैसे किसी अशांतकारी मनोभाव के कारण हमारे भीतर कोई विनाशकारी कृत्य करने, वचन कहने या विचार करने की इच्छा जाग्रत होती है तो हम उस भाव को पहचान जाते हैं और उसे क्रियान्वित करने से अपने आप को रोक लेते हैं। हालाँकि कुछ विनाशकारी करने की इच्छा महसूस होने और फिर बाध्यकारी ढंग से उसे करने के बीच के अन्तराल को खत्म करने के लिए हमें बहुत धीमा होना पड़ता है, और शुरुआत में ऐसा करने में सचमुच बहुत कठिनाई होती है, लेकिन हम अभ्यास से स्वयं को इस योग्य बना सकते हैं कि हम उसे पहचान पाएं।

उस स्थिति के बारे में सोचिए जब आप बैठकर किसी काम को करने की कोशिश कर रहे होते हैं, और आपको ऊब होने लगती है। आपके मन में इच्छा जाग्रत होती है कि आप अपनी फेसबुक वॉल को देखें या एक बार फिर अपने फोन पर समाचार पढ़ें, या किसी मित्र को टैक्स्ट संदेश भेजें। विकास के इस स्तर पर पहुँच कर हम ऐसी भावना के जाग्रत होते ही उसे पहचान लेंगे और साफ तौर पर तय कर लेंगे, “यदि मैंने ऐसा किया तो मैं अपना काम पूरा नहीं कर पाऊँगा और उसके कारण समस्याएं उत्पन्न होंगी। इसलिए भले ही मेरे मन में कुछ और करने की इच्छा हो रही हो, मैं वैसा करने वाला नहीं हूँ।“

वीडियो: डा. चोन्यी टेलर – व्यसनकारी आवर्ती क्रम को भंग करना
सबटाइटल्स को ऑन करने के लिए वीडियो स्क्रीन पर "CC" आइकॉन को क्लिक कीजिए। सबटाइटल्स की भाषा बदलने के लिए "सेटिंग्स" आइकॉन को क्लिक करें और उसके बाद "सबटाइटल्स" पर क्लिक करें और फिर अपनी पसंद की भाषा का चुनाव करें।
Top