दैनिक जीवन में चित्त साधना: कुछ विशेष नहीं

हम सभी के भीतर “मैं” का एक अन्तर्जात भाव होता है जो समझता है कि वह इस ब्रह्माण्ड का केंद्र है जो रोज़ सवेरे जागता है और रात को सोने चला जाता है, दिन भर की इस अवधि के दौरान अनेक प्रकार के मनोभावों को अनुभव करता है। यह “मैं” हमेशा सुख प्राप्त करने और समस्याओं से बचने के लिए प्रयत्नशील रहता है, लेकिन जीवन हमेशा वैसे नहीं चलता है जैसे हम चाहते हैं। इस “मैं” और “दूसरों” के साथ उसके सम्बंधों का पुनर्मूल्यांकन करके हम अपने सामने आने वाली कठिनाइयों का सामना करते हुए अधिक उदार, तनाव मुक्त और यहाँ तक कि सुखी रहना सीख सकते हैं।
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