पुण्य भूमि, सप्तांग प्रार्थना, मंडल एवं अनुनय

चौथा अभ्यास: आध्यात्मिक उन्नति हेतु विपुल क्षेत्र का मानस दर्शन 

छः प्रारंभिक अभ्यासों में से चौथा है आध्यात्मिक विकास के लिए एक पुण्यक्षेत्र का मानस दर्शन करना। इसे प्रायः योग्यता क्षेत्र कहा जाता है, परन्तु इसके लक्ष्यार्थ की एक अर्थध्वनि है: यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें हम अपनी सकारात्मक शक्ति के अधिक से अधिक बीज बोते हैं। यह एक विपुल क्षेत्र है; इससे भरपूर फ़सल मिलेगी। और फिर, यह एक अत्यधिक जटिल मानस दर्शन हो सकता है या सिंहासन पर विराजमान बुद्ध के रूप में हमारे मूल गुरु के संग एक सरल मानस दर्शन हो सकता है, जैसा हमारे पास पहले था।

मैं यहाँ अत्यधिक विस्तार में नहीं जाऊँगा, केवल एक छोटी-सी बात है। बुद्ध की मुद्रा ऐसी है कि दाहिना हाथ भूमि-स्पर्श मुद्रा में है - इसलिए यह नीचे की ओर है, पृथ्वी को छूते हुए, बुद्ध भूमि को ‘मार’ से अपनी पराजय का साक्षी होने के लिए आग्रह कर रहे हैं। ‘मार’ देवताओं की संतान हैं। जब हम मारों की बात करते हैं, तो एक तरह से आप उन्हें राक्षस कह सकते हैं, परन्तु वे बलशाली बाधाकारी हस्तक्षेप भी हैं। मार  का उद्भव वास्तव में संस्कृत शब्द मृत  है, जिसका अर्थ है "मरा हुआ"।

तो एक ओर इन सभी बाधाकारी हस्तक्षेपों के रूप में ‘मार’ है जो बुद्ध के पास तब आया था जब वे बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञानोदय प्राप्त कर रहे थे, जो वैसे एक अद्भुत उदाहरण है। आप सोचते होंगे कि ज्ञानोदय प्राप्ति के लिए तैयार बुद्ध तब तक इतना विपुल सकारात्मक बल संचित कर चुके होंगे कि ‘मार’ जैसे बलशाली बाधाकारी हस्तक्षेप उनके समक्ष आ ही नहीं सकते थे, जिस प्रकार इसे वर्णित किया गया है - नर्तकियाँ इत्यादि सब कुछ समेत। परन्तु आप जितना अधिक बलशाली सकारात्मक कार्य करने की चेष्टा करते हैं, उतना ही अधिक बाधाकारी हस्तक्षेप उत्पन्न होने की प्रवृत्ति होती है, और एक महान बोधिसत्व वह है जो इन बाधाकारी हस्तक्षेपों पर स्वयं भारी पड़ जाता हो। तो यदि हम कुछ सकारात्मक करने की चेष्टा कर रहे हैं और बाधाकारी हस्तक्षेप होते हैं, तो यह कोई विशेष बात नहीं है। चलिए, बोधिवृक्ष के नीचे बैठे बुद्ध के उदाहरण के बारे में सोचिए, या फिर परम पावन दलाई लामा और उनके प्रति चीनी नेताओं के रवैये के बारे में सोचिए, कि उन्हें किन कठिनाइयों को झेलना पड़ा और उन्होंने किस प्रकार उन सबसे निपटने का प्रयास किया और किस प्रकार वे अवसादग्रस्त नहीं हुए। तो कभी यह न सोचें "हाय मैं बेचारा। मुझे इतने सारे दुःख हैं।" मान लीजिए कि चीनियों के साथ निपटते परम पावन दलाई लामा की चिंताओं की तुलना में हमारे दुःख तो तुच्छ ही हैं।

फिर बुद्ध की गोद में भिक्षापात्र है जिसे उन्होंने अपने बाएँ हाथ में पकड़ रखा है, और इसमें तीन अमृत हैं। अमृत शब्द का अर्थ क्या है? यह शब्द उसके वास्तविक स्वाद को अभिव्यक्त नहीं करता। स्मरण करें कि सरकाँग रिन्पोचे ने प्रत्येक शब्द का दोहन करने की बात कही थी, जैसे गाय को दुहना - इच्छापूरक गाय की भारतीय छवि - ताकि आपको इससे सभी विलक्षण वस्तुएँ मिले। अमृत  एक संस्कृत शब्द है। फिर से कह दूँ, मृत  का अर्थ है “मरा हुआ”, और   उपसर्ग के साथ यह हो जाता है अभिभूत हो जाना - तो ये राक्षस-विरोधी अमृत हैं। और तिब्बती इसका अनुवाद दो अक्षरों वाले शब्द से करते हैं; मार  के लिए एक शब्दांश है (ब्दुद )।

ये अमृत हैं:

  • औषध - स्कंध के मार (इसलिए व्याधि) पर विजय प्राप्त करना
  • दीर्घ जीवन का अमृत - मृत्यु के मार पर विजय प्राप्त करना
  • गहन सचेतनता का अमृत - अशांतकारी मनोभावों की मार पर विजय प्राप्त करना।

आप जितनी गहराई में प्रत्येक वस्तु के प्रतिरूप में जाते हैं, आप उतना अधिक देखते हैं कि इन सभी लघु आयामों में मार्ग का कितना कुछ सम्मिलित है।

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