आत्म-केंद्रित भाव पर विजय प्राप्त करना और प्रेम का विकास: इस्लाम

परिचय

परम पावन चौदहवें दलाई लामा इस बात पर बल देते हैं कि धार्मिक समरसता शिक्षा और एक-दूसरे की परम्पराओं की जानकारी पर आधारित होनी चाहिए | इस गहन ज्ञान से युक्त होकर, हम अपने सार्वजनिक ध्येय समझते हुए, अपनी विविधताओं का आदर कर पाएँगे | वस्तुतः यह हो सकता है कि इन विविधताओं को समझकर हम कुछ ऐसे आयामों के विषय में जानें जिससे हमारी अपनी परम्पराएँ समृद्ध हो सकें | इसलिए, यद्यपि विभिन्न धर्मों के बीच की समानताओं को दर्शाना और मिलजुलकर प्रार्थना करना अच्छा है तथापि हमें उनके बीच की असमानताओं को भी जाँचना चाहिए ताकि हम गहनतर समझ और आदर विकसित कर पाएँ | गहनतर समझ और आदर विश्व के धर्मों के बीच दीर्घजीवी समरसता और सहयोग का स्थायी आधार प्रदान करते हैं |

सभी धर्म सिखाते हैं कि आत्म-केंद्रित मनोदृष्टि, जिसके अधीन हम केवल अपने विषय में सोचते हैं, सभी नकारात्मक मनोभावों का स्त्रोत है, जैसे क्रोध, ईर्ष्या, अविश्वास, लोभ, दम्भ, आदि | आत्म-केन्द्रित मनोदृष्टि हत्या, चोरी, दादागिरी, छल, झूठ, भ्रष्टाचार, और शोषण जैसे नकारात्मक आचरण को जन्म देती है - केवल अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए | संक्षेप में, चरम कोटि के स्वार्थी मनोभाव सभी समस्याओं का स्त्रोत हैं | इसका खण्डन करने के लिए प्रत्येक धर्म आत्म-केन्द्रीकरण घटाने और प्रेम, करुणा, सहनशीलता, और क्षमाशीलता जैसे गुणों में वृद्धि करने की विधियाँ सिखाता है |

आइए, इस ओर दृष्टि डालें कि इस्लाम और बौद्ध धर्म इन विषयों के बारे में क्या सिखाते हैं | इस्लाम और बौद्ध धर्म, दोनों की ही अनेक भिन्न-भिन्न शाखाएँ और परम्पराएँ हैं, जिनकी अपनी-अपनी निर्दिष्ट व्याख्याएँ हैं | परन्तु यहाँ हम प्रमुखतः इस्लाम और बौद्ध धर्म की भारतीय-तिब्बती परम्पराओं में पाए जाने वाले सबसे प्रख्यात अभिमतों पर दृष्टि डालेंगे | चूँकि इस निबन्ध का उद्देश्य बौद्ध मत के लोगों को इस्लाम के मूल सिद्धांतों और मतों के विषय में शिक्षित करना, और वैसे ही मुस्लिमों को बौद्ध धर्म के विषय में शिक्षित करना है, अतः प्रस्तुतियों में, अनिवार्य रूप से, सरलीकरण और सामान्यीकरण होंगे | किसी भी प्रकार की भ्रान्त व्याख्या अनभिप्रेत है | कुरान का पूर्ण अर्थ केवल ख़ुदा ही जानते हैं और केवल एक बुद्ध ही धर्म शिक्षण का पूर्ण अर्थ जानते हैं |

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