प्रशिक्षण एवं संवरों के लिए बोधिचित्त कृत्यों की व्याख्या

हम में से कई लोग ऐसे भी हैं जो बोधिसत्त्व संवरों को अपरिपक्व अवस्था में, बोधिचित्त के प्रारंभिक चरणों को भी पूरी तरह से विकसित कर पाने से पहले ही, ले लेते हैं। हमारा सबसे पहला प्राप्तव्य है "आकांक्षी बोधिचित्त"। यह हमारी अपने व्यक्तिगत ज्ञानोदय प्राप्ति की लालसा है जो अभी हुई नहीं है परन्तु जो दूसरों की सहायता हेतु आवश्यक है। और उसके दो चरण हैं। पहला चरण इसकी कामना मात्र है; दूसरा वह है जिसे "प्रतिज्ञा-बद्ध अवस्था" कहा जाता है, जिसमें हम यह प्रतिज्ञा करते हैं कि हम इसे तब तक नहीं छोड़ेंगे जब तक हम ज्ञानोदय प्राप्ति नहीं कर लेते। उसी मार्ग पर आगे चलकर हम "सम्बद्ध अवस्था" कहलाए जाने वाली स्थिति को विकसित करते हैं, जहाँ हम ज्ञानोदय प्राप्ति हेतु साधना में पूर्णतया संलग्न होने के लिए सम्पूर्ण रूप से दृढ़ संकल्प हो जाते हैं। इस अवस्था में आने के बाद ही हम बोधिसत्त्व संवर लेते हैं।
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