बोधिचित्त का पतन या विलोप न होने की शिक्षाएँ

हम बोधिचित्त के बारे में और बोधिसत्त्व के होने का क्या महत्त्व है इन दोनों विषयों पर चर्चा कर रहे थे, और हमने यह देखा कि बोधिचित्त के विकास की सामान्य प्रगति में बोधिसत्त्व संवर ग्रहण करने का माहात्म्य क्या है और साथ ही यह भी देखा कि बोधिचित्त के विकास के कौन-कौन से चरण हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि हमें यह समझना होगा कि इन संवरों की भूमिका क्या है और उन्हें कब ग्रहण करना चाहिए। हममें से कई लोग ऐसे हैं जो अपने बोधिचित्त के प्राथमिक चरणों के बोध को विकसित करने से पहले ही, अपनी अपरिपक्व अवस्था में, इन संवरों को ग्रहण कर लेते हैं। पर फिर भी, बोधिचित्त के सीमित बोध से युक्त होकर और समष्टि के बारे में सोचे बिना भी बोधिसत्त्व संवरों के दिशानिर्देशों का पालन करने का प्रयास करना अत्यंत लाभदायक होता है। यहाँ ध्यान रखने की बात यह है कि बोधिसत्त्व संवरों को ग्रहण करके भी हमें अपने बोधिचित्त की उत्पत्ति एवं विकास के मार्ग पर लगे रहना है और साथ ही बोधिचित्त की चित्तावस्था में जो घटित होता है उसे तुच्छ नहीं समझना है क्योंकि यह न केवल आरम्भ में समष्टि को समान रूप से लक्षित करता है, जो अत्यंत व्यापक है, अपितु वह ज्ञानोदय प्राप्ति – यद्यपि-अघटित ज्ञानोदय प्राप्ति – को भी लक्षित करता है, जो इतना सर्वसमावेशी है कि हमें उसकी सटीक अवधारणा की आवश्यकता होती है।

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